विनेश फोगाट को संवेदना नहीं प्रोत्साहन दीजिये

– राकेश अचल


पेरिस ओलम्पिक में मात्र 100 ग्राम वजन बढने की वजह से फाइनल में न खेल पाने के बाद भारतीय महिला पहलवान विनेश फोगाट ने हालांकि कुश्ती से सन्यास की घोषणा कर दी है, लेकिन मुझे लगता है कि ये एक जल्दबाजी में लिया गया फैसला है। विनेश के साथ पूरा देश खडा हुआ है। विनेश को इस समय संवेदना की नहीं बल्कि प्रोत्साहन की जरूरत है। विनेश को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए।
पेरिस ओलम्पिक से बाहर की गई विनेश का कैरियर इस रोक के बाद समाप्त नहीं हो जाता। विनेश के लिए ये घटना एक दु:स्वप्न से कम नहीं है, लेकिन उसे इसे भुलाना ही होगा। ऐसा करना आसान काम नहीं है, क्योंकि विनेश जिस मुकाम पर आकर टूटी है वहां आकर कोई भी पीछे मुडकर नहीं देखना चाहता। विनेश की पीडा को आम हिन्दुस्तानी समझता है और शायद इसीलिए विनेश से सीधा कोई रिश्ता न होते हुए भी हर भारतीय की संवेदना विनेश के साथ बा-बस्ता दिखाई देती है।
अर्जुन पुरस्कार से अलंकृत विनेश हमारे लिए तमाम बडे पुरस्कारों से बडा पुरस्कार है। इस समय जरूरत इस बात की है कि देश की वो ही सरकार विनेश के लिए लडे जिसने कुछ महीनों पहले अपनी पार्टी के सांसद के जरिये विनेश और विनेश के साथ देश की पूरी पहलवान बिरादरी को सडकों पर अपमानित किया था। विनेश उस मान-मर्दन की पीडा को भूलकर ओलम्पिक खेलों में शामिल हुई थी। उसने पहली दो प्रतियोगिताएं जीतकर भी दिखाई थीं। विनेश फाइनल में भी जीतती लेकिन उसे जीतने नहीं दिया गया। अभी ये नहीं कहा जा सकता कि विनेश किसी अंतर्राष्ट्रीय साजिश का शिकार हुई या उसका नसीब ही खराब था। भारत की सरकार को इस मामले में अंत तक लडना चाहिए। यदि सरकार न लडी तो ये एक बहुत बडी भूल होगी।
विनेश अभी कुल 30 साल की ही तो है। उसने राष्ट्र मण्डल खेलों से लेकर ओल्मपिक खेलों तक का सफर जिस तरह से पूरा किया है वो सराहनीय है। विनेश जिन परिस्थितियों से जूझकर यहां तक पहुंची है वो दुनिया के हर खिलाडी के लिए प्रेरणास्पद है। सरकार को स्कूली पाठ्यक्रमों में दीगर विषयों को पढाये जाने की जिद छोडकर विनेश की जीवनी पढने की व्यवस्था करना चाहिए। उसे ओलम्पिक के स्वर्णपदक से वंचित किया गया है। सरकार उसे देश का कोई भी सर्वोच्च नागरिक सम्मान देकर उसके घाव भर सकती है, लेकिन दुर्भाग्य ये कि जब विनेश अपने जीवन की सबसे बुरी घडियों से गुजर रही है तब सरकार की ओर से संसद में बतया जाता है कि सरकार ने विनेश को तैयार करने पर कितना खर्च किया। ये दुर्भाग्यपूर्ण है। सरकार ने विनेश पर जितना खर्च किया है इतना पैसा तो देश के मंत्री एक दिन में खर्च कर देते हैं। आखिर 70 लाख रुपए की क्या कीमत है?
ओलम्पिक खेलों में भारत की हैसियत किसी से छिपी नहीं है। ओलम्पिक खेलों की पदक तालिका में भारत विश्वगुरू नहीं बल्कि एक पुंछल्ला है। उसका स्थान 63वां है, आबादी के लिहाज से दुनिया का दूसरा बडा देश और खेलों में इतना फिसड्डी? जाहिर है कि इस देश में अभी तक की सरकारों ने खेलों कि लिए ज्यादा कुछ किया ही नहीं। देश के पास 8500 करोड का विमान खरीदने के लिए बजट है किन्तु खेल के लिए नहीं। हाल के बजट में खेल के बजट में मात्र 20 करोड रुपए की बढोत्तरी की गई है। इस बजट से भविष्य में कोई विनेश फोगाट तैयार नहीं की जा सकती। यदि भारत को सचमुच विश्व गुरू बनना है तो उसे खेल के मामले में चीन से मुकाबला करने की दृढ इच्छाशक्ति पैदा करना होगी।
दुनिया जानती है कि खेल सरकारी प्रोत्साहन के साथ ही दृढ इच्छाशक्ति और खेलों को राजनीति से मुक्ति के बिना मुमकिन नहीं है। देश का दुर्भाग्य ये है कि आज भी देश के तमाम खेल संगठनों पर खिलाडियों का नहीं बल्कि नेताओं और नेता-पुत्रों का कब्जा है और ये स्थिति आज से नहीं नेहरू से लेकर नरेन्द्र युग तक बादस्तूर जारी है। न कांग्रेस ने खेल संगठनों को आजाद रखा और न भाजपा रख पा रही है। वे नेता जो खेल का ककहरा भी नहीं जानते आज-कल खिलाडियों का भविष्य संवारने का दायित्व निभा रहे हैं। बेहतर हो कि पेरिस ओलम्पिक में चोट खाने के बाद सरकार सभी खेल संगठनों से नेताओं को एक झटके में हटाकर वहां खिलाडियों को बैठाए। राष्ट्र मण्डल खेलों से लेकर ओलम्पिक खेलों के लिए एक-दो महीने की नहीं बल्कि निरंतर तैयारी की व्यवस्था करे। देश के मान-सम्मान के लिए जितनी जरूरत सैनिकों की है, उतनी ही जरूरत खिलाडियों की भी है।
विनेश फोगाट हमारे लिए एक आदर्श भी है और एक सबक भी। हमें उसे टूटने से बचना होगा। ये सरकार की भी जिम्मेदारी है और समाज की भी। समाज विनेश के साथ पहले से खडा है। सरकार को उसके साथ खडा होना है और ओलम्पिक समिति के साथ निर्णायक लडाई लडना है। जब तक विनेश को न्याय नहीं मिलता भारत को ओलम्पिक खेलों के बहिष्कार की घोषणा करना चाहिए। जब तक सरकार इस तरह के कठोर फैसले नहीं करेगी तब तक ओलम्पिक खेलों के दकियानूसी नियम नहीं बदले जाएंगे। विनेश को फाइनल से पहले की प्रतियोगिताओं में जीतने का सिला पदकों के रूप में मिलना ही चाहिए। उसने जो प्रतियोगिताएं जीती हैं उनमें तो उसे अयोग्य नहीं घोषित किया गया था।
मैंने भावुकता में तमाम बातें कह दीं, लेकिन मुझे पता है कि जो देश वोटों की खातिर देश की 85 करोड आबादी को पांच किलो अनाज पर जिंदा रखे हुए है वो देश किसी भी सूरत में खेलों के मामले में चीन का मुकाबला नहीं कर सकता। ये आसान काम नहीं है। हमारे यहां तो ओलम्पिक खेलों में पदक हांसिल करने वलों को खेलों के लिए समर्पित करने के बजाय राजनीति के दलदल में उतार दिया जाता है, क्योंकि खिलाडियों के आभा मण्डल से वोट मिलते हैं।
आज देश के हर राजनीतिक दल के पास रिटायर्ड खिलाडी हैं। उन्हें अपने अनुभवों से भविष्य के खिलाडी पैदा करना चाहिए थे किन्तु वे राजनीति के जरिये सत्ता सुख भोगने का निर्लज्ज काम कर रहे हैं। क्रिकेटर हों या पहलवान, निशानेबाज हों या मुक्केबाज। सब राजनीति के शिकार हैं या राजनीति के औजार हैं। ऐसे में विनेश फोगाट का कुश्ती से सन्यास लेने की घोषणा करना उसकी हताशा का नतीजा है। सरकार को चाहिए कि वो विनेश को भरोसा दिलाए और खेल के मैदान से न हटने के लिए तैयार करे। विनेश का लोहा अभी समाप्त नहीं हुआ है। वो खेलों के जरिये देश की लम्बे समय तक सेवा कर सकती है।