भाजपा में शामिल क्यों नहीं होतीं शेख हसीना?

– राकेश अचल


आज का शीर्षक पढकर आप कहेंगे कि क्या बेवकूफी भरा सवाल है, लेकिन सवाल तो है, क्योंकि बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती शेख हसीना को भारत में शरणार्थी की हैसियत से रहते हुए आज 100 दिन पूरे हो गए हैं। हमारे यहां सौ दिन सास के हों या सरकार के या शेख हसीना के महत्वपूर्ण मने जाते हैं। शेख हसीना के भारत में सौ दिन इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि बांग्लादेश की अस्थायी सरकार भारत से हसीना के प्रत्यर्पण की मांग कर रही है और भारत इस मुद्दे पर गुड खाकर बैठा हुआ है। भारत ने अब तक साफ नहीं किया है कि हसीना को लेकर उसकी नीति क्या है?
शेख हसीना जिन परिस्थितियों में भारत में शरणार्थी बनकर आईं, वे जग जाहिर हैं। एक सनातनी होने के नाते मैं शेख हसीना को शरण देने के पक्ष में हूं, क्योंकि हमारी सनातन शरणार्थी नीति आज की सरकार की शरणार्थी नीति से बिल्कुल अलग है। हमारे राम जी कह गए हैं कि ‘सरनागत कहुं जे तजहिं निज अनहित अनुमानि। ते नर पावंर पापमय तिन्हहि बिलोकत हानि॥’
इसलिए शेख हसीना को भारत से निकालना राम जी की शरणागत नीति के विरुद्ध जाएगा। दुर्भाग्य ये है कि भारत की शरणागत नीति शेख हसीना के बारे में अलग है और शेष बांग्लादेशियों या म्यांमार के रोहंगियों के बारे में अलग। हमारी सरकार बांग्लादेशियों को देश के लिए एक बडा खतरा मानती है और अब चुन-चुनकर उन्हें वापस बांग्लादेश और म्यांमार भेज रही है। इन्हीं बांग्लादेशियों की शिनाख्त के लिए भाजपा की सरकार ने तमाम कानून बनाए, जिनमें से सीएए भी एक है। मेरा कहना है कि शरणागत कानून भी एक देश एक विधान जैसा होना चाहिए, यानि जो कानून शेख हसीना के लिए हो वो ही दिल्ली में रिक्शा खींचने वाले बदरुद्दीन के लिए भी हो। लेकिन मैं जानता हूं कि मेरी बात किसी के गले नहीं उतरेगी, क्योंकि ऐसा करना न आसान है और न व्यावहारिक।
बांग्लादेश में तख्ता पलट के बाद जान बचाकर भागीं शेख हसीना के प्रत्यर्पण के लिए बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मुहम्मद यूनुस प्रयासरत हैं। बांग्लादेश ने इस बारे में भारत से खतो-किताबत भी की है, लेकिन भारत ने अभी तक इस बारे में कोई संकेत नहीं दिए है। भारत में 100 दिन से रह रहीं शेख हसीना को फिलहाल स्वदेश लौटने का ख्वाब देखना बंद कर देना चाहिए और तस्लीमा नसरीन की तरह भारत में स्थाई निवास के लिए अर्जी लगा देना चाहिए। वे चाहें तो भारत की नागरिकता भी मांग सकती हैं और यहां रहकर भी बांग्लादेशियों के लिए नई पार्टी बनाकर सियासत शुरू कर सकती हैं। वे चाहें तो सत्तारूढ़ भाजपा में शामिल हो सकती हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद उन्हें आसानी से मिल सकता है।
भारत शरणार्थियों के लिए स्वर्ग है। रामजी के राज में भी और मोदी जी के राज में भी। कांग्रेस के राज में भी शरणागत नीति बडी उदार थी। 1975 में जब बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद शेख मुजीबर्रहमान के परिवार की हत्या की गई थी उस समय भी शेख हसीना भारत में थीं। शेख हसीना ने उस समय भी 1975 से 1981 तक दिल्ली के पंडरा रोड पर रहकर स्वदेश वापसी के लिए तैयारी की थी। यानि उनके लिए भारत में 100 दिन शरणार्थी बनकर रहना कोई नई बात नहीं है। मोदी जी चाहें तो भारत उन्हें भारत में अगले आम चुनाव तक यानि 2029 तक आसानी से रुकने की इजाजत देकर कांग्रेस की सरकार के समय का कीर्तिमान भंग कर सकते हैं।
भाजपा में शेख हसीना को लेकर दो धडे हैं। एक धडा चाहता है कि शेख हसीना भारत में ही रहें और दूसरा धडा चाहता है कि उन्हें जबरन बांग्लादेश भेज दिया जाए। मोदी जी की शेख हसीना से जो कुर्बत है वो मोदी विरोधियों की आंखों में किरकिरी जैसी खटकती है। 77 साल की शेख हसीना हमारे प्रधानमंत्री जी की बडी बी, यानि बडी बहन हैं। वे चाहें तो आगामी रक्षाबंधन पर शेख हसीना से राखी बंधवाकर उन्हें अपनी धर्म बहन बना सकते हैं। इससे उनके ऊपर मुस्लिम विरोधी होने का जो दाग है वो भी धुल जाएगा और बांग्लादेशी घुसपैठियों का समर्थन भी मिल जाएगा।
शेख हसीना की भारत में मौजूदगी का लाभ भारत अनेक तरीकों से ले सकता है। शेख हसीना 20 साल तक बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रह चुकी हैं। मोदी जी उनसे लम्बे समय तक सत्ता में बने रहने के गुर सीख सकते हैं। हमारी वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण चाहें तो शेख हसीना से ट्यूशन लेकर भारत की जीडीपी बढाने के नुस्खे हांसिल कर सकती हैं। मोदी जी की नीतियों को समझना आसान नहीं है। एक तरफ वे बांटेंगे तो कटेंगे के नारे का समर्थन करते हैं तो दूसरी तरफ वे उस अजमेर शरीफ की दरगाह के लिए चादर भी भेजते हैं जिसके नीचे शिव मन्दिर होने की बात को लेकर मामला अदालत में विचारधीन है। इस बार ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का 813 उर्स पर भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की और उनकी ओर से चादर चढ़ाई जाएगी। पहले पूर्व केन्द्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी पीएम मोदी के प्रतिनिधि बनकर अजमेर शरीफ दरगाह पर चादर चढ़ाने जाया करते थे, इस बार केन्द्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू उनके प्रतिनिधि बनकर जाएंगे।
बहरहाल मुद्दा शेख हसीना का है। आने वाले दिनों में ये देखना होगा कि शेख हसीना भारत के लिए शुभ साबित होती हैं या अशुभ? 2025 में शेख हसीना का भविष्य किस करवट बैठेगा कोई नहीं जानता। शेख हसीना चाहें तो भारत में रहकर कोई किताब लिख सकती हैं ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ की तर्ज पर ‘डिस्कवरी ऑफ बांग्लादेश’ के नाम से।