तन को साधना और मन को बांधना, ये असली उत्तम तप है: विनय सागर

पर्यूषण पर्व में उत्तम तप की साधना के साथ भक्ति नृत्य कर अभिषेक पूजन में चढाए महाअघ्र्य

भिण्ड, 25 सितम्बर। उच्च स्थान पाने के लिए तप करना है तो कभी दूसरों के प्रति द्वेष का भाव मत रखना। तन को साधना और मन को बांधना, ये असली उत्तम तप है। दूध को न तपाने से दूध फट जाता है, उसी तरह जीवन में तप के न होने से चेतना-कर्म कलुशता बढ जाती है। जैसे सोने को तपाने से वो कुंदन बन जाता है, उसी आत्मा को तपाने से हमारा जीवन निखर जाता है। यह विचार पर्यूषण पर्व के सातवें दिन सोमवार को उत्तम तप धर्म पर श्रमण मुनि विनय सागर महाराज ने लश्कर रोड स्थित महावीर कीर्तिस्तंभ मन्दिर में धर्मसभा में व्यक्त किए।

मुनि विनय सागर महाराज ने कहा कि तप से ही कर्मों की निर्जरा व आत्मा की उन्नति होती है। तप केवल बाहरी ही नहीं अंतरंग भी होता है। हमें उपवास के साथ अंतरंग तप का भी पालन करना चाहिए। तप कर्मों की निर्जला होती है। तप मोक्ष का सबसे बडा साधन है। ज्ञान, तप और संयम से मोक्ष की प्राप्ति होती है। तप को अग्नि की तरह कहा गया है। अग्नि में किसी भी पदार्थ की मौलिकता नष्ट नहीं होती। संसार में कोई भी वस्तु तप के माध्यम से ही श्रेष्ठ होती है। पर्यूषण पर्व पर शाम को मुनि के सानिध्य में प्रश्नमंच, लकी ड्रा के साथ प्रतियोगिता अयोजित की गई, जिसमें विजेताओ को पुरुस्कार वितरण किए गए।
तप की साधना कर किया भगवान जिनेन्द्र का अभिषेक और शांतिधारा
मीडिया प्रवक्ता सचिन जैन ने बताया कि श्रमण मुनि विनय सागर महाराज ससंघ के सानिध्य में प्रतिष्ठाचार्य नितेश शास्त्री ने मंत्रों का उच्चारण कर उत्तम तप की साधना कर रहे इन्द्रों ने सिर पर मुकुट और पीले वस्त्रों पहनकर कलशों से भगवान जिनेन्द्र का अभिषेक जयघोष के साथ किया। मुनि विनय सागर महाराज ने मंत्रों का उच्चारण भगवान जिनेन्द्र के मस्तक पर बृहद शांतिधारा की। वहीं महिलाओं और पुरुषों ने दीपकों से आरती उतारी।
उत्तम तप की साधना के साथ भक्ति नृत्य कर पूजन में चढाए महाअघ्र्य
पर्यूषण पर्व पर श्रमण मुनि विनय सागर महाराज के सानिध्य एवं प्रतिष्ठाचार्य नीतेश शास्त्री मार्ग दर्शन में श्रावक-श्राविकाओं ने उत्तम तप की साधना और आरधान, पूजा अर्चना और भजनों पर झूमकर भगवान जिनेन्द्र के समझ महाअघ्र्य समर्पित किए।