– राकेश अचल
देश पर शासन करने वाली भाजपा और उसके सहयोगी दल सबको साथ लेकर सबका विकास करना ही नहीं चाहते, इसका सबसे बडा प्रमाण है यूसीसी का उत्तराखण्ड में जबरन लागू किया जाना। भाजपा ने उत्तराखण्ड को यूसीसी की प्रयोगशाला बना दिया है। केन्द्र यदि चाहता तो इस नए कानून को उत्तर प्रदेश समेत देश के उन तमाम राज्यों में एक साथ लागू करा सकता था, जहां भाजपा की सरकारें है। लेकिन ऐसा नहीं किया गया, क्योंकि केन्द्र उत्तराखण्ड में इस कानून के नतीजे देखना चाहती है। इस कानून को अदालती परीक्षण से भी गुजरना चाहती है।
यूसीसी यानि समान नागरिक संहिता लागू करना भाजपा और संघ का बहुत पुराना सपना है। भाजपा के जरिये संघ अपने पुराने सपनों में खरामा-खरामा रंग भरने में जुटा है। छह साल पहले संघ ने भाजपा के जरिये जम्मू-कश्मीर से संविधान की धारा 370 हटाई और अब बारी समान नागरिक संहिता की है। भाजपा देश की विविधता को एक ही रंग में रंगना चाहती है और वो रंग है भगवा रंग। भाजपा को देश में एक भाषा, एक भूषा, एक खाना, एक चुनाव यानि सब कुछ एक चाहिए। अगर कुछ एक नहीं चाहिए तो वो है मुसलमानों की मौजूदगी।
मुझे भाजपा के इस अभियान से कोई आपत्ति नहीं है। भाजपा इस समय भारत-भाग्य विधाता है। वो जो चाहे सो करे, कर सकती है। सत्ता उसके हाथ में है। लेकिन भाजपा भूल रही है कि पूरा देश उसके हाथ में नहीं है। केन्द्र को यानि भाजपा को एक सम्मान नागरिक संहिता लागू करने से पहले ये जान लेना चाहिए कि देश में अलग-अलग क्षेत्रों की, जातियों की परम्पराएं, रीति-रिवाज एक नहीं है। उनमें दखल देना अक्षम्य अपराध है, लेकिन भाजपा का चरित्र ही एक-दूसरे के मजहब में मदाखलत करने का है। इसके लिए भाजपा रोज नए रास्ते तलाश करती रहती है। पिछले दस साल से भाजपा यही सब तो कर रही है। इस मामले में भाजपा के अनुसंधान निकाय का लोहा मानना पडेगा।
देश में एक सामान नागरिक संहिता और एक चुनाव, एक भाषा लागू करने से पहले देश की तमाम आबादी का सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक स्तर भी एक समान करना होगा। भाजपा भूल जाती है कि अभी देश में समानता से ज्यादा असमानता यानि कि गैर बराबरी है। देश में आधी आबादी के पास न दो जून की रोटी है और न सिर पर छत या छप्पर, तन पर कपडा भी नहीं है। हर हाथ को काम भी नहीं है। 80 करोड जनता तो सरकार के पांच किलो अन्न पर जीवित है, ऐसे में यूसीसी कैसे लागू की जा सकती है? लेकिन इसका विस्मिल्लाह उत्तराखण्ड से हो गया है, क्योंकि इस सूबे में यूसीसी से प्रभावित होने वालों की तादाद कमोवेश कम है और यहां इसका ज्यादा विरोध भी नहीं हो पाएगा, होगा भी तो उससे निबट लिया जाएगा।
भाजपा की सरकार के दुस्साहस का लोहा मैं शुरू से मानता आया हूं। लेकिन भाजपा में अभी इतना साहस नहीं है कि वो यूसीसी को उत्तर प्रदेश या केरल जैसे राज्यों में लागू कर दिखाए। इसके लिए भाजपा को एक-दो जन्म और लेना पडेंगे। भाजपा चूंकि संघ का उत्पाद है, इसलिए उसे एक-दो जन्म लेने में भी कोई संकोच नहीं होगा। भाजपा को पुन: मूषक होने की आदत है। आपको याद होगा कि इसी भाजपा की अखण्ड, प्रचण्ड बहुमत वाली सरकार ने कुछ समय पहले किसनों के लिए तीन विवादास्पद कानून बनाए थे, लेकिन जब उनका देशव्यापी विरोध हुआ तब ये तीनों कानून वापस भी लेना पडे, ये बात और है कि भाजपा की सरकार ने कानून वापस लेने से पहले देश के 700 किसानों की बलि ले ली। यूसीसी भी न जाने कितने बलिदान लेकर मानेगी।
केन्द्र सरकार की कोशिश है कि देश में शांति न रहे। कुछ न कुछ ऐसा होता रहे जिससे लोग चैन से न सो सकें। अब केन्द्र उत्तराखण्ड में यूसीसी लागू करने के बाद वक्फ बोर्ड में गैर मुस्लिमों की घुसपैठ के साथ ही उसके मुकाबिल सनातन बोर्ड के गठन की रूपरेखा पर अमल करने वाले हैं। इस साल का महाकुम्भ इसका प्रयोग स्थल है। धर्म के ठेकेदार इस समय देश की सत्ता को संगम स्नान करने में लगे हुए हैं। सत्ता के एजेंडे पर काम करने में इन अखाडा प्रमुखों को कोई संकोच नहीं है। बल्कि देश के गृहमंत्री को गंगा स्नान करने में इन्हें अपना मोक्ष नजर आ रहा है। यानि सनातन धर्म भी अब सत्ता के समाने घुटनों के बल बैठ चुका है। गंगा ने शायद कभी हिन्दू-मुसलमान नहीं किया। उसमें सभी को नहाने की छूट दी, वो सभी के पाप धो देती है, फिर चाहे वो चोर हो, जेबकट हो, हत्यारा हो, तडीपार हो। गंगा कभी ये नहीं कहती कि पहले हिन्दू बनकर आओ तभी मुझमें डुबकी लगाओ। लेकिन गंगा पुत्रों ने यही कोशिश की है कि गंगा को विधर्मी स्पर्श न कर लें। राजनीती करने वाले और धर्म के नाम पर दुकाने चलने वाले गंगा जैसी उदारता आखिर कहां से ला सकते हैं।
मुझे हैरानी होती है देश कि सबसे बडी अदालत के मौन पर, क्योंकि देश की सबसे बडी अदालत ही अतीत में यूसीसी को ‘डैड लैटर’ कह चुकी है, लेकिन जब इसी कानून को उत्तराखण्ड में लागू किया जाता है तो सबसे बडी अदलात मौन साध लेती है। अब कोई जाये, इस कानून को चुनौती दे, तब शायद सबसे बडी अदालत इस कानून के संविधान विरोधी चरित्र की समीक्षा करे। संविधान ने देश में 18 साल के बच्चों को मताधिकार दे दिया, लेकिन यूसीसी इस उम्र के बच्चों को अपने मन से अपने जीवनसाथी को चुनने का अधिकार नहीं देता। ये कानून कहता है कि यदि किसी बालिग को किसी के साथ ‘लिव इन रिलेशन’ में रहना है तो पहले मम्मी-पापा से इजाजत लेकर आओ। क्या कमाल का प्रावधान है भाई।
बहरहाल उत्तराखण्ड की जनता को यूसीसी मुबारक हो। उत्तराखण्ड देवभूमि है। देवता हिन्दू-मुसलमान करते हैं या नहीं, ये मैं नहीं जानता। लेकिन मुझे इतना पता है कि ये कानून देश की समरसता को प्रभावित करेगा, इसलिए भाजपा को आग का ये खेल खेलने से पहले एक बार फिर इस कानून पर पुनर्विचार करना चाहिए। हम केवल सुझाव दे सकते हैं, सरकार का हाथ नहीं पकड सकते। ये काम तो जनता का है। जनता अपना काम करे या न करे, ये जनता की मर्जी है।