नागों को पूजिये लेकिन दूध मत पिलाइये

– राकेश अचल


भारत में श्रवण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नागों को पूजने का विधान है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी नाग देवता माने गए हैं। नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा, व्रत रखने और कथा पढने से व्यक्ति को कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है, भय दूर होता है और परिवार की रक्षा होती है। दुर्भाग्य ये है कि हमने जहरीले नागों को पूजने के साथ ही संपदायुक्ता के जहर से भरे खादीधारी नागों की भी पूजा शुरू कर दी, आज ये खादीधारी नाग पूरे लोकतंत्र और मानवजाति के लिए खतरा बन गए हैं।
आज से पांच दशक पहले हमारी मां जीवित नागों की पूजा करती थीं। गली-गली में सपेरों के दल नागों को लेकर घर-घर दस्तक देते थे। सपेरों की बीन की धुन सुनकर मन झूमने लगता था। घर आए नागों को अक्षत, चंदन लगाकर पूजा जाता था, उन्हें दूध पीने को दिया जाता था, हालांकि वे दूध पीते कभी नहीं दिखाई दिए। सपेरों को नगद दक्षिणा के साथ नए-पुराने वस्त्र दिए जाते थे। नाग मन्दिरों पर नाग प्रतिमाओं की पूजा के लिए कतारें लगती थीं। लोग भक्तिभाव से नागों को पूज कर कृतार्थ अनुभव करते थे, ताकि नाग व्याधि से बचे रहें।
दुनिया में नागों की 3600 परजात्यां हैं, भारत में इनकी संख्या 333 है, लेकिन हम अष्टनागों को ही जानते हैं। ये अष्टनाग अनंत, वासुकि, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीर, कर्कट और शंख हैं। इन्हें पूजने से ही बांकी के नाग भी संतुष्ट हो जाते हैं। मान्यता है कि महाभारत काल में युधिष्ठिर के बाद अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को राजा बनाया गया। एक शाप की वजह से परीक्षित की मृत्यु तक्षक नाग के डंसने से हो गई थी। परीक्षित के बाद उसका पुत्र जनमेजय राजा बना तो उसने अपने पिता की मृत्यु का बदला नागों से लेने के लिए पृथ्वी के सभी नागों को एक साथ मारने के लिए नाग दाह यज्ञ करवाया। इस यज्ञ की वजह से नाग खत्म होने लगे। जब ये बात आस्तिक मुनि को मालूम हुई तो वे तुरंत राजा जनमेजय के पास पहुंचे।
कहा जाता है कि दयालु आस्तिक मुनि ने राजा जनमेजय को समाझाया और नाग यज्ञ रुकवाया। जिस दिन ये घटना घटी, उस दिन सावन शुक्ल पक्ष की पंचमी थी। उस दिन आस्तिक मुनि के कारण नागों की रक्षा हो गई। इसके बाद से नाग पंचमी पर्व मनाने की शुरुआत हुई। हम तबसे अब तक नाग पंचमी तो मनाते हैं, लेकिन नागों के सबसे बडे दुश्मन हम लोग ही हैं। हमने उनके आवास छीन लिए, उन्हें मारने को अपना परम धर्म समझ लिया। इसलिए हमारी नाग पूजा एक छद्म से ज्यादा कुछ नहीं। कालांतर में नागों ने मनुष्य से अपना बदला लेने के लिए नेताओं का रूप धारण कर लिया है। आज वे खादीधारण करते हैं और जनसेवा के नाम पर मनुष्य प्रजाति को हर रोज डंसते हैं।
हमारे पुरखे कहते थे कि अब लोकतंत्र में चारों तरफ नाग ही नाग हैं। आप इनके संरक्षण में रहने के लिए अभिशप्त हैं। आप एक नाग नाथ को गले से उतारेंगे तो दूसरे सांपनाथ को गले में डालना पडेगा। नागों के नाम इतने विविध हैं कि कहना मुश्किल है, इनकी प्रजातियां 3600 हैं या 36 हजार। लोकतंत्र में नागलीला आपको पंचायत से लेकर संसद की सीढियों तक देखने को मिल सकती है। इन्हें पहचानना आसान काम नहीं। इसलिए कलियुग में नाग किसी भी नाम से सामने आएं तो इन्हें या तो पूजिये या हाथ जोडकर विदा कर दीजिये। चुनाव के समय देश की धरती नागों से भर जाती है।
हम भारतीय धारणाओं और किवदंतियों पर भरोसा करने वाले लोग हैं। हमारी दादी बताती थीं कि नाग दाह यज्ञ की आग से बचाने के लिए आस्तिक मुनि ने नागों पर दूध डाल दिया था। इसी मान्यता की वजह से नाग पंचमी पर नाग देव को दूध चढाने की परंपरा शुरू हुई है। लेकिन इस परम्परा से नागों का जीवन खतरे में पड गया। कालांतर में हमारे यहां नाग या तो पथरा गए हैं या उनकी प्रतिमाएं बन गईं हैं या फिर उन्होंने अपने आपको तांबें के नागों में तब्दील कर लिया है। आप चढाते रहिये दूध, उन्हें कोई फर्क नहीं पडता। नाग अपनी पूजा से कितने खुश होते हैं, ये कोई नहीं जानता, क्योंकि नाग अपनी खुशी नाच-गाकर प्रकट नहीं करते। खादीधारी नाग अवश्य अपनी खुशी जताने के लिए रैलियां करते हैं। पदयात्राएं और रथयात्राएं निकालते हैं।
जमीन के नीचे बिलों और बामियों में रहने वाले नागों ने मनुष्यों से बचने कि लिए उनकी आस्तीनों को ही अपना घरोंदा बना लिया है। धरती के नीचे रहने वाले नाग भले ही मणिधारी और इच्छाधारी न होते हों, लेकिन सियासत के खादीधारी सांप मणिधारी भी होते हैं और इच्छाधारी भी। खादीधारी सांपों के बिलों में यदि ईडी और सीबीआई तलाशी ले तो दुनियाभर की संपत्ति मिल सकती है, लेकिन दुर्भाग्य ये है कि ऐसा होता नहीं है। ईडी और सीबीआई भी खादीधारी सांपों से डरती है, क्योंकि अंतोगत्वा नियुक्ति और प्रमोशन में तो इन्हीं नागों और सांपों की चलती है।
चूंकि नागों और सांपों से बचना असंभव है, इसलिए चुनाव के वक्त कोशिश करना चाहिए कि कम से कम जहरीले सांप चुने जाएं। हमारे पास सिंघासन पर बैठने के लिए नागों का कोई विकल्प नहीं है। जो भूमिनाग यानि केंचुए हैं वे संवैधानिक पदों पर काबिज हो जाते हैं। नागों और भूमि नागों में फर्क ये होता है कि नाग फुफकारते हुए बिना रीढ के भी एक-दो फुट तक खडा रह सकता है, किन्तु भूमि नाग की तो रीढ की हड्डी होती ही नहीं है। नाग को आप मार भी सकते हैं। पकडकर अजायब घर में भी डाल सकते हैं, लेकिन भूमिनाग तो अमर हैं। खण्ड-खण्ड होकर भी जीवित रहता है। उसे अपना वंश बढाने के लिए प्रजनन की भी आवश्यजता नहीं होती। नाग के पास तो वंश वृद्धि के लिए नागिन भी होती है। नागिन अण्डे भी देती है, उनसे सपोले निकलते हैं। किन्तु भूमिनाग को ऐसा उच्च नहीं करना पडता। भूमिनाग बिना अण्डे दिए भी अपनी प्रजाति को आगे बढा लेता है।
सांप उड नहीं सकते थे, लेकिन खादीधारी सांप सब कुछ कर सकते हैं। ये उड सकते हैं, दौड लगा सकते हैं, छिप सकते हैं, कुलांचें भर सकते हैं। मैंने इन्हें हर गतिविधि में संलग्न देखा है। ये मणिपुर में भी मिल सकते हैं और हरियाणा में भी। ये जहर फैलाने के साथ आग भी लगा सकते हैं। हिंसा भी फैला सकते हैं। हत्याएं भी करा सकते हैं। इसलिए इन्हें दूर से पूजते रहो, आस्तीनों में मत पालो। हम दुनिया के उन लोगों में से हैं जो नागों का जन्म मनुष्य योनि से ही मानते हैं। दंतकथा है कि महाभारत काल में ऋषि कश्यप का विवाह प्रजापति दक्ष की पुत्री कद्रु से हुआ था। इन दोनों से ही नागों का जन्म हुआ। कद्रू ने एक हजार नाग प्रजातियों को जन्म दिया था। इनमें से आठ नाग खास थे। इनके नाम हैं- वासुकि, तक्षक, कुलक, कर्कोटक, पद्म, शंख, चूड, महापद्म और धनंजय। वासुकि को नागों का माना जाता है। तक्षक नाग ने राजा परिक्षित को डसा था।
बहरहाल नाग पंचमी पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। उम्मीद करता हूं कि आप लोकतंत्र कि नागों को पहचानकर उनके साथ यथायोग्य व्यवहार करेंगे। नाग भले ही जहरीले होते हों, लेकिन मनुष्य को जहरीला नहीं होना चाहिए।