बढ़ते बहरेपन की समस्या से लोगों को जागरुक करने की आवश्यकता

विश्व श्रवण दिवस पर स्वास्थ्य केन्द्र गोहद में सात दिन होंगे विविध आयोजन

भिण्ड, 03 मार्च। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा लोगों में बहरेपन की बढ़ रही समस्याओं के प्रति जागरुक प्रति वर्ष तीन मार्च को विश्व श्रवण दिवस मनाया जाता है। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र गोहद भी राष्ट्रीय बधिरता सप्ताह का आयोजन कर रहा है, जिसके विशेष शिविर में जिला स्वास्थ्य अधिकारी एवं नाक, कान, गला रोग विशेषज्ञ डॉ. आलोक शर्मा उपस्थित रहे। राष्ट्रीय बधिरता सप्ताह के मद्देनजर अस्पताल के स्टाफ को कान व बधिरता से संबंधित बीमारियों और इसके इलाज के बारे में विशेष ट्रेनिंग दी गई है।
डॉ. आलोक शर्मा ने बताया कि श्रवण दिवस को मनाने का मुख्य मकसद लोगों को बहरेपन की समस्या के कारण और निवारण के प्रति जागरुक करना है। इस दरम्यान लोगों को यह भी बताया जाता है कि कैसे अपने कान की सुरक्षा और सेहत पर ध्यान देना चाहिए। हम साल भर लोगों का इलाज तो करते ही हैं पर राष्ट्रीय बधिरता सप्ताह के दौरान हम कान के मरीजों पर ज्यादा फोकस करते हैं। बीएमओ डॉ. वासुदेव शिकरिया ने कहा कि तेजी से बढ़ते बहरेपन की समस्या से लोगों को जागरुक करने की बहुत आवश्यकता है।
डॉ. वीरेन्द्र सिंह ने कहा कि कान की देखभाल के लिए लोगों में जागरुकता की कमी है और वह इसे सामान्य तरीके से लेते हैं। 30 साल की उम्र के बाद लोगों को अपने कान की नियमित जांच करानी चाहिए, ताकि कान से संबंधित किसी भी समस्या को पहले से जानकर उससे बचा जा सके या फिर उसका इलाज शुरू किया जा सके। इसी तरह शिशुवती महिलाएं अपने बच्चों को सुलाकर कर दूध पिलाती हैं जिससे कारण बच्चों का कान बहने लगता है। बच्चों को हमेशा गोद में लेकर 45 डिग्री में बैठाकर ही दूध पिलाना चाहिए। इसी तरह बाईक चलाते समय हेलमेट पहनने से कान के पर्दे सुरक्षित रहते हैं, क्योंकि 50 किमी की रफ्तार से आ रही हवा सीधे कान को नुकसान पहुंचाती है। किसी भी हालत में कान में लोग कोई नुकीली चीज, पेन, ईयर बड, गरम तेल और हाइड्रोजन परऑक्साइड न डालें। जानकारी के अभाव में लोग ऐसा करते हैं पर वास्तव में ये कान के पर्दे के नुकसान पहुंचाते हैं। सुनने की क्षमता 90 से 120 डेसिबल तक होती है इससे तेज की आवाजों से बचें।
अस्पताल में पदस्थ रेडियोग्राफर रवि जोशी जो श्रवण वाधिता में विशेष शिक्षक की डिग्री भी हासिल किए हुए हैं, उन्होंने बताया कि जितनी जल्दी हो सके बच्चे की दिव्यांगता के बारे में पता लगा लिया जाए। जिससे उसको समय रहते उपचार और स्पीच थेरेपी दकर उसे स्पेशल एजुकेशन द्वारा उसके जीवन में दिव्यांगता के कारण होने वाले दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है। श्रवण बालक बच्चे का दो से तीन माह की उम्र में उसके बहरेपन का आंकलन किया जा सकता है। अचानक वर्तन गिरने या शोर होने पर नवजात शिशु पलक झपकाता है, छह माह के बच्चे को पीठ के पीछे से आवाज देने पर वह शारीरिक हलचल करता है, ऐसे कई टिप्स हैं जिससे हम घर पर ही बच्चे की श्रवण बाधिता का आंकलन कर सकते हैं।
आरबीएसके डॉक्टर्स की टीम ने कहा कि कान में दर्द, खुजली या फिर मवाद, आवाज सुनाई देने पर समझ न आए, चक्कर या फिर कान भरा लगा लगे, कान में सनसनाहट जैसी आवाज आए या फिर आपका बच्चा उम्र के हिसा से कम बोलता है तो आप स्वास्थ्य विभाग द्वारा लगाए शिविर या फिर अपने नजदीकी स्वास्थ्य केन्द्र में संपर्क कर सकते हैं। जानकारी ही आपको गंभीर बीमारियों से बचाती है। अपने कान की हिफाजत करें। इस मौके पर डॉ. धीरज गुप्ता, आरबीएसके डॉ. रामनरेश बघेल, डॉ. रंजीत, डॉ. राखी जैन, डॉ. अंजना बीपीएम वीरेन्द्र अटल एवं अन्य अस्पताल स्टाफ उपस्थित रहा।

श्रवण समस्या के प्रमुख कारण

बढ़ती उम्र बहरेपन का आम कारण हो सकता है, अक्सर बढ़ती उम्र के साथ कान की नसें कमजोर होने से भी व्यक्ति विशेष बहरेपन का शिकार हो सकता है। बढ़ती उम्र के अलावा ध्वनि प्रदूषण भी बहरेपन का दूसरा बड़ा कारण होता है। निरंतर बढ़ते ट्रैफिक का शोर कानों पर बुरा प्रभाव डालता है। युवाओं में ईयरफोन से फास्ट म्यूजिक सुनने अथवा ज्यादा से ज्यादा समय मोबाइल पर गाने सुनने से भी कानों पर बुरा असर पड़ता है। चोट लगने से भी श्रवणीय क्षमता प्रभावित हो सकती है। यदि दुर्घटना के दौरान शारीरिक चोट या झटका कान के करीब होता है तो यह चोट बहरेपन का कारण बन सकता है। अक्सर कान के संक्रमण से कान की नसों में सूजन आ जाती है, जिससे कान की नहर बंद हो जाती है, परिणाम स्वरूप ध्वनि तरंगें कान के भीतर तक नहीं पहुंच पाती। कभी-कभी कान में तरल पदार्थ का संग्रह भी श्रवणीय क्षमता को कम करता है।