उपेक्षित अनूप का धैर्य

– राकेश अचल


भाजपा के वरिष्ठ नेता, पूर्व सांसद, पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा का धैर्य गजब का है। एक दशक से पार्टी में हासिए पर खड़े अनूप मिश्रा ने पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के पुत्र दीपक जोशी की तरह बगावत नहीं की ये हैरानी की बात है। अनूप मिश्रा का आज 67वां जन्मदिन है, यानि वे 66 वर्ष के हो गए। अनूप मिश्रा को पार्टी ने चार बार विधानसभा भेजा, मंत्री बनाया, सांसद बनाया और पिछले कुछ वर्षों से उनकी कोई खैर खबर नहीं ली। अनूप मिश्रा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के भांजे न होते तो शायद इतना भी न पाते, हालांकि उनकी दक्षता को देखते हुए उन्हें बहुत कुछ मिलना चाहिए था।
मैं अनूप मिश्रा से पहली बार जब मिला तब वे 19 साल के थे और मैं 16 साल का। यानि मैं उन्हें औरों से थोड़ा अधिक जानता हूं। मेरे ख्याल से यदि मप्र में भाजपा ने 2005 में शिवराज सिंह चौहान के स्थान पर अनूप मिश्रा को चुना होता तो पार्टी ज्यादा फायदे में रहती। बहरहाल ये भाजपा का अंदरूनी मामला है। मुझे लगता है कि अनूप मिश्रा में अभी बहुत लोहा बांकी है। वे कुशल प्रशासक हैं, जनाधार वाले नेता हैं। उन्हें जय, पराजय का अनुभव है। वे लफ्फाजी नहीं करते। जो करते हैं मन से करते हैं। चाहे दोस्ती हो या दुश्मनी। उनका ईमान अभी तक बरकरार है। उन्होंने ऊंच नीच सब देखी है। उन पर आरोप लगे, वे उनसे बाहर भी निकले। बस उन्हें घुटनों के बल बैठना नहीं आता।
अनूप की छवि बागी नेता की है, लेकिन उन्होंने अब तक तो बगावत नहीं की है। वे बागी जीवन के बारे में खूब जानते हैं, इसलिए तय है कि वे दीपक जोशी का रास्ता अख्तियार नहीं करेंगे। करेंगे तो कलंकित होंगे। उनके शुभचिंतक पार्टी के भीतर भी हैं और बाहर भी। ये सच है कि अब राजनीति में उनका कोई गॉडफादर नहीं है, लेकिन वे अकेले भी नहीं है। भाजपा के नए महाबली ज्योतिरादित्य सिंधिया उनके साथ खड़े दिखाई देते हैं। अनूप मिश्रा शतायु हों, राजनीति की एक और पारी खेलें, ये कामना एक पुराने पड़ोसी के नाते मैं कर सकता हूं। इससे आप सहमत और असहमत हो सकते हैं। मेरे लिए अनूप मिश्रा एक मित्र और शुभचिंतक हैं मेरे जैसे तमाम दूसरे लोगों की ही तरह। तमाम विरोधाभास के बावजूद ग्वालियर अनूप मिश्रा पर गर्व कर सकता है।