बेफिक्र रहिये! न कोई कटेगा और न कोई बटेगा

@ राकेश अचल


आखिर होसबोले भी वो ही बोले जो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पिछले कई महीनों से लगातार बोलते आ रहे हैं। दोनों की बोली और शब्दों का स्वरूप एक ही है। दोनों देश के बहुसंख्यकों को भयभीत कर रहे हैं कि यदि ‘बंटोगे तो कटोगे।’ दोनों के निशाने पर देश के वे अल्पसंख्यक हैं जिन्हें आरएसएस आजादी के 77 साल बाद भी भारत का नागरिक नहीं मानता। आरएसएस और महंत योगी आदित्यनाथ के बोल एक संप्रभु, विविधवर्णी देश कि जड़ों में मठा डाल रहे हैं।
मैं उन लोगों में से नहीं हूं जो आरएसएस को आतांकवादी संगठन मानते हैं। मैम आरएसएस को राष्ट्रद्रोह संगठन भी नहीं कहता, लेकिन मेरे मानने और कहने से कुछ नहीं होता, क्योंकि आरएसएस जो है वो खुद प्रमाणित कर रहा है, और तब कर रहा है जब इस विशिष्ट देश ने आरएसएस को 99 साल तक अपनी कोख में पाला पोसा है। ये संघ का शताब्दी वर्ष है। देश ने कभी नहीं कहा कि आरएसएस को भारत में नहीं होना चाहिए। लेकिन आरएसएस है जो न सिर्फ खुद बल्कि अपनी दत्तक संतानों से भी यही कहला रही है कि इस देश को कांग्रेस विहीन होना चाहिए।
दुनिया जानती है कि संघ जिस की बेल है उससे अमृतफल तो नहीं निकल सकते। संघ के भावी मुखिया दत्तात्रेय होसबाले ने उप्र के मथुरा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की वार्षिक बैठक के दौरान उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ वाले बयान का समर्थन किया, उन्होंने कहा कि हमें इसे आचरण में लाना चाहिए, यह हिंदू एकता और लोक कल्याण के लिए जरूरी है। दत्तात्रेय होसबाले अभी आरएसएस के सरकार्यवाह हैं उन्हें सरसंघ चालक बनने से पहले वो सब करना और कहना पड़ेगा जो न सिर्फ अनिवार्य है बल्कि अपरिहार्य भी है।
दुर्भाग्य की बात ये है कि संघ और संघ का दत्तक पुत्र भाजपा एक विचार है, ऐसा विचार जो न सामयिक है और न आवश्यक। संघ और भाजपा का व्यवहार दुनिया में रूढ़ियों से घिरे तालिबानियों से बहुत कुछ मेल खाता है। संघ देश कि विविधता में यकीन करता ही नहीं है, संघ हिन्दुओं की श्रेष्ठता में न सिर्फ यकीन करता है बल्कि उसे बहुसंख्यक हिन्दुओं के मन-मस्तिष्क में ‘अंगद के पैर’ की तरह जमा देना चाहता है। दुर्भाग ये कि संघ को लगभग एक सदी में भी इस योजना में कामयाबी नहीं मिली। मुझे लगता है कि इस अभियान को साकार करने के लिए संघ को सात जन्म तो लेना ही पड़ेंगे।
होसबाले 2021 से ‘सरकार्यवाह’ के रूप में कार्यरत हैं, वे 2024 से 2027 तक अपने इस पद पर रहने वाले हैं दत्तात्रेय होसबाले और योगी आदित्यनाथ में और कोई समानता हो या न हो लेकिन एक समानता ये है कि ये दोनों यदुवंशी हैं। दोनों अविवाहित हैं और दोनों बाल्य-काल से एक ख़ास तरह की दीक्षा से गुजरे हैं जो कोसों तक भारत की राजनीति से मेल नहीं खाती। होसबोले 56 साल से संघ के साथ हैं और आजीवन रहने वाले हैं। उनका एकमेव लक्ष्य वही है जो 1925 में केशव वलीराम हेडगवार ने तय किया था। उनका लक्ष्य तो सौ साल में भी पूरा नहीं हुआ, लेकिन इस देश को आजाद करने का जो लक्ष्य महात्मा गांधी ने 81 साल पहले तय किया था वो न सिर्फ फलीभूत हो चुका है बल्कि पल्ल्वित-पुष्पित भी हो रहा है।
जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि मैं संघ का और समस्त संघमित्रों का बहुत सम्मान करता हूं। सम्मान इसलिए कि वे बहुत त्यागी होते हैं। सादगी पसंद होते हैं। उन्होंने सादगी हेडगेवार से नहीं बल्कि शायद महात्मा गांधी से सीखी है। देश और दुनिया ने गांधी की सादगी को तो अंगीकार कर लिया किन्तु हेडगेवार साहब के हिन्दू राष्ट्र को स्वीकार नहीं किया। यदि किया होता तो ये देश 1947 में ही हिन्दू राष्ट्र बन जाता। हिन्दू राष्ट्र बनकर नेपाल ने देख लिया है। इस्लामिक राष्ट्र बनकर पाकिस्तान ने भी देख लिया है। इन्हें क्या हासिल हुआ ये बताना जरूरी नहीं है। चिंता की बात ये है कि संघ तमाम हकीकत जानते हुए भी हार मानने के लिए तैयार नहीं है।
हमारे बुंदेलखंड में ‘होंस’ को उत्साह या गर्व कहते हैं और होंस से बोलने वालों को गर्वीला मना जाता है किन्तु दत्तात्रय जी जो बोल रहे हैं उसमें गर्वोक्ति बिल्कुल नहीं है केवल दम्भ है दम्भ। इस दम्भ से देश की गंगा-जमुनी संस्कृति तबाह हो रही है। संघ और सभी संघमित्र ‘गंगा-जमुनी’ संस्कृति में यकीन करते ही नहीं हैं। उन्हें लगता है कि संस्कृति मुगलों की देन है और इसका वसुधैव कुटुंबकम से कोई मेल नहीं है, कोई बराबरी नहीं है। जबकि हकीकत कुछ और है। इस हकीकत को न संघ समझना चाहता है और न हमारी भाजपा। समझे तो आखिर कैसे समझे? उसे तो देश को हिन्दू राष्ट्र बनाना है।
देश हिन्दू राष्ट्र बने तो मुझे भी क्या आपत्ति हो सकती है लेकिन हमारा तजुर्बा बता रहा है कि अब बहुत देर हो चुकी है। देश जो राष्ट्र बन चुका है उसे अब बिगाड़ा नहीं जा सकता। नया देश बनाने के लिए बहुत लम्बी लड़ाई लड़ना पड़ती है। महात्मा गांधी के नेतृत्व में देश की जनता ने ये लड़ाई लड़ी है, लड़ी ही नहीं उसे जीता भी है। इस जीत में संघ का कितना योगदान है ये दुनिया जानती है और संघ भी। अब लगता है कि संघ 1947 से पहले की गई अपनी भूल सुधार करने कि कोशिश करना चाहता है। देश को एक बार फिर से नया नाम देना चाहता है। और इसी के लिए ‘बंटोगे तो कटोगे’ का नारा दिया गया है। महात्मा गांधी ने देश को ‘करो या मरो’ का नारा दिया था और होसबोले देश को ‘बंटोगे तो कटोगे’ का नारा दे रहे हैं।
आपको याद रखना होगा कि महात्मा गांधी भी राम भक्त थे और संघमित्र दत्त्तरी होसबोले भी राम भक्त हैं। पूरा संघ रामभक्त है। पूरी भाजपा रामभक्त है, लेकिन पूरा देश रामभक्त नहीं है। राम का सम्मान सब करते हैं। उन्हें देवता भी मानते हैं। मुसलमान भी उन्हें इमामे-हिन्द कहते हैं। यहां राम को मानने वाले भी हैं और न मानने वाले भी, लेकिन सब हैं भारतीय। और ऐसे भारतीय जिनका जन्म दत्तात्रय होसबोले से पहले हुआ था। उन्हें भारतीयता का प्रमाणपत्र न संघ से चाहिए और न होसबोले से। उनका आधारकार्ड ही उनके भारतीय होने का प्रमाण है और संयोग से ये प्रमाण पत्र संघ कार्यालय से नहीं भारत सरकार के कार्यालय से जारी होता है।
मुझे हैरानी तो ये है कि डॉ. मोहन भागवत हों या प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी भी इस हकीकत को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं, उलटे बार-बार इस हकीकत को ठुकराना चाहते हैं। इन सभी महनुभवों ने देश कि जनता के एक बड़े वर्ग के मन में भय पैदाकरने की कोशिश की, लेकिन जब ये कोशिश भी असरकारी साबित नहीं हुई तो ‘सबका साथ, सबका विकास’ से शुरू होकर अब ‘बंटोगे तो कटोगे’ तक आ पहुंचे हैं। संघ और भाजपा जबरन हिन्दुओं के ठेकेदार बन गए हैं। जब संघ और भाजपा नहीं थी तब भी इस देश में हिन्दू थे, हिंदुत्व था।
हमारे संघमित्र शायद नहीं जानते कि भारत पर आर्यों ने, फारसियों ने, अलेक्जेंडर ने, सेल्यूकस ने, यवनों ने, हूणों ने, अरबों ने मुग़लों ने और अंग्रेजों ने हमला किया, शासन किया, लेकिन हिन्दू तब भी थे और आज भी हैं। मैं संघमित्रों को यकीन दिलाना चाहता हूं कि भारत में हिन्दू कल भी रहेंगे और बहुसंख्यक बनकर ही रहेंगे, वे न बंटेंगे और न कोई उन्हें काट पाएगा। ये कोशिश सियासत जरूर करती है, लेकिन सियासत भी हर बार कामयाब नहीं होती। कभी-कभी संघ की विचारधार को कामयाबी मिलती है। जनता भी संघमित्रों को मौक़ा देती है, लेकिन जब हकीकत समझती है तो अपना फैसला बदल भी लेती है। ये लोकतंत्र की विशेषता है। संघ मित्र आज सत्ता में हैं, कल शायद नहीं होंगे और परसों मुमकिन है कि उन्हें फिर सत्ता में आने का मौक़ा मिले। लेकिन ये तभी मुमकिन है जब कि संघमित्र भारत को जबरदस्ती ‘हिन्दू राष्ट्र’ बनाने की जिद और कोशिश छोड़ दे।
मुझे संघ की कोशिशों पर भी यकीन है और जनता पर भी। जनता अंतत: जनार्दन है। जनता भी नेताओं की तरह घाट-घाट का पानी पीती है। जनता ने बीते 77 साल में कांग्रेसियों को भी देखा, समाजवादियों को भी देखा, वामपंथियों को भी देखा, संघियों को भी देख लिया है। जनता जिस दिन चाहेगी कि भारत को ‘हिन्दू राष्ट्र’ बनाना है उस दिन जनता बना लेगी। जनता को तब न संघ की जरूरत होगी न भाजपा की और न कांग्रेस की। संघ यदि सांस्कृतिक संगठन है तो यही काम ईमानदारी से करे। राजनीति करना छोड़ दे। भाजपा का प्रचार करना छोड़ दे। उसके लिए पसीना बहाना त्याग दे। संघ क्या करे या न करे ये तय करना संघ का अपना काम है।
हमारा काम तो मुर्गे की तरह बांग देने का है। हम भले ही रोज हलाल होते रहें किन्तु बांग देना बंद करने वाले नहीं है। बांग मुर्गा अकेला नहीं देता। मुल्ला भी देता है, पंडित भी देता है, शंकराचार्य जी देते हैं। पॉप और पादरी भी करते है। सेवादार भी देते है। जागरण का दूसरा नाम ही बांग देना है। बांग सुनकर जिन्हें जागना होता है वो जाग जाते हैं और जो जंबोझकर अनसुनी करते हैं उनका भगवान ही मालिक होता है। मुर्गे की बांग सभी के लिए होती है। उसका हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई से कोई लेना देना नहीं है। जो जगे उसका भी भला और जो न जगे उसका भी भला। मुर्गा सूफी होता है। धर्म निरपेक्ष होता है। उसे जो चाहे काटकर खा सकता है लेकिन मुर्गा कल भी बांग दे रहा था और आज भी अलार्म के जमाने में उसने बांग देना बंद नहीं किया है, हमारी तरह।