देश राग

– राकेश अचल


दूर बैठे शिकार करती हैं, बिल्लियां इंतजार करती हैं।
बर्फ गिरती है कोहिनूरों पर, गर्मियां इश्तहार करती हैं।।

आग से खेलतीं है, जलती है, गलतियां बार-बार करती हैं।
बोलतीं कुछ नहीं कभी लेकिन, तितलियां गुल से प्यार करती हैं।।

एक अभिसार चाहिए केवल, क्यों बहाने हजार करती हैं।
बेरहम हैं बहुत अधिक यादें, उम्र भर बेकरार करती हैं।।

योजनाएं तमाम कल्याणी, जिस्म को तार-तार करती हैं।
कोई कहता नहीं है मजदूरन, रोज झुककर जुहार करती हैं।