– राकेश अचल
बदजुबानी की सजा तय हो गई
इक कहानी की सजा तय हो गई
क्यों हवा में घोल देती है महक
रातरानी की सजा तय हो गई
खीर का तो कुछ नहीं बिगड़ा मगर
दूध-पानी की सजा तय हो गई
आंधियों का डर सताता है बहुत
फिर रवानी की सजा तय हो गई
जो निशाने पर रखा था सोचकर
उस निशानी की सजा तय हो गई
बंद दरवाजा हुआ बस एक पर
हर अदानी की सजा तय हो गई
लोग कीचड़ में सने हैं आजकल
किंतु ज्ञानी की सजा तय हो गई
भैंस पानी में गयी सो ठीक है
लंतरानी की सजा तय हो गई