निष्काम सेवा ही भजन है : पाठक जी महाराज

अवंतीबाई मांगलिक भवन में चल रही है श्रीमद् भागवत कथा

भिण्ड, 04 फरवरी। शहर में शा. उमावि क्र.दो के पास स्थित महारानी अवंतिबाई मांगलिक भवन में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के चतुर्थ दिवस कथा व्यास संत श्री अनिल पाठक जी माहाराज ने कहा कि राग-द्वेष जिस चित्त में है वह चित्त अशुद्ध है, चित्त शुद्धि का सर्वश्रेष्ठ उपाय है तो वह कथा श्रवण और सेवा का भाव रखना। जो भक्त भक्ति की राह पर चलने लगता है भगवान की कथाओं भजन-पूजन ध्यान में अपने मन को स्थिर करने लगता हैख् उसके जीवन में ज्यादा कष्ट आने लगते हैं। ऐसा इसलिए ताकि भक्त अपने ईश्वरीय लक्ष्य के प्रति दृढ़ हो सके।
व्यास जी ने कहा कि सेवा भक्त का परम कर्तव्य है, परंतु इसे मनुष्य ऐसे करता है कि जैसे बातों को रट कर कोई वक्ता तो बन सकता पर ज्ञानी नहीं। इसलिए यह आवश्यक है कि यदि मनुष्य शास्त्रों को अपने अनुसार समझें व कहें तो वह अर्थ का अनर्थ कर देता है। क्योंकि उसमें कर्ता भाव का अभिमान आ जाता है, इसलिए यहां आवश्यकता है कि वक्ता अपने गुरु की शरण या किसी तपस्वी संत के सानिध्य में रह कर कर्म करें। कुछ इसी प्रकार मनुष्य सेवा तो करता है परंतु प्रत्येक क्षण स्वयं को कर्ता मानकर ही सेवा करता है जब तक आपके अंदर कर्ता का भाव रहेगा, तब तक वह सेवा नहीं बल्कि आपका कर्म कहलाता है। इसलिए सेवा को जितना सरल समझा जाता वह उतनी कठिन, परंतु उतनी ही सरल भी है। सेवा भाव से किया गया कर्म अथवा निष्कामता से की सेवा आपकी उन्नति के द्वार खोल देती है, इसलिए सेवा को ही भजन बताया गया है।
आज की कथा में बड़ी झग्गा अकोड़ा से श्रीश्री 1008 लक्ष्मण दास जी महाराज एवं गोठ आश्रम से महंत कैलाश नारायण जी का आगमन हुआ। कथा के अंतिम समय में भगवान श्रीकृष्ण जी के जन्मोत्सव की कथा का वर्णन किया गया। साथ ही श्रीधाम वृन्दावन से पधारीं साध्वी आराध्या देवी द्वारा भगवान कृष्ण जन्म की सुंदर झांकी को सजाया गया एवं उपस्थित सभी साधु-संतों को भण्डारा कराकर कर दक्षिणा दी गई।