अब शिवाजी महाराज बनाम सावरकर

– राकेश अचल


देश और दुनिया में प्रतिमाएं तेजी से टूट रही हैं, कुछ को जनता ने तोडा है, तो कुछ को भ्रष्टाचार ने। हमने इसी युग में बामियान में बुद्ध की प्रतिमाओं को टूटते देखा है। लेनिन की प्रतिमाएं तोडी गईं। महात्मा गांधी और डॉ. भीमराव अम्बेडकर की प्रतिमाएं तो बनी ही टूटने के लिए हैं। सद्दाम की प्रतिमाएं तोडी गईं। हाल ही में बांग्लादेश में बंग बंधू शेख मुजीबर्रहमान की प्रतिमाओं को तोडा गया, लेकिन महाराष्ट्र में छत्रपति शिवजी महाराज की प्रतिमा को भ्रष्टाचार ने तोड दिया। उज्जैन के महाकाल लोक में शिव की प्रतिमाएं इसी भ्रष्टाचार की वजह से टूट चुकी हैं, लेकिन प्रतिमा टूटने पर देश के लाडले प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने माफी पहली बार मांगी है।
प्रधानमंत्री जी दरियादिल हैं, संकीर्णता उन्हें छूकर भी नहीं निकली। इसीलिए उनका माफी मांगना किसी को चौंकाता नहीं है। माफी मांगना अच्छी बात है। हम अच्छी बात हो या अच्छे दिन उनके फेर में जल्दी आ जाते हैं। लेकिन मेरा तजुर्बा कहता है कि यदि महाराष्ट्र में विधानसभा के चुनाव सिर पर न होते तो प्रधानमंत्री जी भूलकर भी माफी नहीं मांगते। माफी मांगना और माफी देना उनकी फितरत का अंग है ही नहीं। माफी मांगना उनके लिए अकल्पनीय है। आप हिसाब लगाईए कि पिछले दस साल में ही नहीं बल्कि वे जब से राजनीति में है तब से उन्होंने कितनी बार माफी मांगी? वे जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब उनके ऊपर उनके ही नेताओं ने राजधर्म न निभाने का आरोप लगाया था, तब भी उन्होंने माफी नहीं मांगी। दूर मत जाइये उन्होंने हाल ही में मणिपुर के जलने पर माफी नहीं मांगी। उन्होंने दिल्ली की सडकों पर बेईज्जत कोई गई महिला खिलाडियों के अपमान के लिए माफी नहीं मांगी। किसान आंदोलन में 700 निरीह किसानों की मौत के लिए माफी मांगी नहीं मांगी।
जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि प्रधानमंत्री जी द्वारा छत्रपति शिवजी महाराज की प्रतिमा के खण्डन के लिए माफी मांगना उनकी एक राजनीतिक विवशता थी, अन्यथा वे कभी माफी नहीं मांगते। प्रधानमंत्री जी ने एक तरफ प्रतिमा निर्माण में हुए भ्रष्टाचार के लिए माफी मांगी, वहीं दूसरी तरफ वीर सावरकर का नाम लेकर अपने सनातन सियासी बैरियों पर भी निशाना साध लिया। अरे भाई! अभी सावरकर साहब पिक्चर में कहां से आ गए? उनकी प्रतिमा तो कहीं टूटी नहीं है। लेकिन आप समझ सकते हैं कि प्रधानमंत्री ने कितने भारी मन से महाराष्ट्र की जनता से माफी मांगी है। उनके मन में शिवाजी से ज्यादा सावरकर की उपेक्षा का दर्द है। महाराष्ट्र की राजनीति में शिवाजी और सावरकर की अपनी अहमियत है, लेकिन भाजपा के लिए इस समय शिवाजी महाराज गले की हड्डी बने हुए हैं।
जानकार जानते और मानते हैं कि यदि मोदी जी प्रतिमा खण्डन के मामले में महाराष्ट्र से माफी न मांगते तो आने वाले विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी का फट्टा साफ होने वाला था। महाराष्ट्र में भाजपा उसी तरह सत्ता में है जिस तरह दिल्ली में है। यानि महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार है, किन्तु यहां उसे शिवसेना के एक गुट और एनसीपी के एक गुट की बैशाखी लगाना पडी है, अन्यथा महाराष्ट्र की जनता तो कब की भाजपा से किनारा कर चुकी है, जबकि महाराष्ट्र में ही भाजपा के मात्र संगठन आरएसएस का मुख्यालय है। भाजपा महाराष्ट्र में कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना के ठाकरे गुट के सामने टिक नहीं पा रही है। महाराज शिवाजी की प्रतिमा के खण्डित होने के विवाद ने भाजपा की जडें और हिला दी हैं।
शिवाजी के बहाने सावरकर को याद कर मोदी जी महाराष्ट्र के चित पावन ब्राह्मणों को खुश करना चाहते हैं, लेकिन ये काम इतना आसान नहीं है। महाराष्ट्र में भाजपा के चित पावन ब्राह्मण नेता देवेन्द्र फडणवीस की फड उखड चुकी है। वे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहने के बाद झक मारकर उप मुख्यमंत्री बने बैठे हैं। भाजपा में चूहे को शेर और शेर को चूहा बनाने की आदि परम्परा है। आपको याद होगा कि इससे पहले मध्य प्रदेश में भाजपा ने अपनी ही सरकार में मुख्यमंत्री रह चुके बाबूलाल गौर को शिवराज सिंह चौहान की सरकार में केबिनेट मंत्री बना दिया था और वे खुशी-खुशी मंत्री बन भी गए थे। भाजपा को उम्मीद है कि महाराष्ट्र में शिवाजी महाराज की प्रतिमा के प्रकरण में प्रधानमंत्री जी द्वारा माफी मांग लेने से फडणवीस की फड एक बार फिर से जम जाएगी।
आप लिखकर रख लीजिए कि देश में आने वाले दिनों में माफियां मांगने और गालियां देने का एक और दौर शुरू होने वाला है। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चुनावों में ये प्रतिस्पद्र्धा चरम पर होगी, क्योंकि इन दोनों ही राज्यों में (हालांकि जम्मू-कश्मीर राज्य नहीं है) भाजपा की सांसें उखड रही हैं। ये दोनों राज्य भाजपा की भावी राजनीती का ही नहीं बल्कि भाजपा की बैशाखी सरकार का भविष्य भी तय करेंगे। मुमकिन है कि प्रधानमंत्री जी जम्मू-कश्मीर में जाकर सेना के जवानों की तमाम गैर-जरूरी शहादतों के लिए वहां की जनता से माफी मांग लें। धारा 370 हटाने कि लिए माफी मांग लें। उसे बहाल करने का वादा भी कर दें। मुमकिन है कि वे हरियाणा में महिला पहलवानों के साथ दिल्ली में हुई ज्यादतियों के लिए भी माफी मांग लें। क्योंकि अब उनका और भाजपा का बेडा पार तभी होगा जब वे लगातार माफियां मांगते रहें।
देश की जनता उतनी तंगदिल नहीं है जितने कि राजनीतिक दल होते हैं, इसलिए मुमकिन है कि प्रधानमंत्री जी को माफी मांगते हुए देखकर जनता का दिल पिघल जाए। यदि जनता न पिघली तो भाजपा के लिए मुश्किल होगी। जनता को पिघलना ही पडेगा अन्यथा प्रधानमंत्री जी मुंबई में पांच साल बाद फिनटेक के समारोह में आने का अपना कौल कैसे पूरा करेंगे? प्रधानमंत्री अपने भाषणों के जरिये बार-बात में ये संकेत देने की कोशिश करते हैं कि वे साल 75 के होने के बाद भी प्रधानमंत्री पद छोडने वाले नहीं हैं, भले ही भाजपा और संघ ही नहीं बल्कि कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष चाहे जितनी कोशिश कर ले। कोई हो या न हो किन्तु मैं प्रधानमंत्री जी के इस आत्मविश्वास के सामने नतमस्तक हूं। इतना आत्मविश्वास मैंने भारत के किसी भी नेता में नहीं देखा।
आने वाले दिनों में प्रधानमंत्री जी की जो प्रतिमा देश के 85 करोड भूखों के साथ और लोगों के मन में बनी है वो नहीं टूटना चाहिए। क्योंकि 2024 के आम चुनाव में इस प्रतिमा का आधार तो हिल चुका है। तमाम चीख-पुकार के बाद न भाजपा को 370 पार करा पाए और न अपने गठबंधन को 400 पार करा पाए। उनका अश्वमेघ का घोडा 240 पर आकर अटक गया। जबकि उनका घोडा रानी लक्ष्मी बाई के घोडे की तरह नया नहीं था। उसे राजनीति का नाला पार कर ही लेना चाहिए था, लेकिन नए ही नहीं बल्कि बूढे घोडे कभी-कभी मात खा जाते हैं और अपने सवार को मुश्किल में डाल देते हैं।