भडकने का संवैधानिक अधिकार आपको भी

– राकेश अचल


देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड को भडकता देख कभी-कभी मेरा मन भी भडकने का करता है, लेकिन सवाल ये है कि मैं आखिर भडकूं तो किसके ऊपर? संविधान ने भडकने का अधिकार सभी को दिया है, इसीलिए धनकड भी भडक रहे हैं और ममता बनर्जी भी। योगी आदित्यनाथ भी भडक रहे हैं और तमाम दूसरे लोग भी। अब आप सोचिए कि यदि संविधान ने आम आदमी को भडकने का अधिकार न दिया होता तो क्या धनकड साहब देश की सबसे बडी अदालत के किसी फैसले पर भडक सकते थे?
धनकड साहब उप राष्ट्रपति बनने से पहले बंगाल के राज्यपाल थे। उन्होंने भडकना तभी से सीखा। वे जब बंगाल में राज्यपाल थे तब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर दिन-रात भडका करते थे। उन्हें लगता था कि राज्यपाल का काम केवल और केवल राज्य की सरकार पर भडकना होता है। धनकड साहब हालांकि वकील हैं, उन्होंने कानून पढा है, किन्तु जब वे कुर्सी पर होते हैं तो कानून-वानून भूल जाते हैं। उप राज्यपाल के रूप में भी और राज्यसभा के सभापति के रूप में भी उन्हें भडकने के अलावा और कुछ याद नहीं रहता। वे विपक्ष के ऊपर लगातार बरसते हैं बेमौसम बरसात की तरह।
धनकड साहब आज-कल सुप्रीम कोर्ट पर भडक रहे हैं। संविधान पर भडक रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट की ओर से राष्ट्रपति और राज्यपालों को बिलों को मंजूरी देने की समय सीमा तय किए जाने पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड भडक गए है। उन्होंने कहा कि हम ऐसी स्थिति नहीं रख सकते, जहां अदालतें भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें। उन्होंने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 142 के तहत मिले कोर्ट को विशेष अधिकार लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ उपलब्ध न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है। धनकड साहब भूल जाते हैं कि यदि हमारे संविधान ने सुप्रीम कोर्ट को कुछ न्यूक्लियर मिसाइल न दिए होते तो ये देश कब का हिन्दू राष्ट्र बन गया होता।
कभी-कभी मुझे लगता है कि इस देश में संविधान को हमारे नेता एक कमसिन लडकी से ज्यादा नहीं समझते और जैसे ही उन्हें मौका मिलता है वे इसे छेड बैठते हैं। संविधान से छेडछाड इसके बनने से लेकर आज तक जारी है और जब भी किसी दल को अखण्ड या प्रचण्ड बहुमत मिलेगा संविधना के साथ छेडछाड की जाएगी। अब तक संविधान से छेडछाड की कोई 106 घटनाएं हो चुकी हैं। कानून की शब्दावली में संविधान से छेडछाड को संशोधन कहा जाता है। कांग्रेस ने चूंकि देश पर सबसे ज्यादा समय तक राज किया है इसलिए संविधान से छेडछाड की वारदातें सबसे ज्यादा कांग्रेस के समय में हुई हैं। भाजपा को अभी सत्ता में आए 11वां साल है, इसलिए उसने संविधान के साथ छेडछाड में अभी कांग्रेस का कीर्तिमान तोड नहीं पाया है, हालांकि भाजपा ने संविधान के साथ सबसे बडी छेडछाड अनुच्छेद 370 को हटाकर की है।
आप अन्यथा न लें तो हकीकत ये है कि संविधान कलिकाल में एक द्रोपदी है। ऐसी निरीह द्रोपदी का चीरहरण करने का दुस्साहस कोई भी कर लेता है। जरूरत सिर्फ हाथ में सत्ता और सत्ता में भी अखण्ड, प्रचण्ड बहुमत का होना है। देश का सुप्रीम कोर्ट जब तब संविधान की द्रोपदी का चीरहरण रोकने के लिए कृष्ण की भूमिका में आता है तो धनकड जैसी पुण्य आत्माएं सुप्रीम कोर्ट पर भडक उठतीं हैं, लेकिन वे उस समय शांत रहती हैं जब सुप्रीम कोर्ट सत्ता प्रतिष्ठान के मन माफिक फैसले करता है या निर्देश देता है।
जहां तक मेरा ज्ञान है उसके मुताबिक धनकड साहब को सुप्रीम कोर्ट पर भडकने का कोई नैतिक अधिकार है नहीं। वे जिस पद पर बैठे हैं उसकी मर्यादा है। उन्हें अपने पूर्ववर्ती उप राष्ट्रपतियों से इस मर्यादा का पाठ सीखना चाहिए, लेकिन वे ऐसा नहीं करेंगे। क्योंकि धनकड साहब अपने आपको भाजपा का देवतुल्य कार्यकर्ता जो मानते हैं (जबकि वे हैं नहीं)। धनकड साहब कभी आरएसएस की शाखा में प्रशिक्षण लेने नहीं गए। भाजपा में शामिल होने से पहले उन्होंने घाट-घाट का पानी पिया है, किन्तु आज वे भाजपा के सबसे निष्ठावान कार्यकर्ता हैं। कोर्ट हो या कोई और जैसे ही भाजपा के खिलाफ कोई टिप्पणी करता है सबसे पहले उदरशूल धनकड साहब के पेट में होता है। मुमकिन है कि धनकड साहब आज कल में ही सुप्रीम कोर्ट को नए वक्फ कानून पर दिए जाने वाले फैसले के लिए भी कोसने लगें।
सुप्रीम कोर्ट पर भडकने वाले धनकड साहब देश को बता रहे हैं कि भारत में राष्ट्रपति का पद बहुत ऊंचा है और राष्ट्रपति संविधान की रक्षा, संरक्षण एवं बचाव की शपथ लेते हैं, जबकि मंत्री, उपराष्ट्रपति, सांसदों और न्यायाधीशों सहित अन्य लोग संविधान का पालन करने की शपथ लेते हैं। हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें और वह भी किस आधार पर संविधान के तहत आपके पास एकमात्र अधिकार अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना है। धनकड साहब भूल जाते हैं कि राष्ट्रपति का पद सचमुच बहुत ऊंचा है किन्तु उसे सचमुच इतना छोटा कर दिया गया है, क्योंकि राष्ट्रपति अब देश के प्रधानमंत्री को केवल दही-मिश्री खिलाने के अलावा कोई काम नहीं करती है, संविधान की रक्षा, संरक्षण या बचाव नहीं। राष्ट्रपति ने अपनी भूमिका खुद ही बदल ली है।
बहरहाल मैं धनकड साहब के लिए प्रार्थना करता हूं कि ईश्वर उन्हें पल-पल होने वाले उदरशूल से मुक्ति दिलाए। धनकड साहब उदरशूल से पीडित अकेले व्यक्ति नहीं हैं। बहुत से लोग हैं उनकी तरह, लेकिन जिसे उदरशूल होना चाहिए वो कभी अपना मुंह नहीं खोलता। न मणिपुर पर, न बंगाल पर, न अमेरिका पर, न चीन पर। उसने बोलना छोड ही दिया है जैसे वो केवल अपने मन की करता है या फिर मन की बात करता है। इस प्रवृत्ति को देशज भाषा में मनमानी भी कहते हैं।