– राकेश अचल
देश में चुनाव हुए और नई सरकार बने एक महीने से चार दिन ऊपर हो चुके हैं। देश की नई सूरत धीरे-धीरे उभर कर सामने आने लगी है। देश के प्रधानमंत्री और संसद में विपक्ष के नेता की प्राथमिकताएं भी आकार लेती दिखाई दे रही हैं। देश जब बाढ़ की विभीषिका और हाथरस के हादसे से दो-चार हो रहा है तब मैदान में लोकसभा में विपक्ष के नेता तो यत्र-तत्र नजर आ रहे हैं, लेकिन देश के प्रधानमंत्री के दर्शन दुर्लभ हैं। सुना है कि वे अपनी नई विदेश यात्रा पर रवाना हो रहे हैं।
प्रधानमंत्री की प्राथमिकताओं की तुलना लोकसभा में विपक्ष के नेता से करना अनुचित कही जा सकती है, लेकिन प्राथमिकताओं पर बात करना बिल्कुल अनुचित नहीं हो सकता। मोदीजी को ऑस्ट्रिया जाना है, रूस जाना है। वे जा सकते हैं, उन्हें जाना चाहिए, आखिर वे देश के प्रधानमंत्री हैं। विदेशों से रिश्ते बनाने यदि प्रधानमंत्री नहीं जाएंगे तो और कौन जाएगा? पहले भी प्रधानमंत्री ही ये काम करते थे, आज भी कर रहे हैं और कल भी करेंगे। सवाल प्रधानमंत्री जी के विदेश दौरों का नहीं है। सवाल ये है कि प्रधानमंत्री जी देश के उन हिस्सों का दौरा करने से क्यों बच रहे हैं जिन हिस्सों को उनकी सख्त जरूरत है।
प्रधानमंत्री जी देश की संसद की नहीं मानते न मानें, लेकिन वे अपनी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की भी नहीं मान रहे, ये चिंताजनक है। संघ ने उन्हें पिछले दिनों अहंकार का त्याग करने, मणिपुर की चिंता करने और विपक्ष को प्रतिपक्ष मानने की सलाह दी थी। दुर्भाग्य संघ का कि उसके स्वयं सेवक कहें या प्रचारक ने संघ की व्यास गद्दी पर बैठे डॉ. मोहन भागवत की सीख नहीं मानी। इन्द्रेश कुमार की सलाह को अनसुना कर दिया। मोदी जी न मणिपुर गए और न हाथरस। लगता है कि उनके पास किसी भी पीडित के जख्मों पर लगाने के लिए मरहम बचा ही नहीं है। वे कहीं जाकर करें भी तो क्या करें? ये काम सत्तापक्ष का थोड़े ही है, ये काम विपक्ष का है।
मुझे लगता है कि मोदी जी ने संघ की बात मानी हो या न मानी हो, किन्तु लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने संघ की बात अवश्य मान ली है। वे हाथरस भी गए और दोबारा मणिपुर भी जा रहे हैं। राहुल गांधी ने संघ की किसी शाखा में कभी कोई प्रशिक्षण नहीं लिया है, फिर भी उन्हें पता है कि नेताओं को अपनी प्राथमिकता में सबसे ऊपर किस मुद्दे को रखना चाहिए और किसे नहीं? मोदी जी की प्राथमिकता में ऑस्ट्रिया और रूस का दौरा है तो राहुल की प्राथमिकता में हाथरस और मणिपुर है।
आपको याद दिला दूं कि सत्तारूढ़ दल के मीडिया सेल ने चुनाव समाप्त होते ही लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी की इटली यात्रा का हवाई टिकट वायरल किया था। टिकट असली था या नकली ये राम जानें, किन्तु राहुल गांधी भाजपा के रहस्योदघाटन के बाद भी अभी तक अपनी ननिहाल इटली नहीं गए। हां शपथ ग्रहण के फौरन बाद हमारे प्रधानमंत्री जी जरूर इटली का दौरा कर आए। आखिर इटली से भारत का रोटी-बेटी का रिश्ता जो है। मोदी जी की इटली यात्रा से भारत को क्या हांसिल हुआ और क्या नहीं, कोई नहीं जानता। राष्ट्रपति को भी शायद इस बारे में कोई जानकारी नहीं होगी, क्योंकि उन्हें प्रधानमंत्री जी कभी कुछ बताते ही नहीं हैं। वे किसी को कुछ नहीं बतात। वे संसद को कुछ नहीं बताते।
नई सरकार का पहला बजट तैयार किया जा रहा है, किन्तु प्रधानमंत्री जी को ऑस्ट्रिया जाना है, रूस जाना है। उन्हें विदेशों से भारत के रिश्ते सुधारना है, उन्हें देश में किसी से रिश्ते सुधरने की जरूरत नहीं है। संघ से भी नहीं। कांग्रेस से तो बिल्कुल नहीं। फिलहाल मोदी जी देश में केवल टीडीपी और जेडीयू से रिश्तों को प्राथमिकता दे रहे हैं। मुमकिन है कि मोदी जी ने अपनी सरकार की वित्त मंत्री को इस बारे में निर्देश दे दिए हैं कि उन्हें टीडीपी और जेडीयू के लिए क्या करना है? दोनों ने अपने-अपने राज्यों के लिए जो मांगा है, सो उन्हें दे दिया जाएगा, ताकि वे अपनी बैशाखियों को हटाने के बारे में सोचे ही नहीं। अभी मोदी जी को अपनी सरकार चलने के लिए बैशाखियों की सख्त जरूरत है।
इन्दिरा गांधी और पं. जवाहर लाल नेहरू के बाद वे देश के ऐसे तीसरे प्रधानमंत्री हैं जो दूर की सोचते हैं। दूर की सोचते ही नहीं, बल्कि दूर की कौड़ी भी ले आते हैं। उन्हें पास का शायद साफ-साफ नहीं दिखाई देता। यदि दिखाई देता तो वे मणिपुर जाते, हाथरस जाते। ऑस्ट्रिया या रूस नहीं जाते। बहरहाल हम और आप मोदी जी की प्राथमिकताओं पर सवाल करने वाले कौन होते हैं? देश की जनता को, विपक्ष को, मीडिया को, अदालतों को सवाल करने का अधिकार शायद अब है ही नहीं। सवाल वहां किए जाते हैं जहां जबाबदेह सरकार हो। यहां तो बैशाखी सरकार है। जनता ने उसे 400 पार नहीं कराया तो वो जनता की क्यों सुने? सरकार जनादेश से नहीं बैशखियों से चल रही है। ऐसे में बैशाखियों की सुनी जाएगी न भाई!
जनता आने वाले दिनों में बैशाखियों पर टिकी सरकार का कुछ नहीं बिगाड़ सकती। उसे जो करना था सो वो कर चुकी है। अब जो करना है वो सरकार को करना है। इसलिए चुपचाप तमाशा देखिये। क्योंकि हम एक तमाशबीन लोकतन्त्र की रियाया जो हैं।