– राकेश अचल
ये अच्छी खबर है या बुरी ये कहना कठिन है, लेकिन एक बात साफ है कि बैशाखियों पर चलने वाले देश के सत्ता प्रतिष्ठान का दुस्साहस लगातार बढता जा रहा है। अब सत्ता प्रतिष्ठान का मकसद येन-केन लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और उनकी मां सोनिया गांधी को जेल भेजना है। मां-बेटे को जेल जाने से अब भगवान भी शायद ही बचा पाए, क्योंकि अब अदाबत अपने चरम पर है।
नेशनल हेराल्ड मामले में गांधी परिवार के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल होने के बाद अब गेंद अदालत के पाले में है। अदालत किस पर मेहरबान होती है और किस पर नहीं। हालांकि आरोप पत्र दाखिल होने के बाद सोनिया गांधी और राहुल गांधी की दोबारा गिरफ्तारी आसान नहीं है, क्योंकि दोनों पहले से जमानत पर हैं और अब जब तक कि अदालत कोई फैसला नहीं सुना देती तब तक दोबारा गिरफ्तारी नामुमकिन है। मुमकिन है कि सत्ता प्रतिष्ठान ने इस मामले में भी कोई कैलेंडर तय कर रखा हो कि कब फैसला आए और कब दोनों को जेल यात्रा पर भेजा जाए?
पूरे देश को पता है कि ईडी यानि प्रवर्तन निदेशालय इन दिनों सत्ता प्रतिष्ठान के जमूरे की तरह काम कर रहा है। नेशनल हेराल्ड केस में प्रवर्तन निदेशालय ने कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी समेत कई नेताओं के खिलाफ चार्जशीट में ईडी ने आरोपियों पर 988 करोड रुपए के मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगाया है। कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा के पति और व्यापारी रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ गुरुग्राम लैण्ड डील केस में बुधवार को दूसरी बार पूछताछ हो रही है। पिछले दो दिनों में ये कांग्रेस के खिलाफ केन्द्रीय जांच एजेंसियों की दूसरी बडी कार्रवाई है। सत्ता प्रतिष्ठान की इस कार्रवाई के खिलाफ कांग्रेस ने देशभर में प्रदर्शन किए हैं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि इनका कोई असर सरकार या अदालत पर पडने वाला है, क्योंकि सत्ता प्रतिष्ठान और प्रवर्तन निदेशालय के साथ ही अदालत का रुख साफ है।
मौजूदा सत्ता प्रतिष्ठान ने गांधी परिवार को नेस्तनाबूद करने के लिए पिछले एक दशक में अपने सभी घोडे खोल लिए हैं, किन्तु उसे अभी तक कामयाबी नहीं मिली। विपक्ष के नेता राहुल गांधी की लोकसभा से सदस्यता छीनी गई किन्तु सुप्रीम कोर्ट ने उसे बहाल कर दिया। राहुल से उनका सरकारी बंगला खाली करा लिया गया। राहुल न डरे और न झुके। उल्टे पिछले आम चुनाव में नई ऊर्जा के साथ अपनी बहन प्रियंका के साथ लोकसभा में वापस लौटे। राहुल ने पिछले दिनों हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव भी हारे, किन्तु हिम्मत नहीं हारी और वे कांग्रेस का अधिवेशन करने सत्ता प्रतिष्ठान के नाभि केन्द्र गुजरात में जा पहुंचे। सत्ता प्रतिष्ठान को ये सब नागवार गुजर रहा है। परिणाम स्वरूप सत्ता प्रतिष्ठान की और से गांधी परिवार पर आक्रमण और तेज हो गया है।
आने वाले दिनों में कौन जेल जाए और कौन न जाए, इससे हमारा कोई ताल्लुक नहीं हैं। हमारी चिंता तो सियासत में बढती अदावत को लेकर है। जिनके प्रारब्ध में जेल यात्रा होती है, वे जेल जाते ही हैं और गांधी परिवार तो सनातन जेल यात्री है, लेकिन सत्ता प्रतिष्ठान से जुडे नेताओं को जेल यात्रा का कोई खास अनुभव नहीं है। वे आपातकाल को छोड कभी जेल नहीं गए। जो दुर्भाग्य से जेल गए वे भी माफियां मांगकर जेल से बाहर आ गए। किसी ने जेल में रहकर अपनी जवानी बर्बाद नहीं की। किसी ने जेल में रहकर न स्वाध्याय किया और न कोई किताब लिखी। बहरहाल मामला राहुल, सोनिया और रॉबर्ट वाड्रा का है। इनकी कुण्डली में जेल यात्रा का योग होगा तो कोई ताकत रोक नहीं सकती और नहीं तो सत्ता प्रतिष्ठान कितनी भी कोशिश कर ले उसे कामयाबी नहीं मिलने वाली।
देश की राजनीति में वर्ष 2014 के बाद जो तब्दीली आई है उसमें सबसे प्रमुख बात ये है कि अपने विरोधियों को किसी न किसी तरह या तो झुका लिया जाए और कोई न झुके तो उसे तोड दिया जाए। सत्ता प्रतिष्ठान के आगे झुकने वालों और टूटने वालों की फेहरिश्त बहुत लम्बी है। टीडीपी और जेडीयू जैसे दल तो झुककर सत्ता प्रतिष्ठान की बैशाखी ही बन चुके हैं। बहन मायावती, भाई अरविन्द केजरीवाल हों या नवीन पटनायक तोडे जा चुके हैं, लेकिन बहुत से ऐसे हैं जो सत्ता प्रतिष्ठान से लगातार जूझ रहे हैं, उसे चुनौती दे रहे हैं। गांधी परिवार इस काम में सबसे आगे है। उनके पीछे समाजवादी अखिलेश यादव हैं, राजद के तेजस्वी यादव हैं। बंगाल की ममता बनर्जी हैं, झारखण्ड के हेमंत सोरेन हैं। दक्षिण के स्टालिन हैं। सत्ता प्रतिष्ठान की तमाम आसमानी-सुल्तानी ताकतें इन तमाम नेताओं को न तोड पाई हैं और न झुका पाई हैं। बावजूद इसके सत्ता प्रतिष्ठान की कोशिशें जारी हैं, हरि अनंत, हरि कथा अनंता की तरह।
कितनी अच्छी बात है कि हमारा देश अमेरिका के टैरिफ वॉर यानी प्रहार से उतना आक्रांत नहीं है जितना कि गांधी परिवार से आक्रांत है। ममता, अखिलेश, तेजस्वी और सोरेन से आतंकित है। क्योंकि ये सब देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने में सबसे बडी बाधा हैं। ये सब मिलकर धर्मनिरपेक्षता का राग अलापते रहते हैं। ऐसे में इन्हें कैसे बर्दास्त किया जा सकता है? सत्ता प्रतिष्ठान के ओझाओं ने अभी बिच्छुओं को पकडने का मंत्र सीखा है, लेकिन हाथ सांपों के बिल में डाल रहे हैं। आप हंस रहे होंगे कि मैं सत्ता प्रतिष्ठान के विरोधियों को बिच्छू और सांप कह रहा हूं, लेकिन ये एक कहावत है। मैं न सत्ता प्रतिष्ठान के नेताओं को सांप-बिच्छू कहता हूं और न किसी दूसरे को, हालांकि तमाम ऐसे हैं जो आकण्ठ जहर से भरे हुए हैं।
अब इस देश की दशा और दिशा देश की अदालतों को तय करना है। वे जो फैसला देंगी उसी से इस देश की भावी राजनीति की दशा और दिशा तय होगी। फिर चाहे मामला वक्फ बोर्ड के नए कानून का हो या गांधी परिवार के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का। देश की अदालतें अभी संयोग से पूरी तरह भगवा रंग में नहीं रंगी हैं। आज भी अदालतों में तर्क की, दलील की, बहस की गुंजाइश बांकी है। ये गुंजाइशें ही एक उम्मीद बांधती हैं, अन्यथा अब लोकशाही को तानाशाही में तब्दील करने की दिशा में देश बहुत आगे बढ चुका है। लेकिन हम तो उनमें से हैं जो ये मानते हैं कि ‘को कहि तर्क बढावहि साखा, होइए वही जो राम रचि रखा।’ रामजी ने क्या रच कर रखा है राम जी ही जानें। हम तो इतना जानते हैं कि हमारा सत्ता प्रतिष्ठान परम दुस्साहसी है। वो अपने विरोधियों को नेस्तनाबूद करने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकता है। यानि सत्ता में बने रहने के लिए हम कुछ भी करेगा।