रिश्वत लेने वाली आरोपिया को तीन वर्ष का सश्रम कारावास

मध्यान्ह भोजन के बिलों के भुगतान के ऐवज में ली थी रिश्वत
न्यायालय ने दस हजार जुर्माना भी लगाया

सागर, 06 जनवरी। विशेष न्यायाधीश, (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) जिला सागर आलोक मिश्रा की अदालत ने मध्यान्ह भोजन के बिलों के भुगतान के ऐवज में रिश्वत लेने वाली आरोपी कीर्ति जैन को दोषी करार देते हुए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 7 के अंतर्गत तीन वर्ष सश्रम कारावास एवं दस हजार रुपए जुर्माने की सजा से दण्डित किया है। मामले की पैरवी प्रभारी उपसंचालक (अभियोजन) धर्मेन्द्र सिंह तारन के मार्गदर्शन में सहायक जिला अभियोजन अधिकारी लक्ष्मीप्रसाद कुर्मी ने की।
जिला लोक अभियोजन सागर के मीडिया प्रभारी के अनुसार घटना संक्षिप्त में इस प्रकार है कि 27 फरवरी 2020 को आवेदक हीरालाल चौरसिया ने पुलिस अधीक्षक, लोकायुक्त सागर को संबोधित एक शिकायती आवेदन इस आशय का दिया कि फरियादिया ग्राम सहजपुर में तीन आंगनबाडी केन्द्रों का मध्यान्ह भोजन समूह लक्ष्मी बचत समूह चलाती है व समूह की अध्यक्ष है, जब उक्त समूह के फरवरी माह के बिल भुगतान हेतु अभियुक्त से मिली, तो अभियुक्त ने पांच हजार रुपए रिश्वत की मांग की, वह अभियुक्त को रिश्वत नहीं देना चाहती थी, बल्कि रंगे हाथ पकडवाना चाहती है। जिस कारण उसने अभियुक्त के विरुद्ध लोकायुक्त कार्यालय, सागर में शिकायत के लिए आवेदक हीरालाल चौरसिया को लिखित सहमति देकर कार्रवाई करने हेतु अधिकृत किया। तत्कालीन पुलिस अधीक्षक, विपुस्था लोकायुक्त कार्यालय सागर ने उक्त आवेदन पर अग्रिम कार्रवाई हेतु निरीक्षक मंजू सिंह को अधिकृत किया। आवेदन में वर्णित तथ्यों के सत्यापन हेतु एक डिजीटल वॉयस रिकार्डर दिया गया, इसके संचालन का तरीका बताया गया, अभियुक्त से रिश्वत मांग वार्ता रिकार्ड करने हेतु निर्देशित किया। तत्पश्चात आवेदक द्वारा मांग वार्ता रिकार्ड की गई एवं अन्य तकनीकि कार्रवाईयां कर ट्रेप कार्रवाई आयोजित की गई। नियत दिनाक को आवेदक द्वारा अभियुक्त को राशि दी गई व आवेदक का इशारा मिलने पर ट्रेप दल ने मौके पर पहुंचकर अभियुक्त को घेरे में लिया। आवेदक से रिश्वत राशि के संबंध में पूछा, तो उसने अभियुक्त द्वारा उससे रिश्वत राशि हाथ में लेकर अपने साथ में लिए काले रंग के पिट्ठू बैग में रख लेना बताया, अभियुक्त से पूछे जाने पर उसने भी ऐसा ही बताया। उक्त आधार पर प्रकरण पंजीबद्ध कर मामला विवेचना में लिया गया। विवेचना के दौरान साक्षियों के कथन लेख किए गए, घटना स्थल का नक्शा मौका तैयार किया गया, अन्य महत्वपूर्ण साक्ष्य एकत्रित कर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 7 का अपराध आरोपी के विरुद्ध दर्ज कर विवेचना उपरांत चालान न्यायालय में पेश किया। जहां विचारण के दौरान अभियोजन द्वारा साक्षियों एवं संबंधित दस्तावेजों को प्रमाणित किया गया, अभियोजन ने अपना मामला संदेह से परे प्रमाणित किया। विचारण उपरांत विशेष न्यायाधीष (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) सागर आलोक मिश्रा के न्यायालय ने आरोपी को दोषी करार देते हुए उपरोक्त सजा से दण्डित किया है।