प्रश्नाकुल बिरादरी, बनाम देशद्रोह

– राकेश अचल


राजा जंगल का हो या हमारी बस्ती का, डरता है तो केवल मचान से। ये बात मैं अपने तजुर्बे से कह रहा हूं। मुमकिन है कि आपका तजुर्बा मेरे तजुर्बे से अलग हो। जंगल हो या कोई मुल्क चलता कानून से ही है। हां कभी-कभी उलट-पलट हो जाती है। कभी देश जंगल और कभी जंगल देश हो जाता है।
राजा कहीं का भी हो, प्रजा और राज्य की रक्षा का दायित्व उसी के ऊपर होता है। सुरक्षा चाहे आंतरिक हो या बाह्य जिम्मेदारी राजा की ही बनती है, लेकिन कभी हालात ऐसे बनते हैं कि राजा को असुरक्षा का अनुभव होने लगता है। असुरक्षा के संकेत मिलने लगते हैं घटनाक्रम से, ऐसे में राजा धीरे-धीरे सक्रिय होता है, अपनी पुलिस, फौज, कानून सबको तैयार करता है।
राजा बाहर घूमने जाता है तब भी उसको देश की, जंगल की फिक्र बनी ही रहती है। कुछ घटनाएं राजा की नींद उडा देती हैं। मिसाल के तौर पर हमारे यहां पिछले दिनों देश के भीतर वक्फ बोर्ड कानून के खिलाफ वगावत या देश में पहलगाम जैसा कोई अप्रत्याशित हत्याकाण्ड, तब राजा को सक्रिय होना पडता है। ऐसे में यदि पत्ता भी खडकता है तो राजा के कान कडे हो जाते हैं। राजा किसी भी तरह की प्रश्नाकुलता, प्रतिकार, असहमति बर्दाश्त नहीं करता। जिससे तकलीफ होती है उसका निषेध करता है।
आज-कल जंगल हो या मुल्क, दोनों जगह यूट्यूब वाले सबसे बडा खतरा बन गए हैं आंतरिक सुरक्षा के लिए। अनेक यूट्यूब चैनल बंद करा दिए गए। अनेक कतार में हैं। कभी गिरजेश वशिष्ठ पर गाज गिरी, तो कभी संजय शर्मा पर। यूट्यूब का इस्तेमाल करने वाला कोई भी नर नारी हो, यदि सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ जुबान खोलता है या सवाल करता है तो उससे आंतरिक सुरक्षा को खतरा हो जाता है। ऐसे तत्वों को आप शहरी नक्सली कह सकते हैं। उनके खिलाफ देशद्रोह का मुकद्दमा दर्ज कर लिया जाता है। किया जाना चाहिए या नहीं ये बाद में अदालतें तय करती हैं।
जंगल हो या मुल्क केवल डराता है, धमकाता है। लोग जब नहीं डरते तो फिर राजा हो या रानी उसे देश में इमरजेंसी लगाना पडती है। इमरजेंसी भी दो तरह की होती है, एक श्रीमती इंदिरा गांधी वाली घोषित इमरजेंसी और दूसरी होती है अघोषित इमरजेंसी।
मैं उन खुशनसीब देशवासियों जैसा हूं जिन्होंने दोनों तरह की इमरजेंसियां देखी और उनका सामना किया है। कोई भी इमरजेंसी अच्छी नहीं होती और कोई भी इमरजेंसी सौ फीसदी खराब नहीं होती। दरअसल इमरजेंसी में नुक्सान जनता का ही होता है। कल भी हो चुका है, आज भी हो रहा है। इसके बाद भी इमरजेंसी और मुगलिया सल्तनत में भेद है। इतिहास से मुगलकाल विलोपित किया जा सकता है, इमरजेंसी का शासनकाल नहीं। क्योंकि एक सनातन देशी है, एक मुगलिया।
हमने वो इमरजेंसी भी देखी जिसमें 19 महीने जेलें विपक्षी नेताओं, कार्यकर्ताओं से ठसाठस भरी रहीं। तब यूट्यूब नहीं थी, लेकिन चार संवाद एजेंसियां थीं, उन्हें एक कर दिया गया था। अखबारों पर पहरे थे, कुछ लोग सुकून से थे तो कुछ डरे हुए थे। आज भी बहुत से लोग सुकून से हैं, बहुत से लोग डरे हुए हैं। कहीं बुलडोजर का डर है, कहीं देशद्रोही घोषित होने का डर है, कहीं अकारण जेल जाने का डर है, लेकिन तब भी निडर लोग डरे नहीं। आज भी निडर लोगों की संख्या कम नहीं है। राजा भले पहलगाम न पहुचे हों, लेकिन तमाम यूट्यूबर वहां पहुंच चुके हैं, कोई राहुल गांधी भी वहां लोगों को नजर आए।
आज के माहौल में आप कौन सी इमरजेंसी महसूस कर रहे हैं, ये आप जानें। किंतु मुझे तो अपनी कलम और जबान की चिंता है। चिंता है अपनी सनातन प्रश्नाकुलता की, जिसके चलते महाभारत और गीता जैसे कालजयी ग्रंथ हमें विरासत में मिले। क्योंकि तब के राजा घोर इमरजेंसी में यानि युद्धभूमि में भी प्रश्न करने की आजादी दिए हुए थे। अर्जुन अपने सारथी से प्रश्न कर सकता था, दृष्टिहीन राजा अपने मंत्री संजय से प्रश्न कर सकता था। जिस देश में या जंगल में प्रश्न करने से आंतरिक सुरक्षा खतरे में पडती हो उस देश का, जंगल का भगवान ही रक्षक हो सकता है। आप मान लीजिए कि हम सब यानि हमारा देश, हमारा जंगल सब भगवान के भरोसे है। हमारे भगवान हमारे मन मन्दिर में भी हैं और अयोध्या के नए मन्दिर में भी। जय सीताराम।