माघ में रवि का मकरगति होना महत्वपूर्ण

@ राकेश अचल


मैं जन्मना हिन्दू हूं इसलिए संस्कारों में ऐसा बहुत कुछ है जो दूसरों से अलग है। बचपन से रामचरित मानस पढ़ने का चस्का है। पहले पिताजी जबरन पढ़ते थे, फिर स्वेच्छा से पढ़ी और अब तो जैसे रच-बस गई है ये किताब। इसी किताब में पढ़ा था कि
माघ मकरगत रबि जब होई। तीरथपतिहिं आव सब कोई॥
देव दनुज किंनर नर श्रेनीं। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनीं॥
इसका मतलब यानि भावार्थ ये है कि माघ में जब सूर्य मकर राशि पर जाते हैं तब सब लोग तीर्थराज प्रयाग को आते हैं। देवता, दैत्य, किन्नर और मनुष्यों के समूह सब आदरपूर्वक त्रिवेणी में स्नान करते हैं। दुनिया में शायद ही ऐसा कहीं होता हो। हो भी कैसे सकता है, वहां माघ का महीना ही कहां होता है? गोस्वामी तुलसीदास के लिखे को मैं पत्थर की लकीर नहीं मानता, किन्तु मेरी धारणा है कि उन्होंने भी जो लिखा वो या तो श्रुति परम्परा से जानकर लिखा या दूसरे ग्रंथों का पठन-पाठन करके लिखा होगा। उन्होंने खुद त्रिवेणी में देवता, दैत्य, किन्नर और आम आदमी एक साथ नहाते नहीं देखे होंगे।
हमारा सौभाग्य है कि हम ये सब देख पा रहे हैं। पहले त्रिवेणी के घाटों पर जो कुछ नहीं देखा गया होगा, वो सब आज देखा जा सकता है। आज देवता हों, दैत्य हों, किन्नर या मनुष्य हों, सभी के ऊपर हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा की जा रही है। पहले हेलीकॉप्टर था ही नहीं, तो पुष्प वर्षा करता कौन? पहले कुम्भ का इंतजाम करने वाले योगी आदित्यनाथ भी तो नहीं थे। आज से पूरे महीने त्रिवेणी में करोड़ों दैत्य, देवता, किन्नर और मनुष्य नाना-रूप में आपको कुम्भाटन करते दिखाई देंगे। अब तो कुम्भ में आप केवल देवता-दैत्य या किन्नर ही नहीं विदेशी भी देख सकते हैं। एप्पल के सह संस्थापक स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेंस पॉवेल जॉब्स तक इलाहबाद माफ़ कीजिए प्रयागराज पहुंची हैं।
माघ के महीने में जब सूर्य भगवान मकरगति होते हैं तो देश में अकेला कुम्भ ही नहीं होता, बल्कि लोहड़ी भी होती है, बिहू भी होता है, पोंगल भी होता है। सब अपनी-अपनी सुविधा से काम करते हैं, लेकिन त्रिवणी आने वालों पर पुष्प वर्षा केवल उत्तर प्रदेश की सरकार करती है। धर्मभीरू सरकार जो है। सरकार का संविधान से कुछ लेना-देना नहीं है, हालांकि सरकार को पता है कि सरकार का कोई धर्म नहीं होता और यदि होता है तो सबका साथ, सबका विकास होता है। देश की कोई भी सरकार कांवड़ियों और संगम स्नान करने वालों के अलावा किसी दूसरे धर्म के तीर्थयात्री पर हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा नहीं करती।
दक्षिण में, पूरब में, पश्चिम में कहीं ऐसा नहीं होता। मक्का में नहीं होता, मदीना में नहीं होता, वेटिकन सिटी में नहीं होती पुष्प वृष्टि। लेकिन हिन्दुस्तान में होती है, क्योंकि हमारी सिंगल और डबल इंजिन की सरकार मानती है कि पुष्प वर्षा पर पहला अधिकार हिन्दुओं का है। मुझे भी हैलीपॉप्टर से बरसते पुष्प अच्छे लगते हैं। आपको भी लगते ही होंगे, लेकिन तकलीफ तब होती है जब इसका बोझ सरकारी खजाने पर पड़ता है। अमेरिका में तो राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह पर भी खर्चा चंदे से जुटाया जाता है। 20 जनवरी को होने वाले डोनाल्ड ट्रम्प के शपथ ग्रहण समारोह के लिए वहां के धनकुबेरों ने 170 मिलियन डॉलर का चन्दा दिया है। हमारे यहां हमारी उत्तर प्रदेश सरकार को कुम्भ के आयोजन के लिए किसी धनकुबेर ने फूटी कौंड़ी भी दी क्या?
आजादी से पहले और आजादी का बाद भी माघ के महीने में भगवान भास्कर मकरगति को प्राप्त होते थे, लेकिन किसी भी सरकार ने इस मौके को धार्मिक पर्यटन में नहीं बदला। मुग़लों ने, अंग्रेजों ने भी ये कोशिश नहीं की। कांग्रेसियों को तो धर्म का धंधा करना आता ही नहीं है, वे तो केवल तुष्टिकरण जानते हैं, वो भी ढंग से कर नहीं पाती। आपको याद आता है कि कभी कांग्रेस सरकार ने हाजियों पर हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा कराई हो। आपको याद आता है कि क्या किसी अकाली सरकार ने किसी शोभायात्रा पार हैलीकॉप्टर से फूल बरसाए हों? बेशक हेलीकॉप्टर है और हमारे पास फूल हैं तो हमें हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा करना चाहिए, लेकिन तब जब इस देश में अन्नादाता कहे जाने वाले किसानों पर भी पुष्पवर्षा कराई जाए। उनके ऊपर तो लाठी वर्षा होती है। आंसू गैस के गोले छोड़े जाते हैं। उनके रस्ते में तो कीलें बिछाई जाती हैं। वे आज भी अनशनरत हैं।
दुनिया हमारे सामने इस मामले में प्रतिस्पर्द्धा में खड़ी हो नहीं सकती। कुम्भ में जिस तरीके से बाबाओं के रंग-बिरंगे अखाड़े आ रहे हैं, साधू, सन्यासी आ रहे हैं, उन्हें देखकर हम कह सकते हैं कि हम हर मामले में सनातनी हैं। दुनिया चाहे चांद पर पहुंच जाएं, चाहे सूरज को ही बर्फ का गोला बना लें, किन्तु हमारे नागा, हमारे मंडलेश्वर जैसे थे वैसे ही रहेंगे। जिसने भगवान शिव की बरात न देखी हो वो कुम्भ में आ जाए, यहां नंग-धड़ंग, शिव के बारातियों कि तरह ‘कोउ मुखहीन, विपुल मुख कोई’ का साक्षात् हो जाएगा। यहां आपको प्रमाण मिल जाएगा कि हमें धर्म ने कैसे रोक रखा है आगे बढ़ने से। मुझे कभी-कभी हैरानी भी होती है और कभी-कभी क्षोभ भी कि हम कहां खड़े हैं? धर्म हमें कहां ले जा रहा है? हमारी अंध शृद्धा आखिर क्यों इस नंग-धंड़ग, औघड़ दुनिया के प्रति है। हम इसे अनुत्पादक क्यों नहीं मानते?
माघ के महीने में मैंने भी संगम में स्नान किया है। कुम्भ भी देखा है और सिंघस्थ भी। मैंने देश के इन सभी मेलों और जमघटों को बाजार में बदलते हुए भी देखा है। आने वाली पीढ़ी के हिस्से में भी ये आएंगे ही, क्योंकि अब इनका संरक्षण कोई और नहीं बल्कि चुनी हुई सरकारें कर रही हैं। जनता पुण्य लाभ के लिए पापों से मोक्ष के लिए लालायित हो तो समझ में आता है, लेकिन सरकारें और राजनीतिक दलों में भी पुण्य कमाने की लालसा पैदा हो जाए तो देश का भगवान ही मालिक है। मेरी कलाई पर कुम्भ की स्मृति के रूप में मेरा नाम लिखा है। तीन रुपए देकर लिखवाया था, लेकिन अब कुम्भ मेरे लिए एक सपना है, क्योंकि अब कुम्भ में सब कुछ औकात से हासिल हो रहा है।
बहरहाल ये जिंदगी के मेले हैं, लगते रहेंगे। सरकारें फूल बरसाएं या न बरसाएं कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। हमारे शहर ग्वालियर में 122 साल से एक मेला लगता है, इस साल बदइंतजामी का शिकार है, लेकिन मेलार्थी आ रहे हैं। गंदगी से अटे मेले में भी उन्हें सुख तलाशना ही पड़ता है। कलिकाल में महाकुम्भ में आम आदमी कम देवता, दानव और किन्नर ज्यादा संख्या में हैं और मजे में हैं। उनके लिए स्विस टैंट है। ए.सी. हैं, पाश्चात्य शौचालय हैं, जनता के हिस्से में ठसाठस भरी रेलें हैं, बसें हैं, गंदगी से बजबजाती गंगा है। लेकिन इसी में पुण्य है। इसी में अमृत है। सब इसे छकना चाहते हैं। मैं भी प्रयागराज जाऊंगा, लेकिन फाल्गुन के महीने में जब हेलीकॉप्टर से नहीं मदार के वृक्षों से पुष्पवर्षा होगी। सभी देशवासियों को मकर संक्रांति और लोहड़ी की कोटि-कोटि शुभकामनायें।