– अशोक सोनी ‘निडर’
संवादहीनता नितांत असामाजिक एवं पीडा पहुंचाने वाला कृत्य है। मनुष्य जन्मजात सामाजिक प्राणी है। सहकारिता, सहयोग और प्रेम उसे चाहिए ही। व्यक्ति कुछ अर्जित दुष्प्रवृत्तियों एवं परिस्थितियों के वशीभूत होकर किसी घटनावश वह कभी-कभी किसी एक अथवा समूह के प्रति संवादहीनता की स्थिति में पहुंच जाता है। संवादहीनता के इस अवरोध को तोडने के लिए कुछ व्यावहारिक उपाय इस प्रकार हैं-
1- मिथ्याभिमान को छोडें। संवादहीनता के मूल में मिथ्याभिमान के सिवा और कुछ भी नहीं। अभिमानवश व्यक्ति को किसी का अप्रत्याशित गलत व्यवहार अथवा छोटी सी बात भी इतनी बुरी लग जाती है कि वह उससे बातचीत करना बन्द कर देता है, विशेषकर तब, जब वह व्यवहार अपने से छोटे व्यक्ति द्वारा किया गया हो। ऐसा करते समय हम दूसरों के पूर्वकृत उपकारों को विस्मृत कर देते हैं। यह कृतघ्नता का भाव मिथ्याभिमान से ही उपजता है, जो सर्वथा अनुचित है।
2- अपनी गलतियों की क्षमा मांगने में न हिचकें और न विलंब करें।
3- बात को गांठ बांधकर न बैठें। वाद-विवाद और अच्छा-बुरा व्यवहार देश, काल और परिस्थिति के अनुसार घटित होता है। अत: किसी बात को गांठ बांधकर बैठे रहना उचित नहीं। आगे बढक़र रिश्तों को पुनर्जीवित करें।
4- जीवन में परिवारीजनों एवं मित्रों के महत्व को समझें, हठ एवं अहम को छोडकर तथा स्वयं पहलकर संवादहीनता की स्थिति को समाप्त करें। इससे आपका कुछ घटने वाला नहीं, बल्कि आपका बडप्पन ही सिद्ध होगा।
5- समाज का जन्म संवाद से हुआ है। सभ्यता और संस्कृति के विकास में भी संवाद की मुख्य भूमिका रही है। अत: विभिन्न समितियों, संस्थाओं, सामाजिक संगठनों में सक्रिय सहभागिता के माध्यम से समाज के साथ संवाद की स्थिति को मजबूत करने का प्रयास करें।
6- संवाद संप्रेषण की कला से प्रभावी बनता है। अत: इस कला में प्रवीण बनें। संप्रेषण का अर्थ है अपने विचारों एवं भावनाओं को दूसरों के समक्ष सार्थक एवं प्रभावी ढंग से अभिव्यक्त करना।
7- झिझक तथा भय पर नियंत्रण रखें।
8- छोटे-बडे का विचार न करते हुए सभी से पहलकर अभिवादन प्रारंभ करें और कुशलक्षेम पूछें।
लेखक- राष्ट्रीय स्वतंत्रता सेनानी परिवार उप्र के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं स्वतंत्रता सेनानी/ उत्तराधिकारी संगठन मप्र के प्रदेश सचिव हैं।