पहलवानों का प्रदर्शन और निर्भया

– राकेश अचल


महिला पहलवानों के यौन शोषण के मामले को लेकर देश आंदोलित नहीं हो रहा। क्योंकि ये मामला केवल यौन शोषण का है, निर्भया काण्ड जैसा बीभत्स हत्या और बलात्कार का नहीं। आरोपियों ने महिला पहलवानों की हत्या नहीं की इसलिए देश को गुस्सा नहीं आ रहा। महिला पहलवानों का जंतर-मंतर पर चल रहा धरना-प्रदर्शन अब राजनीति का अखाड़ा बन चुका है। आरोपी टीवी चैनल पर बैठकर इंटरव्यू दे रहे हैं, उन्हें अपने खिलाफ दर्ज की गई प्राथमिकी का कोई डर-भय नहीं है।
महिला पहलवान डब्ल्यूएफआई (भारतीय कुश्ती महासंघ) के प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ यौन उत्पीडऩ के आरोपों की जांच करने वाली निगरानी समिति की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने और दिल्ली पुलिस से एफआईआर (प्राथमिकी) दर्ज करने की मांग को लेकर सडक़ों पर हैं। बृजभूषण शरण सिंह को मैं नहीं जानता, हो सकता है कि आप भी नहीं जानते हों, लेकिन जब से उनके ऊपर महिला पहलवानों के यौन शोषण के आरोप लगे हैं तब से उन्हें पूरा देश जानने लगा है या जानने की कोशिश कर रहा है। बृजभूषण शरण सिंह भारतीय जनता पार्टी से 16वीं लोकसभा के लिए कैसरगंज लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से वर्तमान में संसद सदस्य हैं। वे अब तक छह बार लोकसभा सदस्य निर्वाचित हो चुके हैं। वर्तमान में वे भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष भी हैं।
हमारे मित्र पूर्वमंत्री रमाशंकर सिंह महिला पहलवानों के प्रदर्शन को लेकर देश की प्रतिक्रिया से हताश हैं, उन्हें शिकायत है कि देश अपनी बेटियों के साथ हुए अतिचार को गंभीरता से नहीं ले रहा। उनकी शिकायत सही भी है, क्योंकि ये वो ही देश है जिसमें एक दशक पहले निर्भयाकाण्ड के बाद पूरे देश को हिला दिया था। इसी काण्ड के बाद पास्को का जन्म हुआ था, जिसके तहत बृजभूषण सिंह के खिलाफ मामला दर्ज किया जा चुका है, लेकिन उनकी गिरफ्तारी नहीं हुई है, क्योंकि वे सत्तापक्ष के नेता हैं।
अपराधियों को लेकर हमारे समाज की दृष्टि शुरू से दोषपूर्ण रही है। यदि अपराधी रसूखदार है तो न सरकार सुनती है और न पुलिस और न अदालत। यूपी के एक सन्यासी सांसद का मामला आपको याद होगा ही, जिसमें फरयादी को ही जेल में डाल दिया गया था। बृजभूषण सिंह के मामले में भी समाज का मौन संदिग्ध है। विपक्ष के नेता राजनीति करने के लिए प्रदर्शनकारी महिला पहलवानों के प्रति अपना समर्थन देने जंतर-मंतर पहुंच रहे हैं, लेकिन सब नहीं। यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के इस धरने से दूर रहने को लेकर ही आरोपी सांसद अपनी ढाल के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। टीवी चैनल यौन शोषण के आरोपी को ससम्मान कैमरे के सामने बैठकर उन्हें सफाई का अवसर मुहैया करा रहे हैं।
कभी-कभी मुझे लगता है कि इस देश में नारियों की पूजा करने का इतिहास भी संदिग्ध ही है, क्योंकि यहां आज तो महिलाओं को लेकर राजनीति हो रही है और सरकारें तमाशबीन बनी हुई हैं। बात अभी तक अदालत के पाले में आयी नहीं है। मुमकिन है कि आये भी न और पुलिस ही पूरे मामले में खात्मा लगा दे, क्योंकि महिला पहलवान आखिर रसूखदार आरोपी के खिलाफ कब तक लड़ सकती है? उनके दांव-पेंच रसूखदारों के ऊपर असरकारी नहीं हो सकते। उनके खिलाफ हुई ज्यादती निर्भया के साथ हुई ज्यादती जैसी नहीं है। आरोपी ने उनके साथ नृशंसता नहीं की, उनकी जान नहीं ली। ऐसे में समाज, राजनीतिक दल और सरकारें कैसे द्रवित हो सकती हैं।
आरोपी सांसद को मैंने टीवी कैमरे पर ये कहते सुना कि महिला पहलवानों के यौन उत्पीडऩ की फर्जी शिकायतों से उनकी छवि खराब हो रही है। उन्होंने कहा कि 90 फीसदी एथलीट और उनके अभिभावक कुश्ती महासंघ पर भरोसा करते हैं, उन्होंने कहा कि जिन महिलाओं ने उनके खिलाफ शिकायत की है, वे सभी एक ही परिवार और एक ही अखाड़े से हैं। ये या तो दुस्साहस है या फिर उनके निर्दोष होने का अदृश्य प्रमाण। कोई आरोपी पास्को के तहत मामला दर्ज होने के बाद कैसे इतने आत्मविश्वास से प्रत्यारोप लगा सकता है?
आपको याद होगा कि पहलवान साक्षी मलिक और रवि दहिया सहित पहलवानों ने जनवरी में भी इस मुद्दे को उठाया था, लेकिन केन्द्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर के साथ मैराथन बातचीत के बाद उनका तीन दिवसीय धरना समाप्त कर दिया था। ठाकुर ने आरोपों की जांच के लिए दिग्गज मुक्केबाज एमसी मेरीकॉम की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय निरीक्षण समिति की घोषणा की थी। रियो ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता साक्षी मलिक ने कहा, ‘हम जंतर-मंतर से नहीं हटेंगे, यह लड़ाई नहीं रुकेगी’ उन्होंने कहा, ‘लड़कियां (महिला पहलवान) समिति के सामने पेश हुई हैं, लेकिन रिपोर्ट नहीं आई है। महासंघ पहले की तरह चल रहा है, वह अपने राष्ट्रीय टूर्नामेंटों का आयोजन कर रहा है। तो क्या बदल गया है?’
हैरानी की बात ये है कि इतने हंगामें के बाद भी कुछ नहीं बदला, शायद बदलेगा भी नहीं। क्योंकि आरोपी कोई मामूली आदमी नहीं है, जिसे कि गाजर-मूली की तरह निपटा दिया जाए। इस मामले में न सरकार संवेदनशील है, न दिल्ली पुलिस, न दिल्ली का महिला आयोग। सबके सब हटो-बचो में लगे हैं। वो तो भला हो सुप्रीम कोर्ट का कि आरोपी के खिलाफ एक मामला दर्ज कर लिया गया। कोई दूसरा आरोपी होता तो अब तक गिरफ्तार कर लिया गया होता, लेकिन यहां आरोपी छह बार का संसद है। उसे बचाव का पूरा मौका दिया जाएगा, दिया जा रहा है और दिया भी जाना चाहिए। यदि न दिया गया तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा।
महिला पहलवानों के साथ दुराचार हैरान करने वाली घटना है। क्या महिला पहलवान इतनी कमजोर हैं कि जो प्रतिकार करने के लिए समय की प्रतीक्षा करती रहीं। जो हो अब इस मामले में राजनीति भी हो रही है, होगी भी। प्रियंका गांधी से लेकर तमाम नेता और खिलाड़ी महिला पहलवानों के समर्थन में धरना स्थल पर पहुंच रहे हैं। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपेन्द्र सिंह हुड्डा कुश्ती महासंघ के खिलाफ चल रहे खिलाडिय़ों के धरने को समर्थन देने के लिए जंतर-मंतर पहुंचे। उन्होंने कहा कि जिन खिलाडिय़ों को स्टेडियमों में होना चाहिए, वो मजबूर होकर जंतर-मंतर पर क्यों बैठे हैं, ये गंभीर सवाल है। इसकी गंभीरता से जांच होनी चाहिए। खिलाडिय़ों को इंसाफ दिलाना हम सबका फर्ज है। बावजूद इसके देश में इस मामले को लेकर वो माहौल नहीं बन रहा जो निर्भया काण्ड के बाद बना था, जबकि ये मामला भी निर्भया जैसा ही है।
मुझे लगता है कि आरोपी बृजभूषण का ये कहना सही है कि पीडि़ताओं को जंतर-मंतर से न्याय नहीं मिलेगा। जंतर-मंतर से न्याय मिलता भी नहीं है, अगर आपको न्याय चाहिए तो आपको पुलिस और अदालत जाना होगा। उन्होंने अब तक ऐसा कभी नहीं किया है। वो सिर्फ गाली देते रहें। गनीमत है कि आरोपी कह रहा है कि अदालत जो भी फैसला करेगी हम उसे स्वीकार करेंगे। देखिये कि पहलवानी में कदाचार का ये मामला क्या शक्ल अख्तियार करता है? इस मामले में एक बात तो जाहिर हो गई है कि चाहे खेल हो या सियासत सब जगह आज भी महिलाएं निर्भया की तरह शोषित और पीडि़त हैं। उन्हें न्याय की सख्त जरूरत है।