मनुष्य को श्रृद्धापूर्वक धर्म कार्य करना चाहिए: शंकराचार्य जी

अमन आश्रम परा में चल रही श्रीमद् भागवत कथा का नौवां दिन

भिण्ड, 14 अक्टूबर। अटेर रोड स्थित अमन आश्रम परा में चल रही श्रीमद् भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ के नौवे दिन श्री काशीधर्मपीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नारायणानंद तीर्थ जी महाराज ने कहा कि मनुष्य को श्रृद्धापूर्वक धर्म कार्य करना चाहिए। जिस परमात्मा ने हमें यह शरीर दिया है उसे हम अज्ञानतावस भूले बैठे हैं। दु:खी वही लोग होते हैं जो अपना-अपना करते हैं। धन की तीन गति होती है दान, भोग और नाश, इसलिए धन की शुद्धि हेतु दशांश दान कर्म करते रहना चाहिए। संपत्ति ईश्वर की है, अत्याधिक धन का अर्जन करना अशांति का कारण है, अपनी आवश्यकताओं को नियंत्रित करने की आवश्यकता है। शक्ति सामथ्र्य के अनुसार शुभ कर्म करते रहना चाहिए। धर्म का आश्रय लेकर धीरे-धीरे उन्नति करो जिसको भगवान चाहते उसी को उनके स्वरूप का ज्ञान होता है। शास्त्रों में लिखा है मनुष्य शरीर पाकर जिसने प्रभु कृपा को प्राप्त नहीं किया उसका जीवन व्यर्थ है।
महाराजश्री ने कहा कि अनेक रूपों में भगवान का अवतार होता है, भक्तों के प्रार्थना पर जिसका मन अनियंत्रित हो जाता है वो माता-पिता और गुरु पर दोषारोपण करते हैं, मन को पंचभूतों से जब ऊपर उठाते हैं, तब ईश्वर की अनुभूति होती है। गुरू शब्द तर्क का विषय नहीं हैं, तर्क और वितर्क असत्यवादी लोग करते हैं। अभिमानी लोग समझाने से नहीं मानते, माता-पिता और गुरु के समझाने से न समझे वही अभिमानी है। महाराजश्री ने समस्त देशवासियों सहित नगर वासियों को दशहरा पर्व की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि दशहरा का पर्व अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है। इसी दिन भगवान श्रीराम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी। कार्यक्रम से पूर्व पादुका पूजन आचार्य योगेश तिवारी और आचार्य कृष्ण कुमार दुबे ने सविधि संपन्न करवाया। जिसमें ग्रामवासी सहित क्षेत्रांचल के भक्तजनों ने पूजन का आशीर्वाद प्राप्त किया।