ग्वालियर, 04 फरवरी। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने जेसी मिल मजदूरों की देनदारी चुकाने के लिये दीपावली तक का समय दिया गया था। देनदारी चुकाने के लिए सरकार ने कवायद भी शुरू कर दी है। लेकिन बैंकों की देनदारी करोडों में निकली है। भारतीय स्टेट बैंक का बकाया 2 हजार 390.61 करोड रुपए का है। मिल की संपत्तियां बैंक के पास बंधक रखी है। बैक की देनदारियों का निर्धारित करने के लिए संपत्तियों का फिर से सर्वे किया जा रहा है। जिसकी रिपोर्ट शासन को भेजी जाएगी। इसके अलावा 6 फरवरी को भोपाल में देनदारी के प्रस्ताव पर बैठक भी की है। इस बैठक में देनदारी के प्रस्ताव पर चर्चा की जाएगी। हाईकोर्ट में मार्च में जेसी मिल की याचिका पर सुनवाई होगी। इस सुनवाई में देनदारी के प्रस्ताव के संबंध में अवगत कराया जाएगा।
दरअसल, मप्र सरकार की पहल पर इंदौर के हुकुमचंद मिल के श्रमिकों को देनदारी वापिस मिल चुकी है। इस तर्ज पर जेसी मिल के श्रमिकों को भी देनदारी देने का प्रस्ताव तैयार किया है। यह प्रस्ताव भोपाल भेजा जा चुका है। लेकिन संपत्ति बेचने का अधिकार शासन के पास नहीं है। इस वजह से फण्ड एकत्रित नहीं हो पा रहा है। जेसी मिल के ऊपर 131 करोड की देनदारी बताई थी। जिसमें 8 हजार मजदूर और 8 बैंकों का बकाया बताया था। इतना पैसा मिल की संपत्ति को नीलाम करके मिर सकता था। लेकिन एसबीआई का 2 हजार 390.61 करोड रुपए निकला है। यह बडी रकम है, जिसे चुकाना संभव नहीं है। लश्कर एसडीएम नरेन्द्र बाबू यादव ने बताया कि संपत्ति का फिर से आंकलन किया जा रहा है।
जेसी मिल की जमीन से जुटाना है फण्ड
जेसी मिल के पास स्वयं के स्वत्व की 150 बीघा जमीन है। इसमें 100 बीघा जमीन खाली है और 50 बीघा जमीन पर अतिक्रमण है। जेसी मिल की जमीन पर मजदूरों का भी कब्जा है। जेसी मिल के पास सरकार की भी जमीन थी। यह जमीन शासन को वापिस मिल गयी है। शासन ने इस जमीन पर मिल श्रमिकों को 500 पट्टे दे दिए हैं। जेसी मिल की जमीन पर क्वार्टर बने हैं। इन क्वार्टरों में अभी मजदूर निवास कर रहे है। जमीन के संबंध में फैसला लेने का अधिकार लिक्विडेटर के पास है। हाईकोर्ट में 1987 से कंपनी पिटीशन लंबित है। मिल प्रबंधन और मजदूरों के खिलाफ पिटीशन लंबित है।