नामांतरण के ऐवज में रिश्वत लेने वाले पटवारी को चार वर्ष का कारावास

सागर, 24 अप्रैल। विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) सागर श्री आलोक मिश्रा की अदालत ने विक्रय पत्रों के नामांतरण के ऐवज में रिश्वत लेने वाले पटवारी विवेक जैन को दोषी करार देते हुए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 7 के अंतर्गत तीन वर्ष का सश्रम कारावास एवं पांच हजार रुपए अर्थदण्ड, धारा 13(1)(डी), सहपठित धारा 13(2) के तहत चार वर्ष का सश्रम कारावास व पांच हजार रुपए जुर्माने की सजा से दण्डित किया है। मामले की पैरवी सहायक जिला लोक अभियोजन अधिकारी श्याम नेमा ने की।
जिला लोक अभियोजन सागर के मीडिया प्रभारी के अनुसार घटना संक्षिप्त में इस प्रकार है कि 29 जनवरी 2016 को आवेदक रतिराम पटैल ने पुलिस अधीक्षक, लोकायुक्त कार्यालय सागर को लिखित शिकायत आवेदन दिया कि वह बीना में वकालत करता है, उसके समाज के रिश्तेदार बालकिशन ने अपना व अरविंद पटैल के विक्रय पत्र नामांतरण हेतु उसे दिए थे, इसी प्रकार नंदराम ने अपनी बहू के नाम क्रय की गई भूमि का विक्रय पत्र नामांतरण हेतु उसे दिया, उसने अपने रिश्तेदारों के तीनों विक्रय पत्र नामांतरण कराने के लिए अभियुक्त विवेक जैन को 20 दिसंबर 2015 को दिए, तो अभियुक्त ने उससे प्रति विक्रय पत्र तीन हजार रुपए के मान से कुल नौ हजार रुपए रिश्वत की मांग की, उसने यह बात अपने रिश्तेदारों को बताई, तो उन्होंने रिश्वत देने से मना किया व लोकायुक्त पुलिस को शिकायत करने को कहा, जिसके संबंध में लिखित सहमति भी दी कि वह अभियुक्त को रिश्वत नहीं देना चाहते, बल्कि रंगे हाथों पकड़वाना चाहते है। आवेदन में वर्णित तथ्यों के सत्यापन हेतु एक डिजीटल वॉयस रिकार्डर दिया गया, इसके संचालन का तरीका बताया गया, अभियुक्त से रिश्वत मांग वार्ता रिकार्ड करने हेतु निर्देशित किया, तत्पश्चात आवेदक द्वारा मांग वार्ता रिकार्ड की गई, अन्य तकनीकि कार्रवाईयां की गईं एवं ट्रेप कार्रवाई आयोजित की गई। नियत दिनांक को आवेदक द्वारा अभियुक्त को राशि दी गई व आवेदक का इशारा मिलने पर ट्रेप दल के सदस्य मौके पर पहुंचे और निरीक्षक विजय सिंह परस्ते ने अपना व ट्रेप दल का परिचय देकर अभियुक्त का परिचय प्राप्त करने के उपरांत, अभियुक्त से रिश्वत राशि के संबंध में पूछे जाने पर बताया कि उसने रिश्वत राशि आवेदक से लेकर अपनी पहनी हुई शर्ट की बांई जेब में रख लेना तथा लोकायुक्त टीम की शंका होने पर कार्यालय में ही खड़े व्यक्ति को दे देना बताया, तब अभियुक्त विवेक जैन के बताए अनुसार पास में ही खड़े व्यक्ति से पूछे जाने पर उसने रिश्वत राशि अभियुक्त विवेक जैन द्वारा देना व खुद के हाथ में रखे होना बताया, तत्पश्चात अग्रिम कार्रवाई प्रारंभ की गई। विवेचना के दौरान साक्षियों के कथन लेख किए गए, घटना स्थल का नक्शा मौका तैयार किया गया, अन्य महत्वपूर्ण साक्ष्य एकत्रित कर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 7 एवं धारा 13(1)(डी), सपठित धारा 13(2) का अपराध आरोपी के विरुद्ध दर्ज करते हुए विवेचना उपरांत चालान न्यायालय में पेश किया। जहां विचारण के दौरान अभियोजन द्वारा साक्षियों एवं संबंधित दस्तावेजों को प्रमाणित किया गया, अभियोजन ने अपना मामला संदेह से परे प्रमाणित किया। विचारण उपरांत विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) सागर श्री आलोक मिश्रा के न्यायालय ने आरोपी को दोषी करार देते हुए उपरोक्त सजा से दण्डित किया है।