भोर

आशीष शर्मा, भिण्ड


मध्यम उजली भोर कह रही ना डरो कभी अंधियारों से,
प्रतिदिन हमें गुजरना होगा करतब के गलियारों से।
चिडिय़ों की चहक कह रही ना सोचो तुम परिणामों की,
जरा जरा सी मेहनत जोड़ो किला बनेगा तिनकों से।
सुबह बांग देकर मुर्गा हर रोज ये हमसे कहता है,
कर्म स्वयं ही करना होगा नहीं किसी के कहने से।
तपती सूरज की किरण कह रही कर्मवीर के सपनों से,
अरमानों को सेको तुम मेहनत की गुनगुनी किरणों से।
सुबह के खिलते पुष्प कह रहे डरो न तुम प्रतिकारों से,
बन जाओगे तुम भी मोती दिन रात समय की मारों से।
मध्यम उजली भोर कह रही ना डरो कभी अंधियारों से,
प्रतिदिन हमें गुजरना होगा करतब के गलियारों से।