-इस मित्रता को कभी भुलाया नहीं जा सकता
भिण्ड, 19 दिसम्बर। ग्राम कतरोल में चल रही श्रीमद् भागवत कथा में योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के सौलह हजार विवाह एवं भगवान श्रीकृष्ण के बालपन के मित्र सुदामा का वर्णन किया गया।
कथा व्यास सत्यम दुबे ने कहा कि के इस वर्णन पर कहा कि सुदामा और कन्हैया बालसखा के रूप में सुप्रसिद्ध हुए। उन्होंने बताया कि गुरू संदीपनी के आश्रम उज्जैन में विद्या अध्ययन के समय सुदामा ने भगवान श्रीकृष्ण से छिपकर चने खा लिए थे, लेकिन सुदामा ब्रह्मज्ञानी होने से उनको यह ज्ञात हो गया था कि जो भी यह चने खाएगा, वह जीवन भर दरिद्रता भोगने के लिए विवश होगा। मित्रता का धर्म निभाने हेतु सुदामा ने वह चने खा लिए। जिसमें श्राप बस चने खाने के कारण सुदामा जीवनभर के लिए दरिद्र हो गए। जीवन के अंतिम पडाव पर भगवान श्रीकृष्ण की त्रिगुणमयी माया के वसीभूत होकर सुदामा द्वारिका पहुंचे, जहां भगवान श्रीकृष्ण ने मित्रता भाव के साथ सहृदय आदर सम्मान करते हुए सुदामा को वह सब प्रदान करा दिया, जिसके अधिकारी भगवान श्रीकृष्ण स्वयं रहे। भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता युगों-युगों तक अमरत्व को प्राप्त होगी। जीवन मे मित्रता से बडा कोई रिश्ता नहीं हो सकता, लेकिन मित्रता भाव को भूल मनुष्य स्वार्थ परता के वसीभूत होकर मित्रता भाव के अमूल्य धन को खोकर म्रग त्रस्णा मे जीवन गवा रहा है। श्रीमद् भागवत कथा के समापन दिवस पर बडी संख्या में भक्तगणों ने कथा का रसपान करते हुए भक्त बत्सल भगवान के नाम का संकीर्तन किया। परीक्षत जयराम मंटोले चौधरी कथा आयोजक राकेश चौधरी, पार्षद विनोद चौधरी ने कथा सुनने आ रहे श्रोताओं का स्वागत सम्मान किया। कथा में श्रीश्री 1008 कमलदास महाराज टेकराम सरकार के महंत, श्रीश्री 1008 रामदास महाराज, अशोक करैया, जानकी प्रसाद चौधरी, अनिल चौधरी, पुरुषोत्तम राजौरिया, राजेश त्यागी, रामप्रकाश गर्ग, महेश कौरव आदि मौजूद रहे।