– राकेश अचल
भारत एक बार फिर युद्ध के मुहाने पर है। ये युद्ध किसी सीमा विवाद की वजह से नहीं बल्कि उस आतंकवाद के खिलाफ होने की अटकलें हैं जो पाकिस्तान से बाबस्ता है। कश्मीर घाटी के पहलगाम में 26 लोगों की दिन-दहाडे नृशंस हत्या की वारदात ने भारत को जबरन युद्धोन्मुख किया है। आसमान में लडाकू विमानों की भाग-दौड साफ दिखाई देने लगी है। हमारे लडाकू विमान भी गरज रहे हैं और देश के नेता भी। अब देखना है कि दोनों के सुर कब एक होते हैं और बमों की बरसात कब शुरू होती है।
भारत कृषि प्रधान देश है, युद्ध प्रधान नहीं। भारत ने अपनी आजादी से लेकर अब तक जितनी भी जंग लडी हैं उनमें शायद एक भी युद्ध ऐसा नहीं है जो भारत ने अपनी तरफ से लडा हो। देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू से लेकर आज के प्रात: स्मरणीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी भी युद्ध के पक्ष में नहीं हैं। सबको पता है कि जंग से कुछ हासिल नहीं होता। जंग से सिर्फ और सिर्फ बर्बादी होती है। हर जंग में मनुष्यता कराहती है, निर्दोष लोग मारे जाते हैं। फिर भी यदि जंग के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं होता तो भारत जंग से पीछे नहीं हटता। आगे भी शायद ऐसा ही हो। मोदी जी ने तो यूक्रेन और रूस की जंग समाप्त करने कि लिए काफी भाग-दौड की थी।
बात कोई चार दशक पुरानी है, शायद 1984 की, ग्वालियर के कैंसर अस्पताल परिसर में अटलबिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता में एक कवि सम्मेलन हो रहा था। उस कवि सम्मेलन में मैं भी एक नवोदित कवि के रूप में मौजूद था। उस कवि सम्मेलन में अटल जी ने अपनी चर्चित कविता ‘हम जंग न होने देंगे’ पढी थी। वे जंग में थे लेकिन कविता आत्मा से पढ रहे थे। उनकी कविता के कुछ अंश आप देखिए-
हम जंग न होने देंगे
विश्व शांति के हम साधक हैं, जंग न होने देंगे!
कभी न खेतों में फिर खूनी खाद फलेगीं,
खलिहानों में नहीं मौत की फसल खिलेगी
आसमान फिर कभी न अंगारे उगलेगा,
एटम में नागासाकी फिर नहीं जलेगी,
युद्धविहीन विश्व का सपना भंग न होने देंगे।
जंग न होने देंगे।
हथियारों के ढेरों पर जिनका है डेरा,
मुंह में शांति, बगल में बम, धोके का फेरा
कफन बेचने वालों से कह दो चिल्लाकर
दुनियां जान गई है उनका असली चेहरा
कामयाब हो उनकी चालें, वह ढंग न होने देंगे।
जंग न होने देंगे।
हमें चाहिए शांति, जिन्दगी हमको प्यारी
हमें चाहिए शांति, सृजन की है तैयारी
हमने छेडी जंग भूख से
आगे आकर हाथ बंटाए दुनिया सारी।
हरी-भरी धरती को खूनी रंग न लेने देंगे।
जंग न होने देंगे।
भारत-पाकिस्तान पडोसी, साथ-साथ रहना है,
प्यार करे या वार करे, दोनों को ही सहना है,
तीन बार लड चुके लडाई, कितना महंगा सौदा,
रूसी बम हो या अमरीकी, खून एक बहना है।
जो हम पर गुजरी बच्चों के संग न होने देंगे।
जंग न होने देंगे।
अटल जी को इसके बावजूद जंग का समाना करना पडा। उनके शांति प्रयासों को तत्कालीन पाकिस्तानी प्रशासन ने धत्ता बता दिया था। अटल जी के प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल में पाकिस्तान से जंग हुई और जीती भी गई। अटल जी से पहले प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू, लालबहादुर शास्त्री, श्रीमती इन्दिरा गांधी और फिर अटल बिहारी बाजपेयी ने भी जंग लडी। जंग में पाकिस्तान टूटा और बांग्लादेश बना। जंग में हार-जीत होती रहती है किन्तु देश विकास की दौड में पिछड जाता है। दरअसल जंग किसी भी लोकतांत्रिक सरकार का हथियार नहीं होती। जंग तानाशाही प्रवृत्ति के नेतृत्व का अमोध अस्त्र होता है। मोदी सरकार की नाकामी और पाकिस्तान की हठधर्मी भावी जंग की आधारशिला हैं।
जंग के मामले में हम संघ और भाजपा के प्रबल विरोधी होते हुए कविवर पं. अटल बिहारी के प्रशंसक हैं। अटल जी कवि थे या नहीं, ये अलग बात है, किन्तु वे बेहतरीन तुकबंद थे और उनका मन कविमन था। लेकिन जब सिर पर आ गई तो उनकी सरकार ने भी युद्ध लडा, क्योंकि युद्ध भारत पर थोपा गया था। इस बार भी युद्ध थोपा जा रहा है। हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी ने भी अटल जी की तर्ज पर पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने के लिए कोशिश की थी, लेकिन उनकी कोशिशें परवान नहीं चढ सकीं। वे अटल जी जैसे कवि हृदय नेता नहीं हैं। उनकी भाषा और कार्य पद्यति अटल जी से भिन्न है। अब उनके सामने भी कोई विकल्प नहीं है जंग का। यदि उन्होंने जंग न लडी तो वे राजनीतिक जंग हार जाएंगे। क्योंकि उन्होंने मुसलमानों के खिलाफ देश में ही नहीं, बल्कि दुनिया में भी एक अघोषित ध्रुवीकरण करने की कोशिश की है।
कोई माने या न माने, किन्तु इस समय देश में सरकार के तमाम फैसलों की वजह से मुस्लिम विरोधी वातावरण है। इस वातावरण को तैयार करने में भाजपा और सत्ता प्रतिष्ठान ने बहुत मेहनत की है। इससे देश की समरसता यानि धर्मनिरपेक्षता खतरे में है, लेकिन सरकार को इसकी कोई परवाह नहीं है। सरकार की इसी लापरवाही का नतीजा है कि देश में पुलवामा के बाद पहलगाम हो गया। खैर जो हुआ सो हुआ। अब आगे भी जो हो वो ठीक ही हो। इस समय मोदी जी की किस्मत है कि आतंकवाद के खिलाफ फन्हें विश्व व्यापी समर्थन मिल रहा है। अटल जी के साथ ऐसा नहीं था। जंग के लिए पहले देश को तैयार किया जाए, फिर फौज को। फौज तो हमेशा तैयार रहती ही है, लेकिन जनता नहीं। जंग के दौरान देश में सब एकजुट हों, कोई फिरकापरस्ती न हो, कोई अनबन न हो। कोई हिन्दू-मुसलमान न हो। कालाबाजारी न हो। अच्छी बात ये है कि पहलगाम हत्या काण्ड के बाद देश का मुसलमान भी आतकवाद के खिलाफ सडकों पर है।