– राकेश अचल
हमारे चीकू और आपके चहेते क्रिकेटर विराट कोहली ने महज 36 साल की उम्र में क्रिकेट से सन्यास ले लिया। हालांकि ये उम्र सन्यास की थी नहीं, लेकिन एक समझदार खिलाडी वही है जो सही समय पर सही फैसला कर ले। विराट ने सन्यास का फैसला कब कर लिया इसकी भनक तक किसी को नहीं लगी।
दिल्ली में पैदा हुए विराट कोहली ने 2006 में अपनी पहली श्रेणी क्रिकेट कैरियर की शुरुआत की थी। वे छात्र जीवन से ही क्रिकेट की पिच पर थे। उन्होंने 2008 में मलेशिया में अंडर-19 विश्व कप में जीत हासिल की और कुछ महीने बाद 19 साल की उम्र में श्रीलंका के खिलाफ भारत के लिए अपना ओडीआई पदार्पण किया। शुरुआत में भारतीय टीम में रिजर्व बल्लेबाज के रूप में खेलने के बाद, उन्होंने जल्द ही ओडीआई के मध्य क्रम में नियमित रूप से अपने आपको स्थापित किया और टीम का हिस्सा रहे और 2011 क्रिकेट विश्व कप जीता।
सब जानते हैं कि विराट ने 2011 में अपना टेस्ट मैच कैरियर शुरू किया था और 2013 तक ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका में टेस्ट शतक के साथ ओडीआई विशेषज्ञ के टैग को झुका दिया। 2013 में पहली बार ओडीआई बल्लेबाजों के लिए आईसीसी रैंकिंग में नंबर एक स्थान पर पहुंचने के बाद, कोहली को ट्वेंटी-20 प्रारूप में भी सफलता मिली, आईसीसी विश्व ट्वेंटी-20 (2014 और 2016 में) में मैन ऑफ द टूर्नामेंट दो बार वह जीते। 2014 में वह आईसीसी रैंकिंग में शीर्ष रैंकिंग वाले टी 20 आई बल्लेबाज बने, जिसने 2017 तक तीन लगातार वर्षों की स्थिति संभाली। अक्टूबर 2017 के बाद से वह दुनिया में शीर्ष रैंकिंग ओडीआई बल्लेबाज भी रहे हैं। एक ऐसा समय भी आया जब 13 दिसंबर 2016 को वह आईसीसी रैंकिंग में तीनों फॉर्मेट के प्रथम स्थान पर थे। कोहली को 2012 में ओडीआई टीम के उप-कप्तान नियुक्त किया गया था और 2014 में महेन्द्र सिंह धोनी की टेस्ट सेवानिवृत्ति के बाद टेस्ट कप्तानी सौंपी गई थी।
मैं यहां आपको कोहली की उपलब्धियां गिनाने नहीं बैठा। वे तो आप ग्रोक या गूगल से पूछ सकते हैं। मैं तो आपको ये बताना चाहता हूं कि सन्यास लेने में खिलाडी जितने मुस्तैद होते हैं उतना और कोई नहीं होता। नेता, वकील, लेखक मरते दम तक सन्यास के बारे में नहीं सोचते, निर्णय करना तो दूर की बात है।
कोहली क्रिकेट में जितना ऊपर जा सकते थे, वहां तक वे पहुंच चुके थे। इसलिए सन्यास लेना उनका सही और विवेकपूर्ण निर्णय है। उन्होंने अपने पूर्ववर्ती क्रिकेटरों की तरह सन्यास लेने में ज्यादा वक्त नहीं लगाया। सन्यास लेकर वे संतों की शरण में पहुंचे। इसका आशय ये नहीं है कि विराट भगवा धारण करने वाले है। वैसे इस समय देश में हर कोई भगवा धारण कर सन्यासी बनना चाहता है सिवाय नेताओं के। जैसा कि मैंने पहले कहा कि नेता किसी भी दल का हो राजनीति से सन्यास नहीं लेता। उसे धकियाना पडता है।
मेरी सलाह है कि नेताओं को भी कामराज योजना पुनर्जीवित कर लेना चाहिए। आपको याद होगा कि अपने जमाने में किंग मेकर रहे तमिलनाडु के लोकप्रिय नेता के कामराज ने साठ के दशक की शुरुआत में महसूस किया कि कांग्रेस की पकड कमजोर होती जा रही है। उन्होंने सुझाया कि पार्टी के बडे नेता सरकार में अपने पदों से इस्तीफा दे दें और अपनी ऊर्जा कांग्रेस में नई जान फूंकने के लिए लगाएं। उनकी इस योजना के तहत उन्होंने खुद भी इस्तीफा दिया और लालबहादुर शास्त्री, जगजीवन राम, मोरारजी देसाई तथा एसके पाटिल जैसे नेताओं ने भी सरकारी पद त्याग दिए। यही योजना कामराज प्लान के नाम से विख्यात हुई। कहा जाता है कि कामराज प्लान की बदौलत वह केन्द्र की राजनीति में इतने मजबूत हो गए कि नेहरू के निधन के बाद शास्त्री और इन्दिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनवाने में उनकी भूमिका किंगमेकर की रही। वह तीन बार कांग्रेस अध्यक्ष भी रहे।
भाजपा में अघोषित रूप से के कामराज योजना 2014 में लागू की गई, लेकिन इसकी बदौलत सत्ता में आए लोग अब खुद सन्यासी नहीं बनना चाहते। लोकप्रियता में लगातार गिरावट के बावजूद सत्ता का मोह हमारे नेताओं को सन्यास नहीं लेने देता। सबसे ज्यादा उम्र तक राजनीति और सत्ता में रहने का कीर्तिमान कांग्रेस और वामपंथियों के नाम है। भाजपा तीसरे स्थान पर है।
अब समय है कि हमारे देश और दुनिया के तमाम नेता खिलाडियों से प्रेरणा लें और सही वक्त पर सन्यास लें अन्यथा उन्हें वैसे ही धकियाया जाएगा जैसे हमारे लालकृष्ण आडवाणी को या अमेरिका में जो वाईडन को धकियाया गया। सत्ता लोलुप नेताओं को समझना चाहिए कि आज भी समाज में सन्यासियों का बहुत सम्मान है, वो भी तब जब समाज में आसाराम और राम रहीम जैसे व्यभिचारी भी मौजूद हैंं।