मन और दृष्टि को ऐसा तैयार करो, जो कल्याण का कारण बन सके : विनिश्चय सागर

गुनाबाई मन्दिर में भगवान शांतिनाथ का महामष्तिकाभिषेक कार्यक्रम आयोजित

भिण्ड, 09, सितम्बर। भिण्ड में चल रहे वर्षा योग में आचार्य विनिश्चय सागर महाराज ने अपने प्रवचन में मन और दृष्टि पर विस्तार से श्रावकों को समझाते हुए कहा कि अपने दृष्टिकोण में सुधार करो और समझाओ इस मन को। केवल दृष्टि ही नहीं मन को भी ऐसे तैयार करो कि मन से भी कोई पाप न हो क्योंकि तन का पाप कम भारी होता है और मन का पाप अधिक भारी होता है।
आचार्य विनिश्चय सागर महाराज ने कहा कि दो राजकुमार बचपन में गुरुकुल पढने गए थे। जब उनकी शिक्षा पूरी हो गई, तब उनके वापस आने का अवसर आया। सालों बाद वे लौट रहे थे। इसलिए संपूर्ण नगर को उनके आगमन में, स्वागत में सजाया गया। एक तो वे राजा के पुत्र थे और दूसरे इतने वर्षों के बाद वे अपने गृह नगर लौट रहे थे, तो दोनों में उत्साह बहुत था। हमेंं बहुत सोच-समझना चाहिए इस बात को कि हमें कहां कितनी बार जाना चाहिए। अगर आपको अपना आत्मसम्मान-स्वाभिमान सुरक्षित रखना है तो ये सोचकर ही ससुराल-रिश्तेदारी में जाना चाहिए। वे दोनों राजकुमार जब अपने महल के पास पहुंचे तो महल के झरोखे में वहीं एक बहुत सुन्दर कन्या पर उनकी दृष्टि पड़ी और कर्म का उदय ऐसा आया कि दोनों को ही वो कन्या पसंद आ गई। दोनों भाई थे तो आपस में एक-दूसरे से मन की बात कह दी, लेकिन पीछे हटने को दोनों में से कोई तैयार नहीं हुआ। दोनों ही अपनी बात पर अड़े रहे कि मैं इससे विवाह करूंगा। बात इतनी बढ गई कि एक-दूसरे से लड़ाई शुरू हो गई, म्यान से तलवारें बाहर आ गईं। दोनों एक-दूसरे के रक्त के प्यासे हो गए। राजकुमारों में झगड़ा होते देख मंत्री ने बीच बचाव किया और पूछा कि आखिर झगड़ा क्यों हो रहा है, तब एक राजकुमार ने बताया कि वो कन्या जो झरोखे में खड़ी है, मैं उससे विवाह करना चाहता हूं, लेकिन ये मान नहीं रहा है, ये भी उससे विवाह की बात कर रहा है, अब हममें जो जिन्दा रहेगा वही उससे विवाह करेगा। मंत्री को सदमा सा लगा और वहीं जमीन पर सिर पकडक़र बैठ गया। मंत्री बोला राजकुमारों से कि आप लोग जानते भी हो, वौ है कौन? राजकुमारों ने मना किया कि नहीं हम नहीं जानते। तब मंत्री बोला- आपके गुरुकुल चले जाने के बाद इसका जन्म आपकी ही मां की कोख से हुआ, यानि ये आप दोनों की सगी बहन है। इतना सुनते ही दोनों राजकुमार दंग रह गए। वह बार-बार अपनी सोच, अपने विचार को धिक्कारते रहे और अंत में पश्चाताप के कारण इतना वैराग्य आया कि उन्होंने महल में कदम ही नहीं रखे और राजा-रानी, बहिन और सारे परिवार को रोता-विलखता छोडक़र वन चले गए और दिगंबर गुरु के पास जाकर दीक्षा ले ली, सन्यास ले लिया और दिगंबर मुनि बन गए। घोर तपस्या उन दोनों मुनियों ने की और केवलज्ञान को प्राप्त कर लिया।
मीडिया प्रभारी ऋषभ जैन अड़ोखर ने बताया कि वर्षायोग में शहर के विभिन्न जिनालयों में महाष्तिकाभिषेक व शांतिधारा का कार्यक्रम की श्रंृखला में आज महावीर गंज भिण्ड स्थित शांतिनाथ दिगंबर जैन मन्दिर (गुनाबाई) में मूलनायक भगवान शांतिनाथ का महामस्तिकाभिषेक कार्यक्रम आचार्य 108 विनिश्चय सागर महाराज के सानिध्य में संपन्न हुआ।