सामान्य वन मण्डल एवं सुप्रयास द्वारा लुप्तप्राय प्रजाति दिवस पर कार्यशाला आयोजित

भिण्ड, 16 मई। राष्ट्रीय लुप्तप्राय प्रजाति दिवस के अवसर पर सामान्य वन मण्डल भिण्ड तथा सामाजिक संस्था सुप्रयास द्वारा जिला वन मण्डल अधिकारी कार्यालय में चंबल संभाग में लुप्तप्राय प्रजातियों की स्थिति विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया।
कार्यशाला को संबोधित करते हुए रेंज ऑफिसर वसंत शर्मा ने कहा कि राष्ट्रीय लुप्तप्राय प्रजाति दिवस प्रति वर्ष मई के तीसरे शुक्रवार को आयोजित किया जाता है। यह दिन लुप्तप्राय प्रजातियों की स्थिति के बारे में जागरुकता बढाने और संरक्षण प्रयासों को बढावा देने के लिए समर्पित है। इस कार्यशाला के माध्यम से वन्यजीवों और उनके आवासों की रक्षा के महत्व को समझने में मदद मिलती है। दुनिया के प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र में मानवीय हस्तक्षेप सदियों से जारी है। आधुनिक दुनिया में जैसे-जैसे मनुष्य दुनिया के विभिन्न हिस्सों में यात्रा करते और बसते गए, उन्होंने खेती के लिए भूमि साफ की, जहाज निर्माण के लिए जंगलों को काटा और पैसे के लिए शिकार और जाल बिछाना शुरू किया। पिछले कुछ वर्षों में, वन्यजीवों का शिकार और अवैध शिकार अधिक आम हो गया और दुनिया भर में वन्यजीवों की आबादी घटने लगी है।
प्रो. इकबाल अली ने कहा कि आईयूसीएन रेड लिस्ट लिस्ट 2021 के अनुसार भारत में कुल 199 प्रजातियां गंभीर रूप से संकटग्रस्त श्रेणी में मानी गई हैं। लुप्तप्राय प्रजातियां ऐसी प्रजातियां हैं जिनके निकट भविष्य में विलुप्त होने की बहुत संभावना है। लुप्तप्राय प्रजातियां निवास स्थान के नुकसान, अवैध शिकार, आक्रामक प्रजातियों और जलवायु परिवर्तन जैसे कारकों के कारण खतरे में पड सकती हैं। पर इससे भी बडा कारण मनुष्यों के कारण है। लोग जंगलों को काटकर, हवा या पानी को प्रदूषित करके या शहरों और सडकों का निर्माण करके जानवरों के प्राकृतिक आवासों को नष्ट कर देते हैं। इसके अलावा, जब जानवरों का बहुत ज्यादा शिकार किया जाता है, तो वे अपनी प्रजाति को बनाए रखने के लिए पर्याप्त प्रजनन नहीं कर पाते हैं। गंभीर रूप से लुप्तप्राय ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (अर्डियोटिस नाइग्रिसेप्स) जिसे सोन चिरैया भी कहा जाता है। कभी अपने ग्वालियर चंबल संभाग में पाई जाती थी अब बिल्कुल दिखाई नहीं देती है।
प्रो. हरेन्द्र देव शर्मा ने कहा कि भारत में 10 जैव भौगोलिक क्षेत्र हैं और यहां अब तक दर्ज स्तनधारी प्रजातियों में से 8.58 फीसदी का घर है, जबकि पक्षी प्रजातियों के लिए यह आंकडा 13.66 फीसदी है। इस कार्यशाला का उद्देश्य पृथ्वी के लुप्तप्राय वनस्पतियों और जीवों के संरक्षण के बारे में जागरूकता फैलाना है। कार्यशाला में सोन चिरैया अभ्यारण में कार्य कर चुके संजय तिवारी ने कहा कि वन्य जीवों की पहचान के लिए नए स्टाफ को प्रशिक्षित किया जाना आवश्यक है क्योंकि जब तक प्रजातियों की व्यवहार परिस्थितियों आदि के बारे में विस्तार से जानकारी नहीं होगी तो उनकी पहचान भी होना कठिन हो जाता है।
सुप्रयास के सचिव और वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट डॉ. मनोज जैन ने बताया कि ग्वालियर चंबल संभाग में लुप्त प्रजाति के जीव जंतुओं और वनस्पतियों में कुछ आज भी उपस्थित हैं। जिनको शेड्यूल वन में रखा गया है। स्तनधारी में कृष्णमृग, स्याहगोश, चीता, चिंकारा, चौसिंगा, गंगा डॉल्फिन, तेंदुआ, बाघ, भेडिया तथा पैंगोलिन प्रमुख हैं। पक्षियों में सोन चिरैया, चील, बाज, सफेद गिद्ध, फाल्कन, बजर्ड, ओस्प्रे, मोर, साइबेरियन व्हाइट क्रेन, इंडियन स्कीमर, ब्लैक बेली टर्न प्रमुख है। इनको तत्काल संरक्षण की आवश्यकता है। अभार प्रदर्शन डिप्टी रेंजर मेवाराम जाटव ने किया। कार्यशाला में मनोज भदौरिया, विनय भदौरिया, प्रदीप दोहरे, अनिल भदौरिया, जितेन्द्र शर्मा, घनश्याम बाथम, शिवम वर्मा, भुल्लन सिंह भदौरिया, विजय प्रताप गर्ग, पवन आर्या, ज्योति तोमर, सरिता पचेकिया ने भाग लिया।