सिद्धों की आराधना के साथ उनके गुणानुवाद को भी करना होगा : विहर्ष सागर

मुनिश्री के सानिध्य में सिद्धचक्र महामण्डल विधान में हुई सिद्धों की आरधान
जैन समाज ने प्रभु की आराधना कर 64 महाअघ्र्य समर्पित किए

ग्वालियर, 20 अक्टूबर। सिद्धत्व को चाहते हो तो सिद्धों के स्वरूप को समझना होगा और सिद्धों की आराधना के साथ उनके गुणानुवाद को भी करना होगा। जब तक सिद्धों की वंदना हम करते रहेंगे, उनके मूल गुणों का चिंतन करते रहेंगे। तो वह दिन दूर नहीं जब एक दिन भगवान की भक्ति करते हुए हम भी सिद्ध बन जाएंगे। यह विचार वात्सल्य सरोवर राष्ट्रसंत मुनि श्री विहर्ष सागर महाराज ने चौथे दिन बुधवार को नई सड़क स्थित चंपाबाग बगीची में श्री दिगंबर जैन बाहुबली मंगल तीर्थधाम समिति की ओर से नौ दिवासिय सिद्धचक्र विधान में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही। मुनि श्री विजयेश सागर महाराज, मुनि श्री विनिबोध सागर महाराज, ऐलक विनियोग सागर महाराज मौजूद थे। प्रवचन से पहले धर्मसभा शुभारंभ भगवान महावीर के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन जैन मिलन ग्वालियर के अध्यक्ष योगेश बोहरा, विनय कासलीवाल, संजीव जैन टीम ने किया।
मुनि श्री विहर्ष सागर महाराज ने कहा कि सिद्धों की आराधना जो व्यक्ति विशुद्धि पूर्वक करता है, उसको उसका फल जरूर मिलता है। अनंतकाल से यह आराधना निरंतर चल रही है। सिद्धचक्र विधान में मुख्य भूमिका मैनासुन्दरी एवं राजा श्रीपाल की होती है, जो भी व्यक्ति धार्मिक अनुष्ठान में मन, वचन, काय से सहभागिता करता है, उसकी यश-कीर्ति में चार चांद लग जाते हैं। जिस व्यक्ति की प्रभु के प्रति श्रृद्धा जागृत हो जाती है वह अंजन से निरंजन बन जाया करता है। अपनी प्रशंसा में कभी ताली नहीं बजाना चाहिए। व्यक्ति को हमेशा दूसरों की प्रशंसा और अपने स्वयं में जो भी कमियां हो उसकी निंदा करें तो ही उसका जीवन सार्थक हो सकता है। अतिथियों का सम्मान समिति के पुत्तनलाल जैन, रामस्वरूप जैन, बालचंद जैन, अध्यक्ष संजय पाण्डवीय, सचिव सौरभ जैन, विकास जैन, पारस जैन, अतुल जैन, दिनेश जैन, विवेक जैन आदि ने चंदन का तिलक व दुपट्टा उढ़ाकर सम्मानित किया।

मुनिश्री ने रिद्धि मंत्रों से बृहद शांतिधारा कराई, इन्द्रों ने उतारी आरती

जैन समाज के प्रवक्ता सचिन जैन ने बताया कि सिद्धचक्र महामण्डल विधान प्रतिष्ठाचार्य अरविंद शास्त्री ने मंत्रोच्चारण के साथ सौधर्म इन्द्रा प्रशांत जैन सहित इन्द्रों ने चारों ओर से जिनेन्द्र देव के ऊपर जलाभिषेक जयकारों के साथ किया। मुनि श्री विहर्ष सागर महाराज नव अपने मुखबिंद से रिद्धि मंत्रों ने बृहद शांतिधारा ज्ञानचंद जैन मनोज जैन परिवार करने का सौभाग्य मिला। अभिषेक के उपरांत भगवान की महाआरती इन्द्रा इन्द्राणियों ने संगीतमय भक्ति में की।

महोत्सव के चौथे दिन इन्द्रा-इन्द्राणियों ने 64 अघ्र्य किए समर्पित

विधान में इन्द्रा-इन्द्राणियों ने पीले वस्त्र धारण कर सिर पर मुकुट गले में माला पहनकर भक्ति भाव के साथ विधान के छन्दों के मंत्रोच्चार कर सिद्धप्रभू की आराधना भक्ति करते हुए 64 महाअघ्र्य जिनेन्द्र देव के सामने मढऩे पर समर्पित किए गए।