शतायु होती संगीत परम्परा को नमन

– राकेश अचल यूनेस्को ने ग्वालियर को ‘सिटी आफ म्यूजिक’ का सम्मान इसी साल दिया है,…

लोकतंत्र से पहले ठिठुरती संसद

– राकेश अचल संसद का शीतकालीन सत्र समाप्त हो गया, साथ ही दे गया दोनों सदनों…

क्या सियासत के लिए ‘मिमिक्री’ भी मुद्दा है?

– राकेश अचल देश के उप राष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति की ‘मिमिक्री’ को लेकर आधी…

क्राउड फंडिंग : नए जमाने में पुराना फण्डा

– राकेश अचल ‘क्राउड फंडिंग’ एक लोकप्रिय फण्डा है, इससे जनता द्वारा सीधे नगद सहायता हासिल…

संसदीय लोकतंत्र के काले दिन वापस

– राकेश अचल कोई दोषी नहीं, कोई जिम्मेदार नहीं। भारत की संसद की किस्मत ही खराब…

अल्लाह बनाम इंसान का फैसला

– राकेश अचल दिसंबर का महीना बर्फवारी का मौसम होता है। इस मौसम में बर्फ पिघलने…

संसद में सेंधमारी पर रामधुन की जरूरत

– राकेश अचल दूसरे लोगों का कोई पता नहीं, किन्तु मैं राजनीति से आजिज आ चुका…

स्मृति शेष : अदावतों के बजाय दावतों के प्रेमी थे यतीन्द्र चतुर्वेदी

– राकेश अचल रविवार की सुबह-सवेरे रमाकांत चतुर्वेदी का वाट्सएप संदेश देखकर सन्न रह गया। उन्होंने…

शिवराज की एक और अग्निपरीक्षा

– राकेश अचल भाजपा विधायक और मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अभी अप्रासंगिक नहीं…

मोहन-राज को अपनी छाप की जरूरत

– राकेश अचल मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव के समाने मौजूद तमाम चुनौतियों में से…