– राकेश अचल
युद्ध उन्मादी कोई भी हो, उसे शांति की बात न सुनाई देती है और न पचती है, ये बात साबित हुई है रूस और यूक्रेन के बीच दोबारा से भडके युद्ध से। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने युद्धरत दोनों देशों को शांति पाठ पढाने की भरसक कोशिश की, लेकिन मोदी जी के स्वदेश लौटते ही दोनों देश और ज्यादा खूंखार हो गए। दोनों ने एक-दूसरे पर हमले तेज कर दिए। मुझे ये ताजा हमले शांतिदूत मोदी जी मुंह पर तमाचे जैसे लगे। अशांत बांग्लादेश ने भी भारत से अपने दो राजनयिक वापस बुलाकर एक तरह से भारत की और मोदी की ख्वारी कर दी है।
मोदी जी जब अशांत मणिपुर छोडकर पोलेंड और अमेरिका तथा यूक्रेन के दौरे पर शांतिदूत बनकर गए थे तो मुझे और पूरी दुनिया को ऐसा लगा था कि मोदी जी अपने राजनीतिक जीवन में शायद पहली बार सही कोशिश कर रहे हैं, देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के बताए रस्ते पर आगे बढ रहे हैं, लेकिन दुर्भाग्य कि हम सब गलत थे। उनकी कोशिश एकतरफा और गलत साबित हुई। उनकी बात न मित्र रूस ने मानी और न मित्र यूक्रेन ने। क्योंकि मोदी जी मोदी जी थे, नेहरू जी नहीं। इधर मोदी ने रूस की धरती छोडी उधार यूक्रेन ने रूस पर और जबाब में रूस ने यूक्रेन पर ताबडतोड हमले शुरू कर दिए। अब सवाल ये है कि मोदी जी देश को और स्वदेश क क्या मुंह दिखाएं? उन्होंने तो इस मामले में एक तरह से अपना पूरा राजनीतिक भविष्य दांव पर लगा दिया था।
मोदी जी के शांति प्रयासों में कोई खोट है, ऐसा न मैं कहना चाहता हूं और न ऐसी मेरी कोई मंशा है। मंशा तो युद्धरत देशों की ठीक नहीं है, जिसे मोदी जी शायद समझ नहीं पाए। वे भूल गए कि रूस हो या यूक्रेन अभी अपने ब्रेन से काम ले रहे है। उन्हें पता है कि भारत की मध्यस्थता से दशकों पुरानी दुश्मनी और युद्ध समाप्त नहीं हो सकते। दोनों के बीच संधि का मतलब भारत की जीत और रूस तथा यूक्रेन की हार होगी और दुनिया में कोई, किसी से हारना नहीं चाहता। मोदी जी खुद गुड खाते हैं और गुलगुलों से नेम करते हैं। वे रूस और यूक्रेन से संधि करने की बात करते हैं और खुद अपने पडौसियों से मैत्री करने में नाकाम हो जाते हैं।
भारत की विदेश नीति में हालांकि आमूलचूल परिवर्तन नहीं हुए हैं, किन्तु जितना कुछ बदला है उससे भारत का भला होने के बजाय बुरा ही हुआ है। भारत के निकटतम पडौसी पाकिस्तान से पिछले एक दशक में हमारे रिश्ते सुधरने के बजाय और ज्यादा खराब हुए है। हमारी बोलचाल तक बंद है। बांग्लादेश में तख्ता पलट के बाद भी भारत का नुक्सान ही हुआ, क्योंकि बांग्लादेश की काम चलाऊ सरकार ने नाराज होकर भारत से अपने दो राजनयिक वापस बुला लिए। शायद इसकी वजह भारत में बांग्लादेश की निवर्तमान प्रधानमंत्री श्रीमती शेख हसीना की मौजूदगी है। नेपाल में भारत विरोधी और चीन समर्थक सरकार आ चुकी है। बांग्लादेश ने शेख हसीना के विरुद्ध आधा दर्जन से ज्यादा संगीन अपराधों के मामले दर्ज कर रखे हैं।
युद्धरत यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने कहा है कि दूसरा यूक्रेन शांति शिखर सम्मेलन होना ही चाहिए। अच्छा होगा अगर यह ग्लोबल साउथ के देशों में से किसी एक में हो। हम भारत में वैश्विक शांति शिखर सम्मेलन आयोजित कर सकते हैं। भारत दुनिया का सबसे बडा लोकतंत्र है। इस बारे में सऊदी अरब, कतर, तुर्किये और स्विटजरलैंड के साथ भी बातचीत चल रही है। दरअसल, पहला शांति शिखर सम्मेलन जून में स्विट्जरलैंड में आयोजित किया गया था, जिसमें 90 से अधिक देशों ने हिस्सा लिया था। हालांकि, तब यह शांति सम्मेलन पूरी तरह से विफल हो गया था। लेकिन यूक्रेन चाहता है कि भारत रूस से कच्चा-पक्का तेल मांगना बंद करे। भारत के लिए ऐसा करना मुमकिन नहीं है पेंच यहीं आकर फंस जाता है। काश कि ये शांति सम्मेलन हो पाता। कम से कम भारत को इसका श्रेय भी मिलता और भारत के भीतर की राजनीति में सत्तारूढ भाजपा को इसका रजनीतिक लाभ भी हासिल हो जाता।
मुझे लगता है कि भावी प्रबल है। देश के भीतर ही नहीं बाहर भी भारत के यानि भारत की सरकार के सारे पांसे उलटे पड रहे हैं। न रूस मान रहा है और न यूक्रेन। न बांग्लादेश मान रहा है और न हमारी नई स्वप्न सुंदरी यानि भाजपा की सांसद सुश्री कंगना रनौत। कंगना जी ने देशी राजनीती में घुली अदावत को और गहरा कर दिया है किसान आंदोलन के बारे में टिप्पणी करके। हालांकि भाजपा ने अपने आपको कंगना के बयान से असंबद्ध कर लिया है, लेकिन भारत वाले इतने मूर्ख भी नहीं हैं जो भाजपा और कंगना के व्यवहार को समझ न पाएं। भला कंगना और भाजपा अलग-अलग हो सकते हैं कभी? कंगना ने जो रायता बगराया है उसका असर हरियाणा विधानसभा के चुनावों पर भी पड सकता है।
मूल मिलाकर बात ये है कि विश्व बंधु, विश्व गुरू, शांतिदूत भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी के प्रति मेरा मन श्रृद्धा से भरा हुया है, लेकिन उन्हें घर-बाहर से मिल रही तमाम नाकामियों से मैं विचलित भी हूं। मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि वो महामना मोदी जी की मदद करें। क्योंकि मोदी नहीं तो देश नहीं। आज के समय में वे ही भारत का अतीत, वर्तमान और भविष्य हैं। राहुल-बाहुल कहीं नहीं लगते मोदी जी के सामने।