भिण्ड, 09 जनवरी। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष खिजर मोहम्मद कुरैशी अब इस दुनिया में नहीं रहे हैं। उनका गत रविवार को साउदी अरब स्थित मक्का शहर में इंतकाल हो गया। वे अपनी पत्नी के साथ हज यात्रा करने गए थे। उनका अंतिम संस्कार मक्का ही की सरजमी पर किया गया। वे अपने पीछे पत्नी, दो पुत्र जुबैर कुरैशी पटवारी एवं इंजीनियर सद्दाम कुरैशी, तीन पुत्रियों सहित भरापूरा परिवार छोड गए हैं।
एक सामान्य परिवार से निकले खिजर मोहम्मद कुरैशी जिंदा दिल इंसान थे। उन्होंने अपनी किशोरावस्था छोटे-छोटे काम करके शुरू की। सीखने की उनकी आदत ने कभी उन्हें इलेक्ट्रिशियन बनाया तो कभी कुछ और लेकिन सात दशक पहले जब भिण्ड में यूं भी साक्षरता अंतिम प्राथमिकता पर थी उस पर भी वे मुस्लिम परिवार में जन्मे थे जिसमें गिने चुने बच्चे ही स्कूल का मुंह देखते थे, उन गिने चुने में से खिजर कुरैशी भी थे। किशोर से युवा होते होते वे शहर के युवा तुर्क जमात का हिस्सा बन गए। सियासत में रुचि जागी तो सत्ता की जगह संघर्ष, सुविधा की जगह जलालत की राह पकडी। वे कभी छात्रसंघ चुनाव नहीं लडे, लेकिन इलेक्शन के समय उनका घर चुनाव की गोटियां बिछाने का अड्डा होता था। भूपत सिंह जादौन, श्यामसुंदर यादव और खिजर भाई की तिकडी अस्सी के दशक में सबकी जुबान पर होती थी। जन संघर्ष में थाना, कोतवाली और जेल तब राजनीति की डिग्री होती थी, खिजर भाई के पास इनकी तो मानो बडी फाइल थी। वे कट्टर धार्मिक होने के बावजूद सर्वधर्म सद्भाव में पारंगत थे। यह उनकी लोकप्रियता का ही प्रतिफल था कि वे खालिस हिन्दुओं के वार्ड से पार्षद चुने गए फिर भिण्ड नगर पालिका के उपाध्यक्ष। वे शरुआती दौर से ही डॉ. गोविन्द सिंह से जुडे। वे जब कांग्रेस में आए तो खिजर भाई भी कांग्रेस में आ गए। उन्होंने अंतिम सांस तक उनका साथ दिया। डॉ. साहब ने भी उन पर भरोसा करने और सहयोग करने में कोई कसर नहीं छोडी। खिजर भाई ने गांधी मार्केट की जिस हवेली में किराए से रहना शुरू किया, उन्होंने उसी के हिस्से को खरीद लिया, लेकिन उसे छोडा नहीं, क्योंकि वही तो संघर्ष की साथी थी।
वे दूसरी बार सपत्नीक मक्का मदीना में उमरा पर थे। किसी को नहीं पता था कि खिजर भाई जब पहली बार वहां सिर्फ जन्नत का रास्ता देखने गए थे लेकिन इस बार वे जन्नत जाने की जिद ठानकर ही गए है। उनके इंतकाल की सूचना उनके भांजे अतहर मुहम्मद ने दी। अतहर ने बताया कि वहां उनकी तबियत बिगडी लेकिन उन्होंने कहाकि अब वे किसी अस्पताल नहीं जाने वाले। सही जगह पर हूं और सही जगह ही जाऊंगा। वे अपने नसीब के उस गौरवशाली पल को छोडना नहीं चाहते थे जो मुस्लिम धर्म में सबसे उत्कृष्ट माना जाता है। शायद उन्होंने जन्नत की राह देख रखी थी और वे सात जनवरी को मौका लगते ही उस राह पर निकल गए।
सबके अजीज और हमदर्द खिजर मोहम्मद कुरैशी साहब बहुतों (अपनों और परायों) को रुला गए। न जाने कैसे कैसे, कौन कौन (दीन हीन लोग भी) उनसे इमदाद के लिए मिलने आते रहते थे। वह कोई सांसद, मंत्री, विधायक नहीं थे, किंतु कुदरतन रसूख इतना रहा कि दहलीज पर आए व्यक्ति की मदद हो ही जाती थी। उनके घर की बैठक गोया किसी राजा का दीवान-ए-आम था, अब वह सूना ही रहेगा। वे पत्रकार, नेता, समाजसेवी और भी बहुत कुछ थे लेकिन इन सबसे अलग भी उनकी पहचान थी वह थी एक जानदार इंसान की। उनकी संघर्ष, समर्पण और निष्ठा के चर्चे वर्षों से भिण्ड जिले में होते आए हैं अब वे फसानों में कहे जाएंगे।
राजनेता के साथ पत्रकार एवं समाजसेवी भी रहे
उस दौर में पत्रकारिता गौरव का विषय थी तो उन्होंने भी इसे चुना। अपना एक अखबार निकाला नाम रखा ‘निरोध’। फिर आचरण के भिण्ड ब्यूरो चीफ रहे बाद में सण्डे मेल, ऑब्जर्बर एवं राजएक्सप्रेस जैसे कई बडे समाचार पत्रों से जुडे। बहुत से लोग खिजर मोहम्मद कुरैशी को महज राजनीतिज्ञ (नेता) के तौर पर ही जानते हैं, लेकिन उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था। वह एक अच्छे वक्ता, सामाजिक कार्यकर्ता होने के साथ साथ अच्छे पत्रकार, लेखक तथा संजीदा पाठक भी थे। उन्होंने सामाजिक सरोकार के कई जनांदोलनों की अगुवाई की और जेल भी गए। समाजवादी विचारों ने पूर्व मंत्री एवं पूर्व नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविन्द सिंह से जुडवाया, फिर ताउम्र उनके भरोसेमंद साथी बनकर रहे। कुछ माह पहले ही उनके दो-तीन बडे सफल आपरेशन हुए। जिंदगी बेहतर सी होने लगी तो हज यात्रा भी कर ली।