आशा/ सहियोगिनी कार्यकर्ताओं ने कले दिवस के रूप में मनाया अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस

भिण्ड, 10 दिसम्बर। अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस पर हम आशा एवं सहयोगिनी कार्यकर्ता कला दिवस मनाने के लिए मजबूर हैं। क्योंकि संविधान में दिए गए हमारे सभी अधिकारों को ना सिर्फ छीना गया है। बल्कि खत्म कर दिया गया है। हम सभी को रोजगार के नाम से जोड़कर बेरोजगार बना दिया गया है, यह सरकार की बहुत बड़ी साजिश है, क्योंकि कहने को तो हम एनएचएम के कार्यकर्ता हैं। लेकिन नाम मात्र के प्रोत्साहन से हमारे परिवार का गुजारा तो दूर आने जाने का किराया तक पूरा नहीं हो पाता है और कभी कभी किसी काम के लिए हमारे घर का पैसा भी खर्च हो जाता है। उस परिस्थिति में घर वाले भी हम से असंतुष्ट रहते हैं कि ना हीं हम घर का काम समय पर कर पाते हैं और ना ही हम बच्चों और परिवार के लिए कुछ कमा सकते हैं और ना ही हम अपने बच्चों की परवरिश पर ध्यान दे सकते हैं। यह सब देखते हुए सब कुछ साफ नजर आता है कि हमारा भविष्य और हमारे परिवार का भविष्य अंधकारमय होगा। यह बात मप्र आशा/ आशा सहयोगिनी श्रमिक संघ की अध्यक्ष लक्ष्मी कौरव ने कही।
उन्होंने हमारे भारत देश में हमें छह अधिकार प्राप्त हुए लेकिन उन छह अधिकारों में से वर्तमान समय हमारे जीवन में किसी एक भी अधिकार के साध ना जी पाने से सम्मान, स्वाभिमान यहां तक कि संस्कार भी नष्ट होते जा रहे है। क्योंकि शारीरिक, आर्थिक और मानसिक रूप से अस्वस्थ हम कार्यकर्ता खुद डिप्रेशन का शिकार होते जा रहे है।
उन्होनें ने बताया कि समता या समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18) पुरुष वर्ग की तुलना में नहीं मिल रहा है समान कार्य का समान वेतन। स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22) अधिकारियों का दबाव देखते हुए लगता है कि, श्वांस भी उन्हीं से पूछ कर लेना पड़ेगी। शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 से 24) फ्री में 12 घंटे से भी अधिक कार्य कराने के खिलाफ बोलने पर नौकरी से निकाले जाने की धमकी दी जाती है। धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28) हमारे देश का मुख्य त्योहार दीपावली पर धनतेरस के दिन भी ड्यूटी लगाकर कार्य के लिए बाध्य किया जाता है। संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29 से 30) जीने लायक वेतन नहीं मिलने के कारण हमें डर है कि कहीं हमारे बच्चे भी हमारी तरह कम शिक्षित रह गए तो उनके भविष्य का क्या होगा। संवैधानिक अधिकार (अनुच्छेद 32) जिस विभाग के लिए हम अपनी जान जोखिम में डालकर के कार्य करते हैं उस विभाग के द्वारा जिस तरह भेदभाव और अमानवीय व्यवहार हमारे साथ किया जाता है उसे देखकर लगता है कि तानाशाह रवैया तंत्र का एक हिस्सा बनता जा रहा है। इस आशा के साथ जिम्मेदार अधिकारी और सरकार दोनों ही हमारे इन अधिकारों के साथ हमेशा सम्मान जनक जीवन जीने के लिए हमारा सहयोग करेंगे, हम आज का अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस काला दिवस के रूप में मना रहे हैं।