व्यक्ति को अपने कर्मों का फल स्वयं ही भोगना पड़ता है : विनय सागर

मुनिश्री के सानिध्य में रानी विरागवां में 32 मण्डलीय सिद्धचक्र महामण्डल विधान में हो रही है सिद्धों आराधना
इन्द्रा-इन्द्राणियों ने सिद्धचक्र महामण्डल विधान में 32 अघ्र्य समर्पित कर आराधना गूंजी

भिण्ड, 29 मार्च। पुरुषार्थ और भाग्य को बदलने का नाम धर्म है, पुरुषार्थ व धर्म के द्वारा संतों, भगवंतों की आराधना से कर्मों की मारी मैना सुंदरी नारी को अपने पति को कुष्ठ रोग दूर कर श्रीपाल की काया को कंचन के समान बना दिया और अपने पिता के अभिशाप को दूर कर दिया। मैना सुंदरी की भक्ति ही थी, जिसने कई लोगों को कोढ़ से मुक्त कर दिया। इससे सीख मिलती है कि व्यक्ति को अपने कर्मों का फल स्वयं ही भोगना पड़ता है। यदि वास्तव में मैना सुंदरी की तरह हर व्यक्ति को भगवान के ऊपर ऐसी श्रृद्धा भक्ति हो जाए, तो बड़े से बड़ी बीमारी भी ठीक हो जाए। यह बात श्रमण मुनि श्री विनय सागर महाराज ने बुधवार को रानी विरागवां स्थित दिगंबर आदिनाथ जैन मन्दिर में अयोजित 32 मण्डलीय सिद्धचक्र महामण्डल विधान में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।
मुनि श्री विनय सागर महाराज ने कहा कि हमें आठ गुणों की प्राप्ति व आठ कर्मों के नाश के लिए सिद्ध परमेष्ठी के आठ गुणों की आराधना करना चाहिए। सिद्धचक्र आराधना हमें संसार चक्र को समाप्त कर सिद्ध बनाने का मार्ग प्रशस्त करती है। हम आज दुकान, मकान परिवार के चक्कर लगाते हैं, परंतु संतों, भगवतों से ज्ञान दर्शन और चरित्र पाने उनके चक्कर नहीं लगाते। अगर हमने पाप कर्मों को करने में समय बर्बाद कर दिया तो हम धन चक्कर बन जाएंगे। हमें धर्म के चक्कर लगाकर धर्म को भीतर बसाने का प्रयास करना है। इस मौके पर मोंटू जैन, पारस जजन पप्पू जैन, मोहित जैन, छोटू जैन मौजूद थे।
इन्द्रों ने भगवान जिनेन्द्र का किया अभिषेक, बृहद शांतिधार की गई
मुनिश्री के प्रवक्ता सचिन जैन आदर्श कलम ने बताया कि सिद्धचक्र महामण्डल विधान के विधानचार्य पं. राजेन्द्र जैन शास्त्री ने मंत्र उच्चारण के साथ इन्द्रों ने चारों कोणों पर खड़े हुए भगवान जिनेन्द्र देव के ऊपर कलशों से अभिषेक जयकारों के साथ किए। मुनिश्री ने अपने मुखारबिंद मंत्रों से भगवान जिनेन्द्र की बृहद शांतिधारा करने का सौभाग्य प्रथम शांतिधारा रमेश जैनदिल्ली, द्वित्तीय शांतिधारा रतनलाल जैन भिण्ड एवं तृतीय शांतिधारा सोनू जैन भिण्ड सुभाष जैन दिल्ली रानी विरगवां वाले, विशाल जैन बंटी जैन भिण्ड परिवार ने की। अभिषेक के उपरांत भगवान की महाआरती महिलाओं ने संगीतमय भक्ति में की।
महोत्सव के तीसरे दिन इन्द्रा-इन्द्राणियों ने समर्पित किए 32 अघ्र्य
32 मण्डलीय सिद्धचक्र विधान में श्रमण मुनि श्री विनय सागर महाराज के सानिध्य में इन्द्रा-इन्द्राणियों ने पीले वस्त्र धारण कर सिर पर मुकुट, गले में माला पहनकर संगीतकार के भजनों पर भक्तिभाव के साथ पूजा आर्चन कर सिद्धप्रभु की आराधन कर 32 महाअघ्र्य जिनेन्द्र देव के सामने समर्पित किए।