– राकेश अचल
आखिर जिस बात की आशंका थी वो हो ही गया, 22 अप्रैल को पहलगाम में पाकिस्तानी आतंकियों द्वारा किए गए नृशंस हत्याकांड का बदला लेने के लिए भारत सरकार ने अपनी सेना के माध्यम से जो ‘ऑपरेशन सिंदूर’ चलाया था उसका असली खेल 22 मई 2025 को बीकानेर में तब खेला गया जब प्रात: स्मरणीय , विश्वगुरु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी रगों में लहू के बजाय सिंदूर बहने का दावा किया।
सिंदूर खेला है तो एक सांस्कृतिक घटना लेकिन भारत में आजादी के बाद पहली बार इसे सियासी मकसद से खेला गया है। आपको सिंदूर खेला के बारे में भी बता दूं। सिंदूर खेला बंगाल में विजयादशमी (दशहरा) के दिन मनाया जाता है। यह मुख्य रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा किया जाने वाला अनुष्ठान है, जो दुर्गा पूजा के समापन का प्रतीक है। इस रिवाज में विवाहित महिलाएं एक-दूसरे के माथे पर सिंदूर (लाल रंग का पाउडर) लगाती हैं और मां दुर्गा को विदाई देने से पहले यह अनुष्ठान करती हैं। यह उनके पति की लंबी उम्र और वैवाहिक सुख की कामना का प्रतीक माना जाता है। इसके अलावा, यह सामाजिक एकता और बहनापे का भी प्रतीक है, क्योंकि महिलाएं एक साथ इकट्ठा होती हैं, हंसी-मजाक करती हैं और इस रस्म को उत्सव के रूप में मनाती हैं। यह रिवाज विशेष रूप से पश्चिम बंगाल और बंगाली समुदायों में प्रचलित है।
हमारे दूरदृष्टा प्रधानमंत्री ने पहलगाम में 26 महिलाओं की मांग का सिंदूर उजाडे जाने की घटना को पूरी गंभीरता से लिया। वे सऊदी अरब का दौरा छोडकर भारत लौटे और पहलगाम जाने के बजाय मधुबनी जाकर बोले, सेना के हाथ खोले और सेना को 15 दिन बाद पाकिस्तानी आतंकियों के ठिकाने नेस्तनाबूत करने के लिए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की जिम्मेदारी सौंपी। सेना ने 7 से 10 मई तक ऑपरेशन सिंदूर चलाकर पाकिस्तानी आतंकियों के 21 में से 9 ठिकाने और अनेक सैन्य अड्डे तबाह कर दिए, लेकिन ऑपरेशन पूरा होने से पहले ही अचानक भारत की ओर से अमेरिका ने और बाद में भारत सरकार ने युद्ध विराम की घोषणा कर सेना के हाथ फिर बांध दिए। उल्टे प्रधानमंत्री ने कहा कि सिंदूर खेला तो मात्र 22 मिनिट में हो गया था।
ऑपरेशन सिंदूर का शेष बारूद प्रधानमंत्री जी ने अपने लिए बचा लिया। कुछ उनकी रगों में बह रहा है और शेष बिहार और बंगाल की सधवाओं के लिए बचाकर रख लिया गया है। मुमकिन है कि विधानसभा चुनावों के दौरान मोदी जी की तस्वीरों वाली सिंदूर की डिब्बियां पीले चावलों के स्थान पर बिहार और बंगाल में घर घर वितरित की जाएं। ऑपरेशन सिंदूर की टीशर्ट और मोदी जी के सैन्य वर्दी वाले होर्डिंग्स से तो देश के गली चौराहे पटने लगे हैं ही।
सिंदूर जिसे हमारे बुंदेलखण्ड में सेंदुर भी कहते हैं का इतना शानदार, बाजिब और राष्ट्रव्यापी इस्तेमाल भारत में पहले कभी नहीं किया गया। महात्मा गांधी ने जिस तरह ‘नमक सत्याग्रह’ किया था उसी तर्ज पर हमारे देदीप्यमान प्रधानमंत्री जी ‘सिंदूर सत्याग्रह’ चला रहे हैं। पाकिस्तान की सीमा से सटे बीकानेर से ये राष्ट्रीय सत्याग्रह शुरू भी हो गया है। बापू मोहनदास करमचंद गांधी को यदि सिंदूर की महिमा का पता होता तो मुमकिन है कि वे देश को आजाद कराने के लिए ‘नमक सत्याग्रह’ और ‘असहयोग आंदोलनों’ के बजाय ‘सिंदूर सत्याग्रह’ चलाते। सिंदूर की धमक दूर तक होती है। ये किसी की मांग में होता है तो सौभाग्य बन जाता है। किसी का चोला होता है तो संकटमोचन बन जाता है और जब किसी की रगों में बहने लगता है तो नरेन्द्र दामोदर दास मोदी बन जाता है।
संयोग देखिए कि ये वही मोदी हैं जो किशोरावस्था में एक मांग में सिंदूर भरकर प्रचारक बन गए थे। संघ के लिए, देश के लिए भार्या को त्याग दिया था किंतु मां को नहीं। आज वही मोदी जी पाकिस्तान से भारतीय सुहागिनों की मांग का सिंदूर उजाडने का बदला लेने के लिए पाकिस्तान के साथ ही नहीं हिंदुस्तान के साथ भी ‘सिंदूर खेला’ खेल रहे हैं। राष्ट्र के काम आकर सिंदूर अपने आपको धन्य अनुभव कर रहा है। रोली, चंदन को ये सुअवसर नहीं मिला। हालांकि सब जानते हैं कि सिंदूर विषाक्त होता है। किसी जमाने में कोकिलकंठी गायकों से ईष्र्या करने वाले लोग स्थापित और लोकप्रिय गायकों को पान में रखकर सिंदूर खिला देते से, इससे स्थाई रूप से स्वरभंग हो जाता था। लेकिन मोदी जी इस मामले में नीलकंठ साबित हुए। उन्होंने पहगाम हत्याकांड के बाद सिंदूर को अपने रक्त से विस्थापित कर दिया। अब आप उनकी तुलना नीम चढे करेले से भी कर सकते हैं।
मोदी जी के सिंदूर खेला के सामने देश का विपक्ष शायद ही ठहर सके। अब न वक्फ बोर्ड कानून उनका कुछ बिगाड सकता है और न जातीय जनगणना का मुद्दा। सब पर सिंदूर फिर गया समझिए। पहले कहावत थी कि उम्मीदों पर पानी फिर गया, कालांतर में कहावत हो गई है कि उम्मीदों पर सिंदूर फिर गया। भारत की राजनीति पर इस सिंदूर खेला के दूरगामी प्रभाव आने वाले समय में देखने को मिलेंगे। इतश्री सिंदूर गाथा।