शरीर से जितना संपर्क टूटेगा, साधना बढ़ती जाएगी : विनिश्चय सागर

शहर में चातुर्मास कर रहे विनिश्चय सागर महाराज ने दी चातुर्मास की जानकारी

भिण्ड, 02 जुलाई। संत का दायित्व यही तक नहीं है कि वह सन्यास लेकर साधना में तल्लीन हो जाए। सभी धर्मों के संतों का दायित्व है कि वे अपने-अपने धर्म और समाज के लोगों में धर्म के प्रति श्रृद्धा जगाए और समाज में धर्म के संदेश पहुंचाए। यह उद्गार शहर में चातुर्मास कर रहे दिगंबर संत विनिश्चय सागर महाराज ने बतासा बाजार स्थित चैत्यालय जैन मन्दिर परिसर में पत्रकारों से चर्चा करते हुए व्यक्त किए।
विनिश्चय सागर महाराज ने कहा कि दिगंबर संत सभी आवश्यकताओं को त्याग कर आगे बढ़ते हैं, इसीलिए वह सर्व प्रथम शरीर से प्रयोजन छोड देते हैं। शरीर से जितना संपर्क टूटेगा, साधना उतनी ही बढती़ जाएगी। शरीर से मोह नहीं रहेगा तो किसी भी चीज की आवश्यकता नहीं रह जाएगी। उन्होंने कहा कि शरीर से संबंध हटाकर आत्मा से संबंध जोडकर ही दिगंबर संत कठोर साधना कर पाते हैं। महान बनने के लिए जरूरी है कि श्रृद्धा को मजबूत करो, ज्ञान को बढ़ाओ और आचरण को संभालो। आचरण ही मनुष्य की असल पहचान है, जिस श्रेणी का आचरण होगा हमें वही श्रेणी प्राप्त होगी। आपका आचरण, ज्ञान और श्रृद्धा स्वयं का, परिवार, समाज और देश का उत्थान कर सकता है। इसलिए आचरणवान बनकर समाज के काम आना ही मनुष्य का कर्म और धर्म होना चाहिए।
चातुर्मास का महत्व बताते हुए संतश्री ने बताया कि व्रत, भक्ति और शुभ कर्म के चार महीने को चातुर्मास कहा गया है। ध्यान और साधना करने वाले लोगों के लिए ये माह महत्वपूर्ण होते हैं। इस दौरान शारीरिक और मानसिक स्थिति तो सही होती ही है, साथ ही वातावरण भी अच्छा रहता है। चातुर्मास चार महीने की अवधि है, जो आषाढ़ शुक्ल एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलता है। दिगंबर संतों का आवागमन अधिक होता है और चौमासे के दिनों में विभिन्न प्रकार जीवों की उत्पत्ति होती है। आवागमन से यह जीव आहत होते हैं, इसलिए अहिंसा धर्म का पालन करने के लिए दिगंबर संत चतुर्मास करते हैं और एक ही स्थान पर रहकर व्रत और भक्ति करते हुए समाज के लोगों को प्रवचनों के माध्यम से ज्ञानोपदेश प्रदान करते हैं।