– राकेश अचल
डॉ. मोहन यादव हमारे मध्य प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री हैं। धर्मभीरू हैं। इस बार यानि पहली बार सरकारी खर्च पर जन्माष्टमी मना रहे हैं। लाडली बहनों को राखी का नेग पहले ही दे चुके हैं। आखिर मामा शिवराज सिंह चौहान द्वारा बनाई गई धर्म बहनों की वजह से ही उन्हें मुख्यमंत्री पद मिला है, लेकिन हम उनसे रक्षाबंधन पर कोई नेग नहीं बल्कि अपने ग्वालियर-चंबल अंचल की मिठास वापस लाने का अनुरोध करना चाहते हैं।
हम जानते हैं कि हमारे डॉ. मोहन यादव किसी भी मामले में शिवराज सिंह से उन्नीस नहीं हैं। वे दरियादिल हैं, हर मामले में दरियादिल हैं। उन्होंने पुराना कर्ज होने के बावजूद आठ हजार करोड का कर्ज और ले लिया है। प्रदेश के लिए जो कुछ करना चाहिए वे कर ही रहे हैं। इसलिए मुझे लगता है कि यदि मैं उनसे अपने ग्वालियर-चंबल अंचल की मिठास वापस लाने की गुहार लगाऊं तो वे जरूर सुन लेंगे। ये गुहार मेरी अपनी नहीं बल्कि पूरी अंचल की है। वैसे इस मिठास को गायब करने में इसी अंचल के महान जनप्रतिनिधियों का योगदान है। मेरा और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का इससे कोई लेना-देना नहीं है।
आपको बता दूं कि हमारे अंचल में एक जमाने में मिठास के दो बडे कारखाने थे। एक डबरा (ग्वालियर)में और दूसरा कैलारस (मुरैना) में कालांतर में दोनों बंद हो गए। मिठास के इन कारखानों का नाम है डबरा शुगर फैक्ट्री और कैलारस शुगर मिल। दोनों मिठास के कारखाने लालची, निरंकुश और किसान विरोधी प्रबंधन तथा सरकार की उपेक्षा के कारण वर्षों पहले बंद हो गए। बंद होने से पहले इन दोनों के प्रबंधन और मालिकों ने किसानों का करोडों रुपए का बकाया नहीं दिया। दोबारा में तो शुगर फैक्ट्री की जमीनें तक बेच दी गईं। लेकिन न भाजपा के टिनोपाल मंत्री कहे जाने वाले डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने हथेली लगाईं और न विकास के दूसरे मसीहा ज्योतिरादित्य सिंधिया और नव सामंतवाद के प्रतीक मप्र विधानसभा के मौजूदा अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर ने।
जहां तक मेरी जानकारी है कि कैलारस शुगर मिल के कर्मचारियों के वेतन और भत्ते मिलाकर लगभग 22 करोड का भुगतान और गन्ना किसानों के बकाया भुगतान पर कोई स्पष्ट मसौदा तैयार नहीं किया है। क्योंकि इस मिल की कीमती जमीन पर यहां के नेताओं की गिद्ध दृष्टि है। उनकी रुचि इस कारखाने को दोबारा शुरू करने में है ही नहीं, हालांकि यहां के अनेक लोग और किसान चाहते हैं कि ये शुगर फैक्ट्री दोबारा चालू हो तो किसानों के दिन फिर जाएं।
मुरैना में जब-जब चुनाव होते हैं तब-तब किसानों की आंखों में धूल झोंकने के लिए इस शुगर मिल को चलने की बात होती है, लेकिन इस पर अमल कोई नहीं करता। कहते हैं कि शिवराज सरकार पीपीपी मोड पर शुगर मिल चालू करना चाहती थी, तब कांग्रेस इसे मुद्दा बनाकर न केवल विरोध जताती थी, बल्कि बडे पैमाने पर किसानों को लेकर आंदोलन करती और भाजपा पर मिल बेचने का आरोप लगाती थी। कांग्रेस की सरकार बनने और बिगडने के बाद प्रदेश में शिवराज सिंह की और आज डॉ. मोहन यादव की सरकार है, लेकिन अभी तक न शुगर मिल चालू हुई और ना ही किसानों और कर्मचारियों के बकाया का भुगतान हो सका।
कैलरस शुगर मल को बंद हुए दो दशक हो चुके हैं, लेकिन मिल को पुनर्जीवित करने की हर कोशिश में आखिर बाधक बनकर समूल नष्ट करने की योजना कौन बना रहा है। मुरैना और उसके आस-पास का इलाका गन्ना उत्पादक रहा है, यही कारण रहा कि यहां लगभग पांच दशक पहले सहकारी शक्कर कारखाना कैलारस में स्थापित किया गया था, यह प्रदेश का पहला सहकारी शक्कर कारखाना था। इस कारखाने को शक्कर उत्पादन करने लाइसेंस वर्ष 1965 में मिला था, मगर पहला उत्पादन वर्ष 1971-72 में हुआ था। यह सिलसिला 2009 तक चलता रहा, उसके बाद गन्ना का उत्पादन कम होने पर एक वर्ष उत्पादन कम हुआ, वर्ष 2011 आते-आते बढती देनदारियों के कारण यह मिल ही बंद हो गई।
डबरा शुगर मिल भी दशकों से बंद पडी है। इसके मालिक वीर श्रीवास्तव सिंधिया परिवार के नजदीकी थे। तत्कालीन सिंधिया शासकों ने ही इस कारखाने के लिए एक श्रीवास्तव परिवार को मुफ्त में जमीन दी थी। स्थानीय भाजपा नेता डॉ. नरोत्तम मिश्रा का भी उन्हें पूरा सांरक्षण था। लेकिन श्रीवास्तव ने इरादतन इस मिल को बंद कर दिया, उनके ऊपर भी किसानों का करोडों रुपया बांकी है। डबरा के तत्कालीन एसडीएम शीतल पटले ने डबरा शुगर मिल सील कर दिया था, यह कार्रवाई कर्मचारियों की इस शिकायत पर की गई कि शुगर मिल प्रबंधन उनका भुगतान किए बिना दूसरी कंपनी को मशीन बेच रहा है। वर्षों से बंद डबरा शुगर मिल (दि ग्वालियर शुगर कंपनी लिमिटेड) प्रबंधन ने पुरानी मशीनों को दतिया जिले के एरई गांव में स्थापित हो रही एक अन्य शुगर मिल को बेच दिया था। अब इस शुगर फैक्ट्री की ज्यादातर जमीन पर शुगर मिल परिसर की जमीन में अवैध कॉलोनी काटे जाने के मामले में एसडीएम ने डबरा शुगर मिल के मालिक वीर श्रीवास्तव पर एक करोड 45 लाख 51 हजार रुपए का जुर्माना किया है।
दि ग्वालियर शुगर मिल कंपनी के मालिक विक्रम श्रीवास्तव उर्फ बाबा को एक बार पुलिस ने उसके बंगले से ही पकड लिया। इस दौरान फैक्ट्री मालिक का पुलिस कर्मियों से विवाद भी हुआ, लेकिन पुलिस नहीं मानी और फैक्ट्री मालिक को पकडकर थाने ले जाने लगी। अभी ये लोग मिल परिसर के मेन गेट पर ही पहुंचे थे कि तभी पुलिस के पास किसी का फोन आ गया। इसके बाद पुलिस ने उसे तुरंत वहीं छोड दिया, जबकि फैक्ट्री मालिक पर 20 चेक बाउंस के मामले दर्ज हैं और सात स्थाई वारंट निकले हुए थे।
स्थानीय नेताओं की मिलीभगत से आवासीय कालोनियां काट गई हैं। लेकिन कोई भी विधायक, मंत्री, संसद इस बंद कारखाने को दोबारा शुरू करने के बारे में बात नहीं करता। लिहाजा इलाके में एक तरफ गन्ना उत्पादक किसानों का करोडों रुपया डूब गया और अब अंचल में गन्ना उत्पादन भी बहुत कम हो गया है। कुल मिलाकर इस अंचल की मिठास अभी भी आपने पुनर्जीवन की आस लगाए बैठी है। ग्वालियर के पूर्व और वर्तमान संसद इस मुद्दे पर मौन हैं, लेकिन मुझे लगता है कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव यदि थोडा सा कर्ज और ले लें तो ये दोनों कारखाने एक बार फिर से शुरू हो सकते हैं, इनमें एक कारखाना सहकारी क्षेत्र का है और दूसरा निजी।