– राकेश अचल
हिन्दी पट्टी की सियासत में अगर सबसे ज्यादा गर्म कोई खबर है तो वो है पूर्व मंत्री और कवियत्री मधुमिता शुक्ला की हत्या के आरोप में उम्र कैद की सजा भुगत रहे अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी की समय पूर्व रिहाई की। उत्तर प्रदेश में बुलडोजर संस्कृति के जनक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके राज्य की राज्यपाल ने मिलकर कानूनी प्रावधानों के तहत मानवीय आधार पर पंडित जी को रिहा किया है। पंडित जी ने अपनी उम्रकैद की ज्यादातर सजा जेल के बजाय अस्पताल में रहकर काटी।
अमरमणि त्रिपाठी के अतीत के बारे में पूरा देश नहीं तो कम से कम पूरा उत्तर प्रदेश तो जानता ही है, इसलिए उनकी जन्म कुण्डली खोलकर रखने के बजाय मैं सीधे उत्तर प्रदेश की दरियादिल सरकार के फैसले पर बात करता हूं। उप्र में भाजपा की सरकार है। भाजपा दूसरे राजनीतिक दलों के मुकाबले चाल, चरित्र और चेहरे के मामले में भिन्न होने का दावा करती रही है, लेकिन हकीकत में ऐसा है नहीं। भाजपा और उसकी सरकार की चाल, चरित्र और चेहरा भी ठीक वैसा ही है जैसा की बिहार में जेडीयू या उसकी सरकार का है। वहां भी सजायाफ्ता नेताओं के प्रति रहमदिली दिखाई जाती है और उप्र में भी। अमरमणि की रिहाई से भाजपा का रहमदिल चेहरा देश एक बार फिर देख सकता है।
उप्र में अमरमणि और उनकी पत्नी हत्या के मामले में ताउम्र सजा पाने वाले अकेले अपराधी नहीं है। उम्रकैद की सजा पाए कितने हत्यारे उप्र की जेलों में हैं, इसका सही आंकडा शायद उप्र की उत्तरदायी सरकार के पास भी नहीं होगा। इन अपराधियों में से कितनों का व्यवहार, सदव्यवहार की श्रेणी में आ गया है और कितने अपनी जिंदगी की अंतिम सांसें गिन रहे हैं, ये भी शायद ही सरकार को न पता हो। लेकिन सरकार अमरमणि दंपत्ति को जानती है, इसलिए कानूनी प्रावधानों का इस्तेमाल कर उन्हें समय से पूर्व रिहा करा चुकी है। अमरमणि रिहा न होते तो भी कुछ खास नहीं होता, लेकिन अब उनकी रिहाई उप्र के लिए बहुत खास होती दिखाई दे रही है। इस देश में कानून का राज है। संविधान है, विधान है, न्यायपालिका है, लेकिन सबकी अपनी-अपनी प्रतिबद्धताएं हैं। अमरमणि त्रिपाठी की समय पूर्व रिहाई को देश का सुप्रीम कोर्ट भी नहीं रोकता, इंकार कर देता है उप्र सरकार के निर्णय के खिलाफ आदेश देने से। आखिर सरकार ने कोई गैरकानूनी काम तो किया नहीं है। कानून में प्रावधान है सदाचार वाले कैदियों को समय पूर्व रिहा करने का सो कर दिया। अब स्व. मधुमिता शुक्ला के परिजन रोते-चिल्लाते रहें, कौन सुनता है उनकी चीख-पुकार?
उप्र की सियासत में अमरमणि त्रिपाठी जैसे नेता (नेता लिखने में शर्म आती है मुझे) हर राजनितिक दल की जरूरत रहे है। अमरमणि ने अपने रसूख की वजह से सपा, बसपा और भाजपा की सरकारों में सत्ता का सुख भोगा और इसके इतर एक कवियित्री का शोषण करने के बाद उसकी हत्या का जघन्य अपराध उन्हें जेल तक ले गया। अमरमणि दो दशकों से जेल कम अस्पताल में थे। उनके बिना उप्र की सियासत में एक सन्नाटा सा था। एक व्यक्ति का कैसे कायांतरण हो सकता है अमरमणि इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है। अमरमणि त्रिपाठी ने अपनी राजनीति के शुरुआत भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से की थी, यानि उसने उस स्कूल में आरंभिक शिक्षा ली थी जो पूरी दुनिया में शोषण और गैर बराबरी के खिलाफ संघर्ष का पाठ पढाता है, लेकिन वामपंथी स्कूल अमरमणि को रास नहीं आया तो वो कांग्रेस में शामिल हो गया। अमरमणि त्रिपाठी ने कांग्रेस के बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी का अपना राजनीतिक गुरू बनाया और उनसे राजनीति में बाहुबल के गुर सीखे। राजनीति में आने से पहले ही अमरमणि अपराध की दुनिया में भी प्रवेश कर अपनी जगह बना चुका था। अमरमणि पर हत्या, लूट और मारपीट जैसे कई मामले दर्ज थे।
हत्या जैसे जघन्य मामले में उम्रकैद की सजा भुगत रहे अमरमणि त्रिपाठी 1996 में पहली बार महाराजगंज की नौतनवा विधानसभा सीट से कांग्रेस के टिकट से चुनाव लडा और जीत हासिल की। इसके बाद वो लगातार चार बार इस सीट से विधायक रहा। 1997 में वो कांग्रेस को छोडकर लोकतांत्रिक कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गया और फिर कल्याण सिंह की सरकार में मंत्री बना। वर्ष 2001 में बस्ती के एक बिजनेसमैन के बेटे के अपहरण मामले में उनका नाम आया तो भाजपा ने अमरमणि से कन्नी काट ली। लेकिन ये अतीत की बात है। भाजपा में अछूत घोषित होने के बाद 2002 में अमरमणि त्रिपाठी बसपा के साथ आ गया और उसने नौतनवा सीट से ही फिर टिकट हासिल कर लिया और इस सीट पर ज्यादातर ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या होने का उन्हें फायदा मिला और वो चुनाव जीत गया। 2002 में मायावती की सरकार बनाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई, लेकिन 2003 में वो समाजवादी पार्टी के साथ था। अमरमणि ने मायावती की सरकार गिरवा दी। ईनाम में मुलायम सिंह सरकार में उसे कैबिनेट मंत्री बनाया गया।
अमरमणि आज फिर से भाजपा की जरूरत बन गया है। इसीलिए उसे समय से पूर्व जेल से बाहर निकाला गया है। कोई माने या न माने लेकिन उप्र की जनता के साथ सियासत के बारे में दिलचस्पी रखने वालों को पता है कि अमरमणि के बिना अगले साल होने वाले आम चुनाव में सत्तारूढ भाजपा की दाल आसानी से गलने वाली नहीं है। अमरमणि की रिहाई से उप्र के ब्राह्मणों को खुश करने की नाकाम कोशिश की जा रही है। हालांकि उप्र के ब्राह्मण भले ही एक लम्बे आरसे से सत्ता से दूर हैं, किन्तु उनका दम्भ अभी मरा नहीं है जो एक हत्यारे की रिहाई से वे झांसे में आ जाएं।
अमरमणि ने कवियित्री मधुमिता शुक्ला से प्रेम किया या नहीं किया, लेकिन उसके गर्भ में अमरमणि के अंश मिले। अमरमणि ने मधुमिता की गोली मारकर हत्या करा दी। उसके लिए ये कोई कठिन काम नहीं था, किन्तु दुर्भाग्य ने उसके पाप को छिपाने से इंकार कर दिया था। इसलिए उसे और उसकी पत्नी को सजा मिली। लेकिन अब अमरमणि भाजपा की वाशिंग मशीन में धुलकर बाहर निकला है। मुमकिन है कि भाजपा उसे भविष्य में अपना प्रत्याशी न बनाए, लेकिन उसे बिना प्रत्याशी बनाए भी उसका इस्तेमाल करने से भाजपा को कोई नहीं रोक सकता। सरकारों को कोई रोक ही नहीं सकता। बिहार में आनंद मोहन की रिहाई से किसने नीतीश कुमार को रोक लिया? हत्यारे और व्यभिचारी हमेशा से सियासत की जरूरत रहे हैं। हर राजनीतिक दल को उनकी जरूरत होती है। हर दल में ऐसे लोगों की अच्छी खासी संख्या है। ऐसे अपराधियों को कोई दल अछूत नहीं मानता।
आज हमें भाजपा की तमाम उपलब्धियों पर इतराने के लिए कहा जाता है। हम चंद्रयान-3 को भी भाजपा की उपलब्धि मानकर इतराते हैं, तो हमें हत्यारे अमरमणि त्रिपाठी की रिहाई के लिए भी भाजपा पर गर्व करना चाहिए। कम से कम इस बहाने ये तो प्रमाणित हो गया कि भाजपा आज भी दलितों, आदिवासियों, पिछडों के मुकाबले ब्राह्मणों की ज्यादा हितैषी पार्टी है। यूपी के ब्राह्मणों को भाजपा सरकार की रहमदिली के लिए बाबा आदित्यनाथ का नागरिक अभिनंदन करना चाहिए। बधाइयां भेजना चाहिए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्ढा और देश के प्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री को। भाजपा ने जो सहृदयता दिखाई है वो यूपी के इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित की जाएगी। जय हो, जय जय हो।