प्रहलाद पटेल सठियाये हैं या बौरा गए हैं?

– राकेश अचल


एक लोक कहावत हैं कि ‘साठा, सो पाठा’ लेकिन इस कहावत पर अब मुझे यकीन नहीं रहा, क्योंकि मैंने चार साल पहले साठा हुए भाजपा के एक वरिष्ठ नेता और मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल को बौराते हुए देखा हैं। वे भाजपा के पहले ऐसे निर्मल हृदय नेता हैं जिन्होंने सार्वजनिक रूप से जनता को भिखमंगा कहा है। उनके इस कथन के लिए उनका सम्मान किया जाए या निंदा या सामाजिक बहिष्कार ये अभी तय नहीं हुआ। पटेल अपने इस उदघोष से सुर्खियों में जरूर आ गए हैं।
प्रहलाद पटेल हम उम्र हैं। उन्हें दूर रहकर भी बाखूबी जानता हूं, मेरे मन में उनके प्रति सम्मान भी बहुत था। ईश्वर ने उन्हें अच्छी कद-काठी भी दी थी। उनकी रसना पर सरस्वती भी विराजती थी, लेकिन अब लगता है कि मेरी धारणा गलत थी। वे दूसरे शाखामृगों की भांति ही कूप मंडूक और अक्ल से पैदल हैं। उन्हें जनता-जानार्दन का सम्मान करना संघ की शाखाओं में सिखाया ही नहीं गया। पता नहीं कैसे पटेल को ये आत्मानुभूति हुई कि वे ‘दाता’ और जनता ‘भिखारी’ है। तीर, कमान से निकले और बोल, जबान से निकलने के बाद वापस नहीं आता, इसलिए मुमकिन है कि प्रहलाद चौतरफा हो रही लानत-मलानत के बाद कहें कि उनके बयान को तोड-मरोडकर पेश किया गया है, उनका मकसद जनता का अपमान करना नहीं था।
पटेल कोई नौसीखिया नहीं हैं, पांच बार के संसद हैं, केन्द्रीय मंत्री भी रहे हैं। लेकिन पार्टी ने उन्हें पहली बार विधयनसभा चुनाव क्या लडवा दिया, वे बौरा गए और सुठालिया की सभा में अपने ‘मन की बात’ कह बैठे। पटेल दरअसल जनता द्वारा मंत्रियों को ‘टुकना’ भर ज्ञापन देने से आजिज आ गए हैं। उन्होंने उत्तेजना में कहा कि जनता को भीख मांगने की आदत से बाज आना चाहिए। जनता जनार्दन है, लेकिन कमजोर है। बीमार है, इसलिए पटेल से प्रतिप्रश्न नहीं कर सकती। नहीं पूछ सकती कि देश की जनता को पिछले एक दशक में भिखारी बनाया किसने? जनता ये सवाल भी नहीं कर सकती कि समस्याओं के समाधान के लिए ज्ञापन देना भीख मांगना नहीं, बल्कि जन प्रतिनिधियों को उनकी जिम्मेदारी के प्रति आगाह करना भी है।
भारत में कहने के लिए जनता जनार्दन है, लेकिन हकीकत ये है कि हमारी सरकार ने देश की 80 करोड जनता को पहले ही 2028 तक के लिए भिखमंगा बना दिया है और अब पटेल जैसे जन प्रतिनिधियों को लगने लगा है कि जनता उनसे भीख मांगने आती है, जबकि असली और मुकम्मल भिखारी तो पटेल जैसे नेता ही हैं, जो हर पांच साल में अपनी झोली फैलाते हुए जनता-जनार्दन से वोटों की भीख मांगने आते हैं। जात-पांत देखे बिना जनता के पैरों में गिर जाते हैं, लेकिन जनता ने कभी नहीं कहा कि नेताओं को भीख मांगना छोड देना चाहिए?
प्रहलाद भाजपा के युवा तुर्क लगते थे, लेकिन हैं नहीं। वे 1999 से चुनाव लडते आ रहे हैं। बुंदेलखण्डी हैं, इसलिए मुझे प्रिय हैं। उन्हें हमारे शहर के अटल बिहारी वाजपेयी ने कोयला मंत्री भी बनाया था लेकिन वे अपने व्यक्तित्व से चिरकुटपन और सामंती मानसिकता को दूर नहीं कर पाए। तीन बच्चों के पिता प्रहलाद पटेल करोडपति भी हैं, इसलिए उन्हें जनता अब भिखमंगी लगने लगी हैं। पटेल 1982 से युवा मोर्चा के जरिये राजनीति करते हुए जहां तक पहुंचे हैं, वहां तक पार्टी के बहुत कम लोग पहुंच पाते हैं, यहां तक कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे अनूप मिश्रा तक को हाशिये पर खडा कर दिया गया है, लेकिन प्रहलाद पटेल जितने अटल जी के समय में महत्वपूर्ण थे, उतने ही मोदी जी के समय में भी महत्वपूर्ण हैं। लेकिन मुझे लगता है कि अब पार्टी को उन्हें घर बैठा देना चाहिए, क्योंकि उन्होंने जनता को भिखमंगा तब कहा है जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी पार्टी के जन प्रतिनिधियों को चार दिन पहले ही भोपाल में जमीन पर रहने की सीख देकर गए थे। प्रहलाद पटेल ने भी मोदीजी की क्लास अटेंड की थी लेकिन सबक कुछ नहीं सीखा, रहे पटेल के पटेल।
आपको बता दें कि पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के साथ भाजपा से बगावत कर चुके प्रहलाद सिंह पटेल को भाजपा एक बार माफ कर चुकी है, लेकिन इस बार सार्वजनिक रूप से जनता जनार्दन के अपमान के बाद भी उन्हें पार्टी महत्व देती रहेगी इसमें मुझे संदेह है। प्रहलाद पटेल सच्चे सनातनी हिन्दू हैं। नर्मदा परिक्रमा कर उन्होंने पूर्व मुख्य्मंत्री दिग्विजय सिंह की नकल भी की। लेकिन मुझे लगता है कि प्रदेश का मुख्यमंत्री न बन पाने की कसक प्रहलाद के मन में भी कहीं रह गई और शायद यही कुंठा अब उनके बयानों से झलकने लगी है। कोई संघमित्र प्रहलाद को समझाए कि जनता जनार्दन कभी भिखमंगी नहीं होती, असली भिखमंगे तो नेता होते हैं। जनता पर फ्रीविज के जरिए सरकारी खजाना खाली करने की दोषी तो सरकार है।
यदि जनता टोकना भर कर मंत्रियों को ज्ञापन देती है तो इसका मतलब है कि प्रदेश में डॉ. मोहन यादव की सरकार ढंग से काम नहीं कर रही। तो क्या ये मान लिया जाए कि पटेल साहब अपने ही मुख्यमंत्री की सरकार को बेपर्दा करना चाहते हैं? या उनका निशाना सीधे मुख्यमंत्री जी खुद हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की किस्मत से जलने वाले पटेल साहब अकेले नेता नहीं है। विधानसभा अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर हों या कैलाश विजयवर्गीय या डॉ. नरोत्तम मिश्रा या और कोई भी यदि मोहन यादव से जलता हैं तो इसका अर्थ ये नहीं है कि वो बौरा जाएं और आंय-बांय बोलने लगें। पटेल को समजझना चाहिए कि ये जनता जनार्दन ही है जो उन्हें हर बार चुनाव जिताती है। इसलिए जनता भिखारी नहीं बल्कि असली दाता है। माफी मांगिए जनता से पटेल साहब! कांग्रेस, पटेल साहब के बयान की निंदा कर खामोश हो गई है, उसमें इतनी कूबत नहीं कि वो प्रहलाद सिंह पटेल को माफी मांगने के लिए मजबूर कर सके।