– राकेश अचल
मित्रों की लगातार छोटी होती जा रही सूची में से एक नाम और हट गया। ये नाम था रामकिशोर अग्रवाल का। वे पिछले अनेक महीनों से कर्क रोग से जूझ रहे थे। आज सुबह ईश्वर ने उनकी सुन ली। रामकिशोर उस जमाने के वाणिज्य पत्रकार थे जब देश में और अखबारों में कंप्यूटर नहीं आया था। यही कंप्यूटर बाद में उनका दुश्मन बन गया।
बात कोई चार दशक से भी ज्यादा पुरानी है, उस समय रामकिशोर अग्रवाल दैनिक भास्कर के वाणिज्य संवाददाता हुआ करते थे। ललितपुर कॉलोनी में रहने वाले रामकिशोर जयेन्द्रगंज स्थित दैनिक भास्कर के दफ्तर में कभी पैदल तो कभी साइकिल से आते-जाते थे। वे दैनिक भास्कर के संस्थापक स्व. द्वारिका प्रसाद अग्रवाल के प्रिय थे। उनके मुंह से कभी किसी ने किसी काम के लिए ‘न’ शब्द नहीं सुना। द्वारिका प्रसाद अग्रवाल को चूंकि सभी लोग भाई साहब कहते थे सो रामकिशोर को भी हर किसी से भाई साब कहने की लत लग गई।
मुझे सब ठीक से याद नहीं है शायद 1984-85 रहा होगा, जब मैं दैनिक भास्कर में काम करने पहुंचा तब रामकिशोर अग्रवाल से परिचय हुआ। धीमी आवाज में बोलने वाले रामकिशोर से परिचय कब मित्रता में बदल गया, याद नहीं आता। रामकिशोर अखबार में नौकरी करने के साथ राशन की सरकारी दुकान भी चलाते थे। उस जमाने में मिट्टी का तेल, शक्कर, गेहूं, चावल सब कुछ सरकारी राशन की दुकानों से मिलता था। बाजार से सस्ता होता था। हम जैसे कम तनख्वाह वाले पत्रकारों के लिए रामकिशोर अग्रवाल सबसे बडा आसरा था। वर्षों तक वे हम जैसों की गृहस्थी के सह संचालक थे। दुनिया में रामकिशोर अग्रवाल जैसे लोग बडी संख्या में मिलते हैं। उनकी कोई बडी महत्वाकांक्षा नहीं थी। बस घर-गृहस्थी चलती रहे इतना मिल जाए। उन्होंने जितना चाहा, भगवान ने उन्हें दिया भी।
एक भरे-पूरे परिवार के भरण-पोषण का जिम्मा उनके ऊपर था, इसलिए वे अखबार की नौकरी और राशन की दुकान के संचालन में बेहद गंभीरता से काम करते थे। आंधी, पानी की फिक्र किए बिना समय पर दफ्तर पहुंचना और फिर फोन से बाजार के थोक व्यापारियों से तमाम जिंसों के ही नहीं बल्कि सर्राफा बाजार से सोने-चांदी के प्रतिदिन के भाव लेना और अखबार में अपडेट करना उनकी ड्यूटी थी। दैनिक भास्कर में तमाम संपादक आए-गए लेकिन रामकिशोर की कुर्सी हमेशा सलामत रहे। प्रबंधन की कृपा और काम के प्रति निष्ठा इसकी वजह था। वे ईमानदार तो थे ही। सबके लिए बिना पैसे के बेगार भी खूब करते थे। उन्हें दैनिक भास्कर तब छोडना पडा जब कंप्यूटर का युग आया और प्रबंधन भी द्वारिका प्रसाद अग्रवाल की तीसरी पीढी के हाथों में आ गया।
मुझे अच्छी तरह से याद है कि उन्होंने बहुत भारी मन से दैनिक भास्कर से विदाई ली थी। यदि दफ्तर में अपमानजनक स्थितियां न बनतीं तो मुमकिन था कि वे दैनिक भास्कर कभी न छोडते। दैनिक भास्कर छोडने के बाद वे कुछ दिन बेरोजगार रहे। लेकिन बाद में उन्होंने दैनिक आचरण को अपनी सेवाएं दीं, जो अंत तक जारी रहीं। वे काम से काम रखने वाले वाणिज्य पत्रकार थे। उन्होंने अपना कार्यक्षेत्र बहुत मेहनत और ईमानदारी से सम्हालकर रखा था। आज के जमाने में वे अनफिट कहिए या आउट आफ डेट कहिए, हो चुके थे। कंप्यूटर क्रांति से सब कुछ बदल गया था। बाद में वे कर्क रोग से ग्रस्त हो गए। रामकिशोर तम्बाखू और पान के शौकीन तो थे ही, लेकिन बाद में इन सब चीजों से उन्हें मुक्ति लेना पडी। समय के साथ नेपथ्य में जा चुके रमकिशोर अग्रवाल जैसे पत्रकार अब जन्म नहीं लेते। जो काम के साथ ही अखबार प्रबंधन के भी भरोसे के हों। रामकिशोर अग्रवाल जिस पीढी के पत्रकार थे वो पूरी पीढी एक तरह से कालातीत हो चुकी है। वे मेरे वरिष्ठ थे। लेकिन उन्होंने कभी भी अपनी वरिष्ठता का लाभ नहीं लिया, उलटे मैंने निजी स्तर पर उनसे लाभ लिया।
रामकिशोर के पीछे भरा-पूरा परिवार है। एक बेटे पद्मेश ने उनकी विरासत को सम्हाल लिया है। अब ललितपुर कॉलोनी में जाने पर एक रिक्तता और बढ जाएगी। इससे पहले रामकिशोर अग्रवाल के पडौसी प्रो. प्रकाश दीक्षित के यहां आते-जाते रामकिशोर जी से भी दुआ-सलाम हो जाती थी, लेकिन लम्बे आरसे से उनसे मुलाकात का सिलसिला टूट सा गया था। दिवंगत साथ के प्रति विनम्र श्रृद्धांजलि।