– राकेश अचल –
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब-जब राष्ट्र को संबोधित करने आते हैं, तब-तब पूरा देश किसी न किसी अनहोनी की आशंका से डर जाता है, लेकिन गनीमत है कि इस बार ये आशंका निराधार साबित हुई और प्रधानमंत्री जी ने एक सुखद घोषणा की, कि कोरोना के नए वेरिएंट से निबटने के लिए अब देश में 12 साल की उम्र तक के बच्चों को भी रोग निरोधक टीका लगेगा। इसके लिए भारत के औषधि नियंत्रक ने अपनी आपात बैठक में मंजूरी दे दी है। दुनिया के दूसरे देशों में बच्चों को इस तरह के टीके पहले से लग रहे हैं।
भारत दुनिया का सबसे बड़ा वेक्सीन उत्पादक देश होने के बावजूद अपने ही देश में वेक्सीन सप्लाई करने में पहले मात खा चुका है। इसकी वजह से देश में कोरोना की दूसरी लहर में देश को भारी जनहानि का सामना करना पड़ा। वेक्सीन के लिए लम्बी-लम्बी कतारें लगीं और दूसरे डोज के लिए भी लोगों को लंबा इंतजार करना पड़ा। टीकाकरण में पिछडऩे के बावजूद देश ने अभियान जारी रखा और कथित रूप से अनेक कीर्तिमान भी बनाए, किंतु अभी भी टीकाकरण का शत-प्रतिशत लक्ष्य पूरा नहीं हो सका है।
आपको याद होगा कि कोवाक्सिन ऐसी दूसरी वैक्सीन है, जिसका इस्तेमाल देश में 12 से 18 साल के बच्चों के लिए किया जा सकता है। इससे पहले जायकोव-डी पहला ऐसा टीका था, जिसे भारत के औषधि नियामक की ओर से 12 वर्ष और इससे अधिक आयु के लोगों के लिए अनुमति दी गई थी। हालांकि, केन्द्र सरकार ने फिलहाल टीके की खुराक केवल वयस्कों को ही देने का फैसला किया था, यानि जैकोव-डी को मंजूरी देने के बाद भी उसका इस्तेमाल नहीं किया जा सका। इस मामले में हमारे अनिश्चय अनंत होते हैं और इसी वजह से अक्सर देर हो जाती है।
कोरोना के विश्व-व्यापी आक्रमण के बाद से फिलहाल दुनिया के कई देशों में बच्चों को कोरोना की वैक्सीन दी जा रही है। वहीं, फाइजर बायोटेक ने पांच साल से ऊपर बच्चों के लिए वैक्सीन बनानी शुरू भी कर दी है। इस वैक्सीन का इस्तेमाल अमेरिका और यूरोप में किया भी जा रहा है। लेकिन हमें निर्णय करने में ही बहुत वक्त लग गया। फिर भी देर आयद-दुरुस्त आयद ही सही। अब देश में 12 वर्ष तक के बच्चों को रोग से बचाया जा सकेगा। इसके लिए औषदि नियंत्रक के साथ-साथ प्रधानमंत्री का भी आभार माना जाना चाहिए।
प्रधानमंत्री की घोषणा के अनुसार तीन जनवरी 2022 से यह काम शुरू होगा। इसके अलावा 10 जनवरी से हेल्थ केयर वर्कर को बूस्टर डोज लगेगी। 60 वर्ष से ऊपर की आयु के कॉ-मॉरबिडिटी वाले नागरिकों को, उनके डॉक्टर की सलाह पर वैक्सीन की ‘बचाव की खुराक’ का विकल्प उनके लिए भी उपलब्ध होगा। निश्चित ही यह फैसला कोरोना के खिलाफ देश की लड़ाई को तो मजबूत करेगा ही, स्कूल और कॉलेजों में जा रहे बच्चों की और उनके माता-पिता की चिंता भी कम करेगा।
टीकाकरण के मामले में यदि सरकारी दावों पर आपका यकीन हो तो देश में अर्हता रखने वाले 90 फीसदी वयस्कों को कोविड टीके की पहली खुराक लग चुकी है। जबकि 61 फीसदी लोगों को दोनों खुराक दी जा चुकी है। देश की लचर स्वास्थ्य प्रणाली केबावजूद देश में कई जगहों पर पात्र आबादी का 100 प्रतिशत टीकाकरण का लक्ष्य हासिल कियाजाना भी वाकई अभूतपूर्व कहा जा सकता है।
संसद में आक्सीजन की कमी से एक भी कोरोना मरीजों की मौत न होने का दावा करने वाली सरकार का दावा है कि अब देश कोरोना से लड़ाई के मामले में मजबूत स्थिति में है। हमारे पास 18 लाख आईसोलेटेड बैड हैं। पांच लाख आक्सीजन, एक लाख 40 हजार आईसीयू बैड भी तैयार हैं। इनके अलावा 90 हजार बैड बच्चों के लिए हैं। हमारे पास तीन हजार से ज्यादा पीएसए आक्सीजन प्लांट हैं। चार लाख सिलेंडर सूबों को दिए गए हैं। राज्यों को दवाओं की बफर डोज तैयार करने में सहायता की जा रही है।
उल्लेखनीय है कि भारत में अभी तक कोरोना वायरस के ओमीक्रोन स्वरूप के कुल 415 मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें से 115 लोग स्वस्थ हो चुके हैं या देश छोड़कर चले गए हैं। लेकिन मौत का खौफनाक मंजर देख चुका देश अभी भी आशंकित है, असावधान भी कम नहीं है। ओमीक्रॉन के खतरे को देखते हुए अनेक राज्यों में रात का कफ्र्यू लगाने की शुरुआत हो गई है। लेकिन दिन में असावधानियां लगातार जारी है। कोरोना या ओमीक्रॉन का प्रोटोकॉल आज भी सियासत पर लागू नहीं हो पा रहा है।
पिछले साल कोरोना की दो लहरों में चार लाख 79 हजार 520 लोगों की जान गंवा चुका भारत आज भी लापरवाह है। ये लापरवाही जरूरी है या मजबूरी कहना कठिन है। लोगों को लाठी के बल पर सावधान नहीं किया जा सकता। बचाव के हथियार तो जनता को खुद साथ लेकर चलना पड़ेंगे। सरकार कहां-कहां मौजूद रह सकती है? सरकार की अपनी सीमाएं हैं। दरअसल लापरवाही मनुष्य का स्वभाव है, भारत में ही नहीं दुनिया बाहर में लापरवाही एक बड़ी समस्या है, भारत में कुछ ज्यादा है। तमाम सतर्कता और इंतजामों के बाद भी देश की तीन करोड़ 47 लाख 81 हजार 380 कोरोना की चपेट में आ चुकी हैं, हालांकि इनमें से तीन करोड़ 42 लाख 23 हजार 263 का इलाज भी हुआ।
प्रधानमंत्री की इस घोषणा के बाद भी जरूरत इस बात की है कि इस बीमारी को राजनीति के लिए ढाल की तरह इस्तेमाल न किया जाए, यदि पाबंदियां लगाईं जाएं तो जनहित में लगाई जाएं, केवल राजनीतिक नफा-नुक्सान को ध्यान में रखकर फैसले न लिए जाएं। ये स्वीकार किया जाए कि बीमारी रात में कफ्र्यू लगाने भर से नहीं रुकने वाली, दिन में भी रैलियों का मोह छोडऩा पड़ेगा। चिंता की बात ये है कि देश के पांच राज्यों में नए साल में होने वाले विधानसभा चुनावों में भी इसी बीमारी कि रोकथाम के लिए बनाए गए, प्रोटोकॉल को ढाल बनाने की कोशिश की जा रही है। सरकार का केंचुआ ही नहीं अब तो न्यायपालिका में बैठे हुए कतिपय लोग सरकार को सुझाव देने लगे हैं कि चुनावों को टाल दिया जाए।
बहरहाल बड़े दिन पर सरकार की और से की गई इस घोषणा को देश के स्वास्थ्य के लिए एक उपहार मानकर स्वीकार किया जाना चाहिए और भगवान के साथ-साथ प्रधानमंत्री का भी आभार माना जाना चाहिए कि उन्होंने किसी से कुछ भी बजाने या फूल बरसाने के लिए नहीं कहा। शायद प्रधान जी समझ गए हैं कि बीमारी ताली और थाली बजाने से रुकती नहीं है।
लेखक : वरिष्ठ पत्रकार हैं।