धाम, धमका और धर्म का धंधा

@ राकेश अचल


देश अमृतकाल से गुजर रहा है। अमृतकाल के बाद कौन सा काल आएगा ये कोई नहीं जानता, लेकिन इतना तय है कि ये देश कभी भी धर्म के धंधे में लगे धामों से मुक्त नहीं हो पाएगा, भले ही इन जैसे तमाम लोग हत्या और दुराचार के मामलों में जेलों में पड़े हुए हैं। धर्मान्धता का ताजा उदाहरण पटना में धीरेन्द्र शास्त्री के लिए हुआ जमावड़ा है, जिसमें सौ से अधिक लोग धमके की वजह से अचेत हो गए।
धीरेन्द्र शास्त्री धर्म के धंधे में उगने वाला नवीनतम मशरूम है। धीरेन्द्र जिस इलाके से है उस इलाके में ‘धाम’ शब्द ‘ठिकाने’ के लिए इस्तेमाल किया जाता है और ‘धमका’ शब्द तेज उमस के लिए। पटना में पारा 40 के पार है इसलिए धीरेन्द्र के लिए जुटे लाखों लोगों के मजमे में धमका होना स्वाभाविक है और उसमें सौ लोगों का बेसुध होना बहुत स्वाभाविक है। इस हादसे के लिए धीरेन्द्र को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। जिम्मेदार वे हैं जिन्होंने ये जमावड़ा किया और माकूल इंतजाम नहीं कर पाए।
धीरेन्द्र का अपना कोई प्रचार तंत्र नहीं है। धार्मिक चैनलों के अलावा उसे जो पहचान मिली है वो सोशल मीडिया के जरिये मिली है। धीरेन्द्र न योग शिक्षक है और न धर्म गुरु। धीरेन्द्र सुदर्शन और वाचाल है। उसका ठेठ बुन्देली में गरियाना लुभावना है। वक्त उसके साथ है, इसीलिए धीरेन्द्र रातों-रात देश के धर्माकाश पर छा गया है। उसे देखने-सुनने भीड़ उमड़ रही है और यही भीड़ राजनीतिज्ञों की कमजोरी है। इसी भीड़ को दुहने के लिए उन्होंने भी धीरेन्द्र को सिर पर लादना शुरू कर दिया है। ये सिलसिला मध्य प्रदेश से शुरू होकर अब बिहार तक पहुंच गया है। हालांकि धीरेन्द्र के लिए इंग्लैंड में भी बाजार तलाश लिया गया है।
कुछ लोग नसीब वाले होते हैं, धीरेन्द्र उन्हीं में से एक है। ख़ास बात ये है कि धीरेन्द्र धर्म का धंधा करने वाले गुजराती धर्म गुरुओं के सामने बुंदेलखंड की जमीन से उपजी एक चुनौती है। अन्यथा गुजरात के बाहर का कोई दूसरा बाबा या बाई धीरेन्द्र जितना लोकप्रिय नहीं हुआ। लोकप्रिय से आशय भीड़ खींचने वाले से है। धीरेन्द्र के पीछे हुई दीवानी भीड़ को देखते हुए अब उसके पास वित्तपोषकों की लम्बी कतार लगी हुई है। एक जमाने में मध्य प्रदेश में रावतपुरा सरकार का नसीब भी धीरेन्द्र की तरह जाएगा था। वे अवतार बना दिए गए थे, किन्तु वे वाचाल न थे, इसलिए उनकी दुकान यथा समय बंद हो गई। धीरेन्द्र शास्त्री का हश्र भी रावतपुरा या उन जैसी दूसरी सरकारों जैसा होना तय है, लेकिन अभी तो धीरेन्द्र की पांचों उंगलियां घी में और सिर कढ़ाही में है।
चूंकि ये चुनाव का साल है, इसलिए धीरेन्द्र की मांग मध्य प्रदेश के अलावा दूसरे राज्यों में भी रहेगी। कर्नाटक में हाल ही में पिटकर बैठी भाजपा धीरेन्द्र शास्त्री का जमके इस्तेमाल करेगी। बिहार में भी धीरेन्द्र को राजनीतिक मकसद से ही ले जाया गया था, लेकिन वहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद के तेजस्वी ने धीरेन्द्र की सभा में न जाकर इस प्लान को पंचर कर दिया। लेकिन नीतीश कुमार हों या कोई और फिलहाल धीरेन्द्र के पीछे भागती भीड़ को रोक नहीं सकते। इस भीड़ को जो भुना लेगा वो फायदे में रहेगा, क्योंकि आजकल भीड़ भ्रष्ट नेताओं के पीछे तो दीवानी नहीं दिखाई देती।
एक जमाना था जब इसी तरह की भीड़ खींचने वाले आसाराम बापू थे, उन जैसों की एक लम्बी फेहरिस्त है। एक जमाने में ऐसी ही भीड़ योग का धंधा करने वाले बाबा रामदेव के पीछे भागती थी, लेकन अब सब पार्श्व में चले गए है। कुछ को समय ने पीछे धकेल दिया और कुछ खुद धर्म का धंधा छोड़कर दूसरे धंधों में लग गए हैं, जहां ‘धर्म के दूने’ आसानी से हो जाते हैं। धीरेन्द्र शास्त्री भी इस समय ‘धर्म के दूने’ करने की मशीन बने हुए हैं। हमारे सूबे के गृहमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री और कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष तक धीरेन्द्र के धाम में खड़े दिखाई देते हैं। धीरेन्द्र के लिए मध्य प्रदेश की सरकार सरकारी हैलीकॉपटर स्कूटर की तरह इस्तेमाल करने में भी नहीं हिचकती।
बहरहाल मेरा कहने का आशय ये है कि विज्ञान कितनी भी प्रगति कर ले, लेकिन इस देश में धर्म का धंधा करने वालों के बराबर तरक्की नहीं कर सकता। विज्ञान की चेतना धंधक-धोरियों की धार्मिक चेतना के आगे धूमिल है। यहां विवेक को सुलाए रखने के सौ तरीके है। बजरंगवली भले ही कर्नाटक में भाजपा के साथ न रहे हों किन्तु मध्य प्रदेश में धीरेन्द्र शास्त्री के पास तो हैं। मध्य प्रदेश में बजरंगवली डॉक्टर भी हैं और उनके नाम पर बागेश्वर धाम की तरह दूसरे अनेक धाम हैं। यानि जिस देश में पहले से स्थापित चार धाम हैं वहां रोज नए धाम बनते जा रहे हैं। ऐसे में देश की राजनीति किस दिशा में देश को ले जाएगी इसकी कल्पना की जा सकती है।
बुंदेली बाबा धीरेन्द्र शास्त्री हमारे या आपके कोसने से घर बैठने वाले नहीं है। क्योंकि उनके पीछे भक्तों की अपार भीड़ है जो अपने विवेक के बजाय चमत्कारों पर लट्टू है। जिस देश में ये सब होगा वहां धीरेन्द्र शास्त्री भी होंगे और राम-रहीम भी, आसाराम बापू भी और सैकड़ों ऐसे ही अन्य लोग। धर्म का धंधा सबसे चोखा धंधा है। इसमें न हल्दी लगती है और न फिटकरी मिलाना पड़ती है। लेकिन रंग हमेशा चोखा ही आता है। धीरेन्द्र शास्त्री के धंधे का रंग भी चोखा है। आने वाले दिनों में पता नहीं वो कितनों की ठठरी बांधेगा और कितनों को ठठरी से उठाकर राजनीति में खड़ा होने में मदद करेगा। पिक्चर अभी बाक़ी है। मेरी सहानुभूति उन लोगों के प्रति है जो इस तरह के बाबाओं के पीछे दीवाने है। भगवान उनकी रक्षा करे।

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