अब देश में एटीएम सरकार

– राकेश अचल


देश में लोग भले ही प्रधानमंत्री जी की शैक्षणिक उपाधियों को लेकर विवाद खडे करते हों, किन्तु एक अकेला मैं हूं जो उनकी मेधा का कायल हूं। सबसे बडी बात तो ये है कि हमारे प्रधानमंत्री जी जो बोलते हैं उसमें से ज्यादातर उनके ‘मन की बात’ होती है। वे ‘मन की बात’ मन में नहीं रखते, उसे सार्वजनिक करते हैं। उन्होंने पहली बार छत्तीसगढ़ में रहस्योदघाटन किया कि छग की राज्य सरकार कांग्रेस का एटीएम है। प्रधानमंत्री के इस रहस्योदघाटन से मुमकिन है कि कांग्रेसियों को बुरा लगा हो, लेकिन मुझे कोई हैरानी नहीं हुई।
हमारे प्रधानमंत्री जी दिल्ली आने से पहले डेढ़ दशक तक अपने गृह राज्य गुजरात के मुख्यमंत्री रहे हैं, उनसे बेहतर कोई नहीं जानता होगा कि राज्य सरकारें एटीएम होती हैं या नहीं? अगर नहीं होतीं तो क्या मुमकिन था कि भाजपा और संघ हमारे मोदी जी को अचानक 2014 में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर देती और लालजी भाई देखते रह जाते? जहां तक मेरा अपना तजुर्बा है कि जो एटीएम जितना समर्थ होता है उसकी मान्यता उतनी ज्यादा होती है।
बुंदेलखण्ड में कहते हैं कि कमाऊ पूत ही मां-बाप को ज्यादा प्यारा होता है। इस हकीकत से लोग वाकिफ हैं कि जितने भी राजनीतिक दल है वे राज्य सरकारों की कमाई से ही चलते हैं। कोई राजनीतिक दल न कोई उद्योग चलता है और न उसके पास खेती होती है। कार्यकर्ताओं की सदस्यता शुल्क और उद्योग घरानों के चंदे से कोई दल नहीं चलता। अलवत्ता एक जमाने में वामपंथी दल जरूर अपने सांसदों के वेतन से चलाए जाते थे। देश में आजादी के बाद से ही राज्य सरकारें राजनीतिक दलों का सबसे बडा आसरा रही हैं। जो मुख्यमंत्री अपने है कमान को जितना ज्यादा कमा कर देता रहा उसे उतना ज्यादा महत्व मिलता रहा। भाजपा को ये मौका बहुत बाद में मिला कि वे अपने दल की सरकार को एटीएम की तरह इस्तेमाल कर सकें।
प्रधानमंत्री जी के इस आक्षेप से कांग्रेस और कांग्रेसियों को विचलित होने के बजाय सहज भाव से स्वीकार कर लेना चाहिए। इसमें वैसे भी बुरा क्या है? देश में भाजपा की राज्य सरकारें सबसे ज्यादा हैं, यानि भाजपा के पास सबसे ज्यादा एटीएम सरकारें हैं और इन्हीं के बल पर भाजपा कांग्रेस को पटकनी देती आ रही है। देश में कांग्रेस की राज्य सरकारें गिनी-चुनी हैं, लेकिन इनके बूते से ही कांग्रेस रेस में शामिल है, बाहर नहीं हुई है। जिनके पास सरकारी एटीएम नहीं है वे पार्टियां मरणासन्न हैं, फिर चाहे वे बहुजन समाज पार्टी हो या समाजवादी पार्टी। आप ने भी दो राज्यों में एटीएम सरकारें हासिल कर लीं। इसलिए आज-कल सबसे ज्यादा उछल-कूद आप ही कर रही है। बांकी जिन क्षेत्रीय दलों के पास केवल एक-एक एटीएम हैं वे बेचारे राज्य की सीमाओं से बाहर नहीं निकल पा रहे।
राज्य सरकारों को एटीएम के तरह इस्तेम्मल करना राजनितिक दलों की विवशता है। इसी विवशता के चलते देश में सबसे ज्यादा राजस्व कमाने वाले विभागों में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं। किसी भी राज्य में आबकारी, परिवहन और वाणिजीकर विभाग जितना राजस्व राज्य सरकार के लिए कमाते हैं, उससे कुछ कम या कुछ ज्यादा राजनीतिक दलों के लिए कमाया जाता है। इसके साक्ष्य नहीं दिए जा सकते, किन्तु लगातार मंहगे होते चुनावों से इसका अनुमान लगाया जा सकता है। आखिर चुनावों में अंधाधुंध खर्च के लिए पैसा आता कहां से है? इन्हीं एटीएम से पिछले साल पांच राज्य विधानसभाओं के चुनावों में भाजपा ने नंबर एक में 344 करोड रुपए से ज्यादा खर्च किया था। कांग्रेस के पास खर्च करने के लिए 194 करोड रुपए ही थे।
अगर केन्द्र की सत्ता हासिल करने के लिए राजनीतिक दल अपनी राज्य सरकारों का इस्तेमाल एटीएम की तरह न करें तो किसी भी राज्य सरकार को कर्ज न लेना पडे, लेकिन ऐसा हो नहीं पाता। सबको एटीएम सरकार चाहिए। सारा द्वन्द इसी एटीएम सरकार की संख्या बढऩे को लेकर है। हाल ही में भाजपा के हाथ से कर्नाटक का एटीएम निकल गया। कर्नाटक का एटीएम सबसे ज्यादा पैसा उगलने वाला एटीएम माना जाता था। छग का एटीएम भी भाजपा को खल रहा है। भाजपा कांग्रेस से उसके सारे एटीएम झपट लेना चाहती है। इसके लिए उसे कभी किसी राजनीतिक दल को दो फाड करना पडता है, तो कभी किसी दल के विधायक खरीदना पडते हैं। मध्य प्रदेश का एटीएम भाजपा को इसी तकनीक से हासिल हुआ था, लेकिन राजस्थान और छग का एटीएम पिछले पांच साल की मेहनत के बाद भी भाजपा हासिल नहीं कर सकी सो बैचेनी बढ़ रही है।
एटीएम सरकार हासिल करने के लिए अक्सर नैतिकता को ताक पर रखना पडता है। भाजपा जिन लोगों को जेल भेजना चाहती है उन्हें बाद में अपनी पार्टी में शामिल कर लती है। ये भाजपा की अपनी तकनीक है। इस पर किसी को आपत्ति नहीं होना चाहिए। मुझे तो बिल्कुल नहीं है। यदि मैं आपत्ति करूं भी तो मेरी कौन सुनता है? अब तो देश की न्याय व्यवस्था भी समर्थ की ही बात पहले सुनती है। आधी रात को अपने इजलास सजा लेती है। आम आदमी के लिए कभी ऐसा नहीं हुआ। भाजपा और कांग्रेस से तमाम राज्य सरकारें अपने-अपने एटीएम बचाकर रखने में लगी है। कुछ मिल-जुलकर इस अभियान में शामिल हैं। इसे विपक्षी एकता का नाम दिया जाता है। एटीएम बचाना कोई आसान काम नहीं है। आज-कल तो एटीएम उखड लिए जाते हैं। लूटे तो पहले से जाते रहे हैं। एटीएम में लगे कैमरे भी कभी-कभी सुरक्षा प्रदान नहीं कर पाते।
मुझे मजा आता है कि प्रधानमंत्री जी आज-कल जिस किसी राज्य में चुनाव अभियान का श्रीगणेश करने जाते हैं, वहां कोई न कोई नया जुमला उछालकर आते हैं। कोई माने या न माने, किन्तु मैं मानता हूं कि प्रधान जी के इन्हीं जुमलों की वजह से देश की राजनीयति में रंगत बची हुई है। अन्यथा कांग्रस के पास क्या है? एक अडानी और मोदी जी को लेकर चल रही है। एक मुद्दे ने कांग्रेस के राहुल भाई साहब की सांसदी छीन ली और दूसरे का जबाब आज तक भाजपा ने उन्हें दिया नहीं। कांग्रेस दो माह से जलते मणिपुर को भी आज तक मुद्दा नहीं बना पाई, क्योंकि उसके पास एटीएम सरकारों की कमी है।
कुल मिलाकर सत्य और तथ्य ये है कि एटीएम सरकारों को हासिल करो। बजरंगबली के नाम से चल रहीं सरकारों के भरोसे काम नहीं चलने वाला। बजरंगबली तो लोक-परलोक से भी प्रभावित नहीं होते। उन्होंने हाल ही में कर्नाटक में कैसा नाटक किया कि बेचारे रामराज लाने वाले लोग टापते रह गए। मेरे पास एटीएम सरकार तो नहीं है लेकिन एक अदद एटीएम जरूर है। एटीएम से रकम निकालने में बडा मजा आता है। जब मुझ जैसा आम आदमी एटीएम का आशिक है तो कोई राजनीतिक दल क्यों नहीं होगा? हमारे देश में तो अनेक मुख्यमंत्री निवासों पर एटीएम लगाने की खबरें लीक हो चुकी हैं। जब आमदनी होगी तो नोट थूक लगाकर तो गिने नहीं जा सकते।