क्या शंकराचार्य अपनी मर्यादाओं को भूल गए?

– राकेश अचल


आज की पोस्ट पर मुझे एक हजार एक आलोचनाओं का प्रसाद मिलेगा, क्योंकि मैं सनातन धर्म के ध्वजवाहक शंकराचार्यों की भूमिका पर ऊंगली उठाने का दुस्साहस कर रहा हूं। दुनिया में ईसाईयों और बौद्धों के पास एक-एक धर्म गुरू पोप और दलाई लामा हैं, लेकिन हम सनातनियों के पास एक के बजाय चार-चार धर्मगुरू हैं। लेकिन इन धर्मगुरुओं ने देश और दुनिया के शीर्ष धनकुबेर मुकेश अम्बानी के बेटे अनंत के विवाह आशीर्वाद समारोह में अपनी हाजरी लगाकर अपनी भूमिका पर खुद ही प्रश्न चिन्ह लगा लिए हैं।
हमारे यहां परम्परा है कि हम सनातनी अपने धर्मगुरुओं से आशीर्वाद लेने उनके मठों में जाते हैं, लेकिन हमारे चार में से तीन शंकराचार्यों ने अपने मठों को ही अम्बानी के यहां ले जाकर एक अभिनव प्रयोग किया है। इस सुकृत्य के लिए इन शंकराचार्यों को अम्बानी परिवार की ओर से कितनी विदाई दक्षिणा मिली, कोई नहीं जानता, जान भी नहीं सकता। क्योंकि ये जानने के लिए हम या आप सूचना के अधिकार का इस्तेमाल नहीं कर सकते। हमारे एक सुधि मित्र साकेत साहू कहते हैं कि विष्णुधर्म सूत्र [63/26] कहता है कि सन्यासी को विवाह में नहीं जाना चाहिए, इससे वह मोह-विछोह से पीडित हो सकता है। दक्ष स्मृति [7/34/28] कहती है कि सन्यासी को लोक व्यवहार नहीं करना चाहिए ऐसा करने पर वह धर्मच्युत हो जाता है और लोकवार्ता करने लगता है। मुझे विश्वास है कि हमारे शंकराचार्यों ने ये सब कुछ पढ रखा होगा।
मेरे मन में अपने धर्म गुरुओं के प्रति सीमित सम्मान है, क्योंकि मुझे लगता है कि धर्म गुरुओं की भूमिका में कमी की वजह से ही हमारा सनातन धर्म विश्वव्यापी नहीं बन पाया, जबकि सनातन की कोख से ही जन्मा बौद्ध धर्म कहां से कहां पहुंच गया। ईसाई और इस्लाम धर्म का विस्तार भी विश्व व्यापी है। हमारे धर्म गुरू न पोप की तरह आचरण कर पाते हैं और न धर्म की स्थापना और उसके लोकव्यापीकरण के बारे में ज्यादा मेहनत करते हैं। उनकी बौद्धिकता ही उन्हें खाये जाती है। वे अपने बौद्धिक अहंकार से ठीक उसी तरह ग्रस्त हैं जैसे कि हमारे देश के तमाम नेता सत्ता मद के अहंकार से ग्रस्त हैं। शंकराचार्यों से तो डॉ. मोहन भागवत भी अहंकार छोडने के लिए नहीं कह सकते। देश के शंकराचार्य अम्बानी के यहां हाजिरी लगाने से पहले अयोध्या में राम मन्दिर में रामलला की मूर्ती की प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के समय भी चर्चा में आए थे। हमारे शंकराचार्यों ने प्राण-प्रतिष्ठा समारोह को शास्त्रोक्त न मानते हुए उस समारोह का अघोषित बहिष्कार किया था।
शंकराचार्यों के प्रति हमारे सनातनियों में पोप जैसी प्रतिष्ठा नहीं है, क्योंकि वे यदाकदा अपनी मर्यादाओं के बाहर जाकर आचरण कर दिखाते हैं। मेरे मन में शंकराचार्यों की बौद्धिकता का आतंक हमेशा रहता है। बहुत कम ऐसे शंकराचार्य हुए हैं जो सहज सम्मानित हुए हैं। मुझे एक बार कांची कामकोटि के शंकराचार्य की पत्रकार वार्ता से सिर्फ इसलिए बाहर जाना पडा था क्योंकि मैंने उनसे एक ऐसा प्रश्न पूछ लिया था जो अनपेक्षित था। उनका आचरण ठीक वैसा ही था जैसा आज के भग्यविधाताओं का होता है। बद्रिकाश्रम पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती इकलौते ऐसे शंकराचार्य थे जो प्रश्नों से भागते नहीं थे, हालांकि उनके ऊपर भी कांग्रेसी होने का आरोप लगाया जाता रहा। वे उत्तेजित नहीं होते थे।
बहरहाल बात चल रही है कि हमारे शंकराचार्यों को मुकेश अम्बानी के बेटे के विवाह समारोह में आशीर्वाद देने जाना चाहिए था या नहीं? उनका जाना धर्म सम्मत था या नहीं? इन प्रश्नों का उत्तर कोई दे या न दे किन्तु एक बात जाहिर हो गई की शंकराचार्यों के अम्बानी के यहां जाने से लोकधारणा ये बन गई है कि वे भी राजनेताओं की तरह लक्ष्मी के आगे ठीक वैसा ही नर्तन कर रहे हैं, जैसे कि दूसरे लोग। भगवा ओढने वाले बाबा रामदेव को तो सबने अम्बानी के बेटे के साथ नाचते देखा। रामदेव शंकराचार्य नहीं हैं लेकिन आचार्य तो हैं। उनका आचरण भी लोक पर असर डालता है। हालांकि वे अब खुद कुबेर हैं।
अम्बानी के बेटे के विवाह समारोह में देश के प्रधानमंत्री से लेकर विपक्ष के तमाम नेता, अभिनेता, दुनिया के कुबेर जाति के लोग मौजूद थे, लेकिन उनकी उपस्थिति से कोई चौंका नहीं, क्योंकि उन्हें तो अम्बानी के यहां होना ही चाहिए था। लोगों को चौंकाया तो शंकरचार्यों की उपस्थिति ने। ये शंकराचार्य अपने दल-बल और सिंहासन के साथ अम्बानी के दरबार में हाजिर थे। ये शंकराचार्य किसी आम आदमी के यहां विवाह समारोह का निमंत्रण मिलने पर वहां नहीं जा सकते, क्योंकि आम आदमी इन शंकराचार्यों के नाज-नखरे नहीं उठा सकता। ये शंकराचार्य हाथरस के हादसे में मारे गए लोगों के बीच नहीं जा सकते, मणिपुर नहीं जा सकते, क्योंकि इन्हें इनका धर्म रोकता है। एक गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद हैं जो शंकराचार्यों के आचरण की रक्षा कर सके। हालांकि वे भी मणिपुर या हाथरस नहीं गए। वे शायद जानते हैं कि ये काम नेताओं का है, शंकराचार्यों का नहीं।
मेरी स्पष्ट अवधारणा है कि लक्ष्मी पुत्रों के आगे हाजरी बजाने वाले हमारे शंकराचार्य सनातन धर्म का न प्रचार कर सकते हैं और न धर्म ध्वजाएं लेकर चलने के अधिकारी है। उनका आचरण पाखण्ड की परिधि में आता दिखाई दे रहा है। वे राजसी आचरण कर रहे हैं। एक शंकराचार्य ने तो अपने सन्मुख झुके प्रधानमंत्री के गले में अपने गले में पडी रुद्राक्ष की माला ऐसे डाली जैसे कोई राजा अपने किसी प्रिय व्यक्ति को इनाम दे रहा हो। मोदी जी रामलला के विग्रह की स्थापना समारोह में इन्हीं शंकराचार्य के विरोध के सामने झुके नहीं थे। मोदी जी ने तब मुमकिन है कि इनकी अहमन्यता को आहत किया था और अम्बानी के घर इनके सामने झुककर उनके घावों पर मरहम लगा दिया।
संयोग देखिये कि अनंत और राधिका की शादी के दिन यानी 12 जुलाई शुक्रवार को हफ्ते के अंतिम कारोबारी दिन अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज के शेयरों में जबरदस्त बूस्ट दिखा। रिलायंस के शेयर एक फीसदी से अधिक चढ गए। शेयरों में तेजी से मुकेश अंबानी की संपत्ति में बडी बढोतरी हुई। इसके पीछे नववधू के चरण हैं या शंकराचार्यों की कृपा कहना मुश्किल है। मुझे कभी-कभी लगता है कि हमारे शंकराचार्यों से बडे और लोकप्रिय धर्मध्वजा वाहक हमारे प्रधानमंत्री हैं। कम से कम उनके पीछे अंधभक्तों की एल लम्बी-चौडी फौज तो है। शंकराचार्यों के पास तो कुछ नहीं है। वे तो नेताओं की तरह कलियुगी कुबेरों के पिछलग्गू बनते दिखाई दे रहे हैं।
प्रख्यात साहित्यकार शरद कोकस कहते हैं कि धर्म और पूंजी एक-दूसरे को बढावा देते हैं। शायर विनोद प्रकाश गुप्त कहते हैं कि पैसे के गुलाम हैं ये, रामकिशोर उपाध्याय कहते हैं कि सत्ता का सुख सभी को चाहिए। कुछ मित्र शंकराचार्यों के समर्थन में भी है। शच्चिदानंद सूक्तकार कहते हैं कि अम्बानी परिवार का शंकराचार्यों से पुराना रिश्ता है। सुधीर कुशवाह कहते हैं कि शंकराचार्यों के आचरण को देखकर ओशो याद आ गए। अनिल खमपरिया कहते हैं कि पहले इन्द्र और कुबेर तक आशीर्वाद लेने मुनियों के आश्रम में जाते थे, आज तो आश्रम ही कुबेरों के यहां आ गए हैं। कुछ को सीता स्वयंवर याद आ गया। उनका कहना है कि राम की बारात में तो कितने ऋषि-मुनि बाराती बन गए थे? कुल मिलाकर मैंने बहस छेडी है औरों ने भी शायद छेडी हो, न छेडी हो तो भी कोई बात नहीं है। आप मुझे प्रतिसाद में मेरी पीठ भी थपथपा सकते हैं और श्राप भी दे सकते हैं।