‘दीपावली पर महिलाओं का दायित्व’ को लेकर परिचर्चा आयोजित

भिण्ड, 04 नवम्बर। दीपावली की पूर्व संध्या पर व्हाट्स एप पटल पर साहित्यकार डॉ. सुखदेव सिंह सेंगर के संयोजन में दीपावली पर महिलाओं का दायित्व विषय को लेकर परिचर्चा का आयोजन किया गया। जिसमें डॉ. पदमा शर्मा, डॉ. मीना श्रीवास्तव ‘पुष्पांशी’, डॉ. ज्योत्सना सिंह राजावत, डॉ. पुष्पलता ठाकुर, डॉ. सुधा कुशवाह, डॉ. दीप्ति गौड़ दीप, गीता पाण्डे अपराजिता, डॉ. मोनिका सक्सेना, डॉ. मंजूलता आर्य, डॉ. परवीन वर्मा ने अपने-अपने विचार रखे।
इस असर पर सर्वप्रथम डॉ. पद्मा शर्मा, प्राध्यापक हिन्दी शा. एमएलबी कॉलेज ग्वालियर कहती हैं कि दीपावली भारतीय सांस्कृतिक परम्परा का प्रमुख पर्व है। ऐसी स्थिति में महिलाओं का दीपावली पर मुख्य दायित्व सांस्कृतिक अच्छाइयों को बनाए रखना और हानिकारक अनुष्ठानों का त्याग या सावधानियों की चेतना जगाना है, ताकि यह पर्व प्रसन्नता और सुख-समृद्धि वाला बना रहे। डॉ. मीना श्रीवास्तव ‘पुष्पांशी’ अध्यक्ष इतिहास विभाग शा. केआरजी कॉलेज ग्वालियर का कहना है कि दीपावली पर्व का इतिहास रामकथा के साथ जुड़ा हुआ है। अत: हमें उसकी गरिमा अनुसार राम के चरित्र से प्रेरणा लेकर व्यवहृत करना चाहिए, ताकि सत्य और सहृदयता की जीत होती रहे और हम मेशा आनंद की अनुभूति करते रहें।
जीवाजी विवि ग्वालियर की संस्कृत की प्रो. डॉ. ज्योत्सना सिंह राजावत प्राचीन ग्रंथों में दीपावली का सन्दर्भ लेकर कहती हैं कि हमें अपनी सांस्कृतिक परम्परा बनाए रख कर कुरीतियों का त्याग करना है, जिससे तात्कालिक और आगामी जनहानियों और उसके दुष्प्रभावों से बचा जा सके। द्रोपदी की तरह जुए में सब कुछ हार जना वंश को कलंकित करना तो है ही अर्थ हीन हो जाना भी बहुत बड़ी लाचारी और असमर्थता भी है। दीपावली पर ऐसे कुकृत्यों से बचें एवं अपनों को भी बचाएं।


डॉ. पुष्पलता ठाकुर हि.वि. शा. एलबी कॉलेज ग्वालियर ने कहा कि दीपावली पर बारूद चलाने में अंग भंग कर लेना और भविष्य को लेकर लाचार हो जाने जैसी स्थिति से बचें। बारूद चलाएं, तो सावधानी बरतें। बच्चों के साथ बड़ी भी रहें। कोई आईटम न चले या बीच में अधचला बंद हो जाए, तो उसे चलाने का प्रयास न कर निष्क्रिय करने पानी डाल दें, या रेत-मिट्टी से ढक दें। उन्होंने ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने सभी को सचेत करती हैं। शा. केआरजी कॉलेज ग्वालियर की हिन्दी प्राध्यापक डॉ. सुधा कुशवाह आतिशबाजी से पर्यावरण प्रदूषित नहीं होने देना चाहतीं, वह कहती हैं कि इसके धुंए से पर्यावरण प्रदूषित और स्वास्थ्य हानि जो होती है, वह जीवन पर्यप्त भी प्रभावित करती है। अत: हमें संयमित और सजग रहना चाहिए। शिक्षाविद् साहित्यकार डॉ. दीप्ति गौड़ दीप स्वास्थ्य के प्रति सचेत करने कहती हैं कि आज-कल विशेषत: दीपावली पर्व पर मांग बढऩे से खाद्य वस्तुएं सस्ती मिलावटी होकर बेची जाती हैं। अत: विशेष रूप से खोये की मिठाईयां सीमित, शुद्ध और स्वच्द ताजी ही लाएं तथा अपनों को भी शुद्ध घर के पकवानों से ही स्वागत सत्कार करें। ताकि एक अनार- सौ बीमार की कहावत नहीं बने।
डॉ. मोनिका सक्सेना दीपावली पर्व लक्ष्मी, धन-वैभव, सुख-समृद्धि का पर्व मानती हैं और कहती हैं कि गृह लक्ष्मी औरत को घर पर इस पर्व की चर्चा कर बजट बनाना चाहिए, ताकि अनावश्यक व्यय न हो और हम स्वस्थ्य-सुखी-संपन्न रहें। इंटर कॉलेज की बाइस प्रिंसीपल गीता पाण्डे अपराजिता दीपावली का महत्व घर की साफ-सफाई के साथ मन की शुद्धि से भी जोड़ती हैं। उनकी चेतावनी है कि घर की धूल साफ करते मुंह को ढक कर करें, अन्यथा अन्दर जाने पर कई बीमारियां होने का डर रहता है। खांसी-दमा जैसी बीमारियों से बचनपे सावधानी जरूरी है। साहित्यकार डॉ. मंजूलता आर्य का कहना है कि हम अपने परिवार और पड़ोस में दीपावली पर्व के लाभ-हानि को परिचर्चा-संगोष्ठी कर महिलाओं को जागृत करें, ताकि अनावश्यक व्यय न हो और दीपावली पर घर का दिबाला ही न निकल जाए। अपनी आय और सामथ्र्य को ध्यान में सदैव रखें। डॉ. परवीन वर्मा हिन्दी प्राध्यापक शा. कन्या महाविद्यालय श्योपुर दीपावली पर्व पर मितव्यता बरतने की बात कहती हैं। तातिक हमें दूसरों से पैसा उधार (कर्ज) नहीं लेना पड़े। महिलाएं आय अनुसार व्यय करें। कपड़ों और गहनों की जिद नहीं करें, ताकि उनका सिर ऊंचा बना रहे। अंत में संयोजक डॉ. सुखदेव सिंह सेंगर सभी के प्रति आभार व्यक्त किया।