भारतीय संस्कृति एवं दर्शनशास्त्र की अमूल्य धरोहर हैं : प्रसन्न सागर

शरद पूर्णिमा पर एक साथ निकले जैन धर्म के दो चांद
आचार्य श्री प्रसन्न सागर ने जैन धर्म के सबसे बड़े दो संतों के अवतरण दिवस पर किया संबोधित

ग्वालियर, 20 अक्टूबर। आचार्य श्री प्रसन्न सागर महाराज ने जैन धर्म के सबसे बड़े महान संत प्रथम आचार्य श्री विद्या सागर महाराज के 76वें अवतरण दिवस एवं दूसरी आर्यिका गणिनी ज्ञानमती माताजी के 88वें अवतरण 70 सयंम दिवस पर अपनी भावनाओं को प्रकट करते हुए कहा कि आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज किसी धर्म, वेश, परंपरा या किसी महापुरुष का नाम नहीं, वरन् जीवन की खुली किताब का नाम है आचार्य विद्यासागर महाराज। हमें लगता है कि दुनिया के महान संत, समाज सेवक, फकीर, दार्शनिक, अध्यात्मिक नेता, विकास पुरुष, योजना विद, शिक्षाविद, अर्थशास्त्री, नीति निर्माता, प्रबंधन गुरू, राष्ट्र निर्माता, शांति के मसीहा, क्रांतिकारी विचारों वाली विभूतियों को मिलाकर, भगवान से कहां जाए, इस रत्नगर्भा वसुंधरा पर कोई ऐसी रचना करें, जो अलौकिक, अद्वितीय और अनूठी हो। तो वह कृति निश्चय ही आचार्य विद्यासागर जी महाराज जी होंगे। सौम्य स्मित मुद्रा, ललाट पर साधना की जगमगाहट, मुख मंडल पर प्रशांति का अज्रस प्रभाव, प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सर्वथा तनाव का अभाव, निर्भय के निरूप, साहस के शूर, स्वाभिमान की शिखर, दृढ़ता से मुखर, आर्य पुरुषों में श्रेष्ठ, प्रसिद्ध मूलाचार और सिद्ध समयसार, विश्व हित चिंतक, जीवन शिल्पी, कल्याण मित्र, समता समाधान दाता, सृजन धर्मी, अविराम यात्री, गतिशील साधक, हित संपादक, श्रुत आराधक, न्याय तीर्थ, चारित्र ध्वजवाहक, तप संघर्षी, अनुसंधानी, सद्गुणों के समुद्र, धर्म प्रभाकर, महा यशस्वी, जैन संस्कृति के उद्घाटा, जैन शासन के सजग प्रहरी, अनंत आस्था के आयाम, उन्नत प्रशस्त भाल, अजातशत्रु, अमृत पुरुष, संयम सूर्य, हृदय श्रमोमणि संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के युगल चरणों में सिद्धभक्ति-श्रुतभक्ति, और आचार्य भक्ति सहित अनंत प्रणाम। नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु।
आर्षप्रज्ञ, परम गुरु चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी की दिव्य शक्ति आचार्य श्री वीर सागर जी की प्रखर पुण्यवत्ता, असीम वत्सलता से अनुप्राणित, निर्विकारता, तपस्विता और तेजस्विता एवं गुरु दृष्टि की सम्यक आराधिका, उत्कृष्ट साहित्य लेखिका, कला, ॠजुता, मृदुता, वात्सल्यता, सहिष्णुता, संवेदनशीलता, सकारात्मकता, सृजनशीलता, और वस्तुनिष्ठता का मणिकांचन योग स्वाभाविकता, में स्फूर्त हुआ है।
गणिनी प्रमुखा आर्यिका शिरोमणि ज्ञानमती माताजी के 70वे संयम दिवस एवं 88वे आविर्भाव दिवस के पुण्य सील अवसर पर आचार्य श्री प्रसन्न सागर महाराज ने कहा कि मेरे अंतस की गहराई से उपजी वात्सल्य भाव धारा से सिक्त शुभेक्षा अभिव्यक्त है और संप्रेषित है, उनके सुदीर्घ, स्वस्थ एवं कल्याणकारी आध्यात्मिक जीवन के लिए अनंत शुभांशसाये। आपके जीवन में एकाग्रता, नियमितता, पापभीरूता, दृढ़ संकल्पता, ममतामई वात्सल्याशीलता, सहिष्णुता, परिश्रोन्मुखता, सुरभित होते हैं। जो तीर्थंकरों की जन्म स्थली के अद्भुत तथा श्री-युक्त विकास में लक्षित हुई है। लक्ष्य की निर्धारण, नया करने व सीखने की ललक, सकारात्मक चिंतन, योजना का निर्धारण, आलोचना का प्रतिकार, समभाव और सहिष्णुता की संयम शील साधना से, अपने सृजन को अध्यात्मिक और अकादमिक जगत के बीच श्रृद्धाशील, पठन की निमित्त बनाने में सहजता पूर्वक आप सफल हुई हैं। आपके विचार-युगों युगों तक जन-जन की प्रमाद मूर्छा तोड़े, उन्हें गतिशील बनाते रहे और उन्हें एक अधिक सभ्य और शालीन समाज की निर्मिति की भूमिका में योगदान देने की प्रेरणा देती रहें, यही आपके 70वे संयम दिवस एवं 88वें आविर्भाव दिवस के सुमंगलकारी अवसर पर मेरी अनंत शुभाशंसाएं हैं एवं उनके उत्तम स्वास्थ्य की मनोकामना करते हुए प्रभु चरणों में प्रार्थना है कि जैन धर्म के प्रचार प्रसार में उनके योगदान चतुर्दिक योग भूत बने। गणिनी प्रमुखा आर्यिका ज्ञानमती माताजी को शुभ आशीष सहित।