– राकेश अचल
आज कोरी गप्प नहीं लिख रहा, आंकडे दे रहा हूं। जिससे आप जान सकें कि भारत बैलगाडी युग से कहां तक आ गया है। पहले आम चुनाव में पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू को चुनाव प्रचार के लिए 1612 किमी रेल से, 5682 मील कार से, 18 हजार 348 किमी हवाई जहाज से और 90 किमी की यात्रा नाव से करना पडी थी। उस जमाने में नेहरू के भारत में इतना पैसा नहीं था कि इसरो के रॉकेट ढोने के लिए किसी ट्रक का इंतजाम किया जा सके, बेचारे वैज्ञानिक बैलगाडियों पर रॉकेट लांचर लादकर चलते थे। ये सब नेहरू की गलत नीतियों की वजह से हुआ, लेकिन आज परिदृश्य बदल चुका है। आज भारत के पास सब कुछ है। चुनाव प्रचार के लिए प्रधानमंत्री को सेना का विमान किराये से नहीं लेना पडता। सीएजी उनके विमान खर्च का हिसाब नहीं ले सकता।
भारत की असली प्रगति दरअसल 2014 से शुरू हुई। आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री ने अपनी आर्थिक नीतियों से भारत को इतना मजबूत बनाया कि हम अपने प्रधानमंत्री के लिए 8400 करोड रुपए का विमान खरीदने के लायक हो गए। आप इसे विमान कहें तो ठीक, मैं तो इसे प्रधानमंत्री की बाइक यानि फटफटिया कहता हूं, क्योंकि वे कभी इसके नीचे उतरते ही नहीं। नेहरू के पास ये सब कहां था? हालांकि कहते हैं कि उनके कपडे पेरिस से धुलकर आते थे। अब ये पेरिस किसी लाउण्ड्री का नाम था या देश का भगवान जाने। भारत में बीते 76 साल में कांग्रेस के आठ, भाजपा के दो और जनता पार्टी, समाजवादी जनता पार्टी और इंडियन नेशनल कांग्रेस (आर) के एक-एक प्रधानमंत्री हुए लेकिन नरेन्द्र मोदी को छोड किसी की हिम्मत नहीं हुई जो 8400 करोड रुपए का विमान प्रधानमंत्री के लिए खरीद सके। देश का डंका बजाने के लिए आज जितनी जरूरत चनदयान-3 की है, उतनी ही जरूरत 8400 करोड रुपए के विमान की भी है। ये आलोचना का विषय नहीं है। ये प्रतिष्ठा का विषय है। हमें मोदी जी का अहसान मानना चाहिए कि उन्होंने अमृतकाल में सबसे मंहगा विमान खरीदकर देश का मान बढाया।
मोदी जी के आलोचकों से मुझे बहुत चिढ है। वे खामखा मोदी जी से चिढते हैं। कांग्रेस ने यानि इन्दिरा गांधी ने भारत से गरीबी हटाओ का नारा दिया, लेकिन गरीबी हटी नहीं बल्कि गरीब बढ गई। इन्दिरा गांधी का बोया अब मोदी जी को काटना पड रहा है। गरीबी तो वे भी नहीं हटा पाए, लेकिन बंदा 80 करोड गरीबों को पांच किलो मुफ्त का अन्न देने की क्षमता तो रखता है। इतनी बडी चुनौती का सामना करते हुए अपने लिए 8400 करोड का विमान खरीदना और चंद्रयान-3 के लिए इसरो को 615 करोड रुपए देना कोई आसान काम नहीं है। मैं पूरे यकीन से कह सकता हूं कि यदि मोदी जी न होते तो इसरो को आज भी अपना चंद्रयान-3 चन्द्रमा तक पहुंचाने के लिए किस बैलगाडी को किराये पर लेना पडता। कायदे से इस उपलब्धि के लिए मोदी जी को भारतरत्न देने की घोषणा हो जाना चाहिए। नेहरू, गांधी तो बिना कुछ किए ही भारत रत्न का तमगा अपने गले में लटका चुके हैं। अटल बिहारी बाजपेयी को भी बहुत पापड बेलने पडे थे भारत रत्न पाने के लिए। लेकिन मोदी जी ने सचमुच काम किया है। वे देश को पांच ट्रिलियन की अर्थ व्यवस्था बनाने जा रहे हैं, लेकिन शर्त एक ही है कि देशवासी उन्हें तीसरी बार भी देश का प्रधानमंत्री बनाएं। यदि देश ने किसी पदयात्री को ये मौका दिया तो तय मानिये कि देश कि अर्थ व्यवस्था का भट्टा बैठ जाएगा, इस देश ने पहले भी तो नेहरू और इन्दिरा गांधी को तीन बार प्रधानमंत्री बनाने की गलती की है। एक बार एक गलती और सही। क्या फर्क पडता है किसी उत्साही को आजमाने में?
देश के तमाम प्रधानमंत्री ऐसे थे, जिन्होंने दूसरे और तीसरे टर्म के लिए कोशिश ही नहीं की या उन्हें मौका नहीं मिला। लाल बहादुर शास्त्री हों, मोरारजी भाई देसाई हों, चौधरी चरण सिंह हों, राजीव गांधी, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, पीव्ही नरसिम्हा राव, देवगौडा, इन्द्र कुमार गुजराल ऐसे ही प्रधानमंत्री थे। ये अपने लिए महंगा विमान कैसे खरीदते। अटल जी और डॉ. मनमोहन सिंह दो बार प्रधानमंत्री बने भी तो इतना महंगा विमान खरीदने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। जिस देश में आधी आबादी मुफ्त के अन्न पर गुजर-बसर करती हो उस देश में 8400 करोड रुपए का विमान खरीदने की हिम्मत जुटाना कोई हंसी-खेल है?
मैं अपने प्रधानमंत्री की हिम्मत की हमेशा दाद देता हूं। वे कम से कम इतनी हिम्मत तो रखते हैं कि ब्रिक्स सम्मेलन में जाएं और यदि उनका स्वागत करने राष्ट्रपति न आए तो वे अपने महंगे विमान से नीचे नहीं उतरे। कम से कम दक्षिण अफ्रिका को महंगे विमान की इज्जत का तो ख्याल रखना चाहिए था। ये तो हमारे प्रधानमंत्री जी की दरियादिली है कि वे बाद में उपराष्ट्रपति से अपनी अगवानी कराने पर मान गए। दक्षिण अफ्रीका की हंसी न उडे इसलिए उन्होंने दरियादिली दिखाई। अन्यथा दक्षिण अफ्रिका वाले तो शी जिनपिंग को भी परेशां करने से पीछे नहीं रहते। उन्होंने शी के अंग रक्षकों को रेड कार्पेट पर पांव नहीं रखने दिए। बेचारे सही के ऊपर क्या गुजरी होगी? उनके अंग बिना रक्षको के कैसे सुरक्षित रहे होंगे? हमारे प्रधानमंत्री जिस तरह राजनीति से ऊपर उठकर सबको साथ लेकर सबका विकास कर रहे हैं, उसी तरह मान-अपमान से ऊपर उठकर विदेश यात्राएं भी करते है कभी कोई उनके पांव छूता है तो कभी कोई नहीं भी छूता। इससे क्या फर्क पडता है। प्रधान जी की दरियादिली के एक ढूंढो तो सौ उदाहरण मिल सकते हैं। प्रधानमंत्री जी की दरियादिली है कि जिस अमेरिका ने प्रधानमंत्री बनने से पहले उन्हें अमेरिका जाने के लिए वीजा तक नहीं दिया था, उसी अमेरिका के उम्रदराज राष्ट्रपति के भारत दौरे के समय वे दिल्ली को चार दिन की छुट्टी पर भेज रहे हैं। अमेरिका ने तो कभी भारत के प्रधानमंत्री के लिए वाशिंगटन में चार दिन की तो छोडिये एक दिन की भी छुट्टी घोषित नहीं की! लेकिन हम तो हम हैं, सब भुला देते हैं। हमें तो अपना डंका बजाने से मतलब है।
मैं मानता हूं तो आप भी माने ये जरूरी नहीं कि हमारे प्रधानमंत्री जी पक्के कर्मयोगी हैं। वीतरागी हैं। आपने देखा कि वे 24 में से 18 घण्टे काम करते हैं। लगातार चुनाव प्रचार करते है। उदघाटन, शिलान्यास करते हैं। ये सब विकास के लिए ही तो किया जाता है। आपने देखा कि हमारा मणिपुर तीन महीने से ज्यादा समय तक जला (आज भी जल रहा है) लेकिन प्रधानमंत्री जी एक दिन भी विचलित हुए। उन्होंने किसी से कुछ कहा? संसद में हंगामा होता रहा, लेकिन उन्होंने अपनी मौन साधना भंग नहीं होने दी। वे बोले, लेकिन तब बोले जब उनका मन हुआ। वे अपने मन की सुनते हैं, पक्के मनमौजी है। मन की मौज न हो तो सब बेकार है। मन मौजी होने में और मनमानी करने में अंतर है। ठीक वैसा ही अंतर जैसा पेरिस और पेरिस लॉन्ड्री में।
इस समय देश से ज्यादा देश का विपक्ष प्रधानमंत्री जी से डरा हुआ है। विपक्ष को आशंका है कि प्रधानमंत्री कहीं आने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में चंद्रयान-3 की कामयाबी को उसी तरह न भुना लें जैसे वे पुलवामा को भुना चुके हैं। सवाल ये है कि प्रधानमंत्री जी को ऐसा क्यों नहीं करना चाहिए? उन्हें पूरा हक बनता है कि वे चंद्रयान-3 की कामयाबी को चुनावों में जितना चाहें भुनाएं। वे आखिर देश के प्रधानमंत्री हैं। उन्हें यदि किसी भी घटना-दुर्घटना को भुनाना आता है तो किसी को आपत्ति क्यों? मुझे तो बिल्कुल नहीं है। मैं तो चाहता हूं कि चंद्रयान-3 की कामयाबी के बदले जितने ज्यादा से ज्यादा वोट प्रधानमंत्री जी और उनकी पार्टी को मिल सकते हैं, जरूर मिलें। विपक्ष को इसका कोई हक नहीं है कि वो प्रधानमंत्री जी को चंद्रयान-3 की कामयाबी को भुनाने से रोके। विपक्ष का काम है सडकें नापना, सो शौक से नापे, किसी ने रोका है क्या? बहरहाल प्रधानमंत्री जी को बहुत-बहुत बधाइयां, शुभकामनाएं।