– राकेश अचल
दुनिया में सोना और चांदी हिरणी की तरह कुलांचें भर रहा है। कुलांचे इसलिए भर रहा है क्योंकि दुनिया का वातावरण कुलांचें भरने के अनुरूप है। यदि सोना और चांदी जैसी धातुएं कुलांचें भरती हैं तो समझ जाइये कि विश्वव्यापी मंदी आपके घर के बाहर दस्तक दे रही है। जो समझदार हैं वे इस दस्तक को पहचानते हैं, वे संकट काल के लिए सोना और चांदी जैसी धातुएं खरीदकर रख लेते हैं। संकट काल में एक सोना और चांदी ही है जो आपकी मदद कर सकता है।
आठवे दशक के आरंभ में एक फिल्म आई थी ‘मेरा गांव-मेरा देश’। इसी फिल्म का एक गीत था-
सोना ले जा रे चांदी ले जा रे, ओ पैसा ले जा रे।
ओ दिल कैसे दे दू मैं जोगी कि बडी बदनामी होगी।।
अब दुनिया में योगी की बदनामी तो जो होना थी, वो हो ही चुकी है। जोगी राज में पहली बार होली पर मस्जिदों को कपडे से ढांका गया। लेकिन बात सोने-चांदी की हो रही है। इस समय सोना और चांदी के भावों में बढोतरी हो रही है, इस कारण दोनों के भाव एक बार फिर अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गए हैं। विशेषज्ञों के अनुसार मार्केट में दोनों कीमती धातुओं की मांग पहले के मुकाबले दो गुना हो गई है।
महंगी धातुओं के दाम तभी बढते हैं जब दुनिया में मंदी की आहटें सुनाई देने लगती हैं। जाहिर है कि इस बार भी सोना-चांदी यही संकेत दे रहा है। दुनिया ने 20वीं सदी के आरंभ से लेकर अब तक अनेक अवसरों पर विश्वव्यापी मंदी का सामना किया है, 1928 से 1934 की मंदी हो या 1982, 1991 और 2008 की विश्वव्यापी मंदी ने दुनिया की कमर तोड दी थी और इससे उबरने में वर्षों लग जाते हैं। मंदी के दौर में वे देश और वे लोग ही टिक पाए जिनके पास सोना और चांदी थी।
दुनिया में जब-जब मंदी आती है तब-तब फांसीवाद बढता है, दुनिया युद्ध की आग में झुलसने लगती है। इस समय दुनिया में अनेक देशों में युद्ध चल रहे हैं। रूस-यूक्रेन से लड रहा है। इसराइल-फिलिस्तीन और लेबनान से लड रहे हैं। अमेरिका हो या रूस या भारत या चीन सभी देशों में फांसीवाद और पूंजीवाद बढता जा रहा है। मंदी आती है तो अपने पीछे बर्बादी लेकर आती है। औद्योगिक विकास रुक जाता है, बेरोजगारी बढती है। कृषि उत्पादन घटता है। बैंक दीवालिया होने लगते हैं। हमारा इतिहास बताता है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान दुनिया में करोडों लोगों की नौकरी चलाई गई था। मंदी अपने साथ शस्त्रों की होड लेकर आती है।
भारतीय परिवार हमेशा से संस्कृति से बंधे रहे हैं और चीनी परिवारों का भी कुछ ऐसा ही हाल रहा है। और सबसे बडी वजह यही है कि ये दोनों देश सोना खपत करने वाले देशों में अक्सर अव्वल रहते हैं। एक बार फिर से चीन और भारत सोना खपत करने वाले देशों में टॉप-2 स्थान में रहे हैं। आपको हर घर में तोला-दो तोला सोना तो आसानी से मिल जाएगा। चीन में दो साल पहले 630 टन सोना खप गया, जबकि इस मामले में भारत दूसरे स्थान पर रहा। भारत में 575 टन तक सोना खप गया था।
सोने की खपत के मामले में दुनिया पर दादागिरी करने वाले अमेरिका का नंबर तीसरा है। स्वर्ण के प्रति हमारा आकर्षण सनातनी है। त्रेता में रामचंद्र के बनवास के समय भी सीता जी ने जिस हिरण की मांग की थी वो भी सोने का ही था। आज भी हर विवाह में सोना-चांदी का आभूषण अनिवार्य है। सगाई भी सोने कि अंगूठी पहनकर होती है। सोना शक्ति का प्रतीक है। हितोपदेश की कथाओं में कहा गया है कि यदि पोटली में रखकर सोना टांग दिया जाए तो चूहा बार-बर छलांग लगा सकता है। इसलिए मैं कहता हूं कि दुनिया मंदी के गर्त में जाती दिखाई दे रही है। ऐसे में आप सोना-चांदी खरीदने का मौका हाथ से न जाने दें।
1980 में जब मेरी शादी हुई थी तब सोने का भाव शायद 1300 रुपया प्रति 10 ग्राम था और जब मेरी बेटी की शादी 2005 में हुई तब सोने का भाव छह हजार रुपए प्रति 10 ग्राम के आस-पास था। आज यही सोना 90 हजार रुपए तोला (10 ग्राम) होने को आतुर है। यानी दुनिया में पिछले सौ साल में राजनीती में, समाज में, चरित्र में गिरावट आई, लेकिन सोना और चांदी लगातार ऊपर की ओर उठते रहे। तो जाइये! जितना सोना-चांदी खरीद सकते हैं, जाकर खरीद लीजिए, क्योंकि कोई भी सरकार मंदी के दौर में आपकी मदद नहीं कर सकती।