बाबाओं पर कृपावनत देश की अदालतें

– राकेश अचल


आज-कल देश की अदालतें बाबाओं पर कृपावनत हैं। मैं देश की अदालतों का दिल से सम्मान करता हूं, क्योंकि इसके अलावा कोई और विकल्प है ही नहीं। देश की अदालतों की उदारता और देश के कानूनों की उपस्थिति का ही नतीजा है कि हत्या, बलात्कार और यहां तक की अदालतों की अवमानना के आरोपी बाबाओं पर अदालतों की कृपा बरस रही है। समस्या ये है कि अदालतें बाबाओं पर कृपा न बरसाएं तो क्या करें? अदालतें बाबाओं को सजा तो पहले ही सूना चुकी हैं, अब बारी कृपा की है।
ताजा खबर है कि हत्या और बलात्कार के मामलों में सजा-याफ्ता डेरा प्रमुख गुरमीत सिंह मंगलवार सुबह रोहतक की सुनारिया जेल से सातवीं बार 21 दिन की पैरोल पर बरनावा आश्रम पहुंच गया। उसके साथ हनीप्रीत व परिवार के सदस्य भी आए हैं। दुष्कर्म व हत्या के मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे डेरा प्रमुख गुरमीत सिंह को रोहतक की सुनारिया जेल से हरियाणा पुलिस सुरक्षा में लेकर सुबह निकली। जनपद में प्रवेश पर बागपत पुलिस प्रशासन ने उसे सुरक्षा दी। बरनावा डेरा आश्रम के मुख्य द्वार पर पुलिस फोर्स तैनात किया गया।
बाबा राम-रहीम पर अदालतों के साथ ही राम जी भी मेहरवान दिखाई देते हैं, अन्यथा दिल्ली के मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया को 17 महीने बाद जमानत मिली। मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को तो जमानत भी नहीं मिली। मुमकिन है कि यदि ये दोनों सजायाफ्ता होते तो इन्हें भी सात-आठ बार फरलो की सुविधा मिल जाती। लेकिन अपना-अपना नसीब है। सबका नसीब एक जैसा नहीं होता। हो भी नहीं सकता। होना भी नहीं चाहिए, नेता सब गडबड हो सकता है।
सन 2024 इन बाबाओं की किस्मत जागती दिखाई दे रही है। एक नाबालिग सेविका से बलात्कार के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे आसाराम को मंगलवार को कोर्ट ने पहली बार उनकी सात दिन की पैरोल को मंजूर कर लिया है। यह पैरोल कोर्ट ने आसाराम को स्वास्थ्य कारणों से दी है। हाईकोर्ट जस्टिस जस्टिस पुष्पेन्द्र सिंह भाटी की कोर्ट ने उसे इलाज के लिए महाराष्ट्र के माधोबाग जाने की इजाजत दी है। पैरोल के दौरान आसाराम पुलिस हिरासत में रहेगा। बता दें कि आसाराम की ओर से पहले भी इलाज के लिए पैरोल की अर्जी दी जा चुकी है, लेकिन हर बार उसे खारिज कर दिया गया था। आसाराम पिछले 11 साल से जमानत का इंतजार कर रहे हैं। वे गुनाहगार हैं लेकिन बाबा रामरहीम के मुकाबले कम, इसलिए उनके सफेद बाल देखकर मैं उन्हें बाबा ही कहता हूं।
देश के एक और खुशनसीब बाबा स्वामी रामदेव और उनके शिष्य आचार्य बालकृष्ण हैं। भ्रामक विज्ञापन मामले में बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल गई है। कोर्ट ने दोनों के माफीनामा को स्वीकार कर लिया है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना से जुडा यह केस बंद कर दिया है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में बाबा रामदेव ने माफीनामा पेश कर भविष्य में भ्रामक विज्ञापन नहीं देने का वादा किया था। 14 मई को शीर्ष अदालत ने अवमानना नोटिस पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। ये बाबा श्रृंगी ऋषि की तरह पुत्र प्राप्ति यज्ञ नहीं कराते, लेकिन पुत्र पैदा होने की दवा जरूर बनाते और बेचते थे।
बाबाओं की किस्मत से देश के नेताओं को जलन हो सकती है और ये स्वाभाविक भी है। नेता बाबा नहीं होते और बाबा नेता हो सकते हैं। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री के पद पर एक बाबाजी ही विरजमान हैं। उनका वाहन बुलडोजर हैं। वे जिसका घर बुलडोज कर सकते हैं और जिसे चाहे अभयदान दे सकते हैं। आपको याद होगा की देश के चार बडे बाबाओं ने पिछले महीनों में देश की सर्वशक्तिमान सरकार के खिलाफ बगावत कर दी थी। ये चारों बाबा देश के शंकराचार्य कहे जाते हैं। कहे क्या जाते हैं बल्कि हैं। ये सरकार से नाराज हो सकते हैं, लेकिन सरकार चलवाने वालों से नाराज नहीं होते। आपने देखा होगा कि इन चार में से तीन बडे वाले बाबा यानि शंकराचार्य ए-1 के बेटे की शादी के आशीर्वाद समारोह में अपने दण्ड-कमण्डल के साथ मौजूद थे।
देश का कानून दुर्भाग्य से सबके लिए एक है। बाबाओं के लिए भी वो ही कानून काम करता है जो कानून भ्रष्ट नेताओं के लिए काम करता है। कानून की दहलीज पर भ्रष्ट आए या ईमानदार उसे सबकी सुनना पडती है। ये भारत का ही कानून है जो लोकसभा में विपक्ष के आज के नेता राहुल गांधी की सदन द्वारा छीनी गई सदस्य्ता वापस दिलाता है। ये देश की अदालतें ही हैं जो इलेक्टोरल बॉण्ड के जरिए की गई कमाई को असंवैधानिक बताता है, लेकिन इसके इस्तेमाल पर रोक नहीं लगता। कानून और अदालत की अपनी दृष्टि होती है। उसे हर स्तर पर चुनौती देने का इंतजाम भी है। लेकिन अंतिम पायदान पर पहुंचने के बाद अदालत के किसी भी फैसले को चुनौती नहीं दी जा सकती। हां सरकार के पास एक विद्या है जिसके जरिए वो किसी भी छोटी-बडी अदालत के फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए नया कानून बना सकती है।
बहरहाल स्वतंत्रता दिवस के पहले जिन तीन बाबाओं को कानून ने राहत दी है, उन्हें देश की अदालतों का शुक्रगुजार होना चाहिए। मेरा तो सुझाव है कि देश के नेताओं को नेतागीरी छोडकर अब बाबागीरी करना चाहिए। बाबाओं के पास दुनिया का हर ऐश्वर्य होता है, लेकिन उनके कपडों में गिरह नहीं होती। वे खलीता नहीं रखते, लेकिन ऐसी गांठें बांधते हैं जो सुविधानुसार खुल जाती हैं। मैं देश के हर छोटे-बडे बाबा से समान दूरी बनाकर रखता हूं। ये मुमकिन है कि मेरी कोई हीन ग्रंथि हो, लेकिन मुझे किसी भी श्रेणी के बाबा पुसाते नहीं हैं। बाबाओं का जितना बडा दिमाग होता है उतना ही बडा पेट भी होता है। वे सब कुछ पचाने की क्षमता रखते हैं। बहरहाल जो बाबा जमानत पर छूट रहे हैं या छोडे हैं। वे बाबा जिन्हें माफी मिल गई है, अदालत से वे सब बधाई के पात्र हैं। भगवान करे कि उन्हें उनके बाबा होने का लाभ तब तक मिलता रहे जब तक कि सत्ता के शिखर पर कोई बाबा विरोधी आसीन न हो जाए। मैं पुनर्जन्म में यकीन नहीं रखता, अन्यथा भगवान से कहता कि ‘अगले जन्म मोहे बाबा ही कीजो’। बाबा होना मनुष्य होने से भी बडी उपलब्धि है। भगवान को मनुष्यों की तरह बाबा भी हमेशा प्रिय होते हैं। भगवान भृगु बाबा की लात तक खा चुके हैं। नारद बाबा कीतो उन्होंने असंख्य गालियां हंस-हंस कर खाई हैं, जय श्रीराम।